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( २१८ ) उरूकः= उलूकः ।
उलूखलम् [ ऊर्ध्व खम् उलूखम्, पृषो० ला+क ] ओखली उर्णनाभः [ उणेव सूत्रं नाभी गर्भऽस्य–ब० स०] मकड़ी, (जिसमें धान कूटे जाते हैं)-अवहननायोलूखलम् तु० ऊर्णनाभ ।
-महा०, मनु० ३३८८, ५।११७ । उर्णा [ऊर्ण+ड ह्रस्वः ] 1. ऊन, नमदा या ऊनी कपड़ा | उलखलकम् [ उलूखल+कन् ] खरल । 2. भौवों के बीच केशवृत्त-दे० ऊर्णा ।
उलूखलिक (वि.) [उलू खल+ठन् ] खरल में पीसा उबंटः [उरु+अट्+अच्] 1. बछड़ा 2. वर्ष ।
हुआ। उर्वरा [उरु शस्यादिकमृच्छति-ऋ+अच् ] 1. उपजाऊ | उलतः [ उल+ऊतच् ] अजगर, शिकार को दबोच कर भूमि---शि० १५।६६ 2. भूमि ।
मारने वाला विषहीन सर्प । उर्वशी [ उरून् महतोऽपि अश्नुते वशीकरोति-उरु+अश् | उलूपी [?] नाग कन्या (यह कौरव्य नाग की पुत्री थी,
+क गौरा० डी-- तारा०] इन्द्रलोक की एक एक दिन जब वह गंगा में स्नान कर रही थी, उसकी प्रसिद्ध अप्सरा जो पुरूरवा की पत्नी बनी; (उर्वशी दृष्टि अर्जुन पर पड़ी। वह उसके रूप पर मुग्ध हो का ऋग्वेद में बहुत उल्लेख मिलता है। उसकी ओर
गई, फलतः उसने अर्जन को अपने घर पाताल लोक दष्टि डालते ही मित्र और वरुण का वीर्य स्खलित हो में लिवा लाने का प्रबन्ध किया। वहां पहुंचने पर गया-जिससे अगस्त्य और वशिष्ठ का जन्म हुआ
उसने अर्जुन से अपने आपको पत्नीरूप में स्वीकार [दे० अगस्त्य ] मित्र और वरुण द्वारा शाप दिये जाने करने की प्रार्थना की जिसे अर्जुन ने बड़े संकोच के पर वह इस लोक में आई और पुरूराव की पत्नी बनी,
साथ स्वीकार किया। 'इरावान्' नाम का एक पुत्र जिसको कि उसने स्वर्ग से उतरते हए देखा था तथा
उलूपी से पैदा हुआ। जव बभ्रुवाहन के तीर से जिसका उसके मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। वह अर्जुन का सिर कट गया था तो उस समय उलूपी की कुछ समय तक पुरूरवा के साथ रही, परन्तु शाप की सहायता से ही उसे पुनर्जीवन मिला)। समाप्ति पर फिर स्वर्गलोक चली गई। पुरूरवा | उल्का | उष-+कक-+-टापु, षस्य ल: ] 1. आकाश में रहने को उसके वियोग से अत्यन्त दुःख हुआ, परन्तु वह वाला दाहक तत्त्व, लक-शि०१५।९१, मन्० ११३८. एक बार फिर उसे प्राप्त करने में सफल हो गया। याज्ञ० १२१४५ 2. जलती हुई लकड़ी, मसाल 3. अग्नि, उर्वशी से 'आयुस्' नाम का पूत्र पैदा हआ और फिर ज्वाला--मेघ०५३ । सम--धारिन (वि.) मशालची वह सदा के लिए पुरूरवा को छोड़ कर चली गई। --पातः उल्कापिंड का टट कर गिरना,-मुखः एक विक्रमोर्वशीय में दिया गया वत्त कई बातों में भिन्न है, राक्षस या प्रेत (अगिया बैताल)-मनु० १२१७१, पुराणों में उसको नारायण मनि की जंघा से उत्पन्न मा० ५।१३। बताया गया है)। सम-रमण वल्लभः-सहायः, | उत्कुषी [ उल+कुष्+क+डीए ] 1. केतु, उल्का पुरूरवा ।
2. मशाल। उर्वारः [उह+ऋ| उण् ] एक प्रकार की ककड़ी, दे० उल्बम्,-वम् [ उच+ब (व), चस्य ल वम् ] 1. भ्रूण 'इरि'।
2. योनि 3. गर्भाशय । उर्वो [ ऊर्गु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, डीप् ] 1. 'विस्तृत उल्ब (व) ण (वि०) [उत् +-ब (व) +अच् पृषो०]
प्रदेश' भूमि-स्तोकमुव्यां प्रयाति-श० ११७, जुगोप 1. गाढ़ा, जमा हुआ पर्याप्त, प्रचर (रुधिर आदि) गोरूपधरामिवोर्वीम् रघु० २१३, १११४, ३०, ७५, 2. अधिक, अतिशय, तीन--शि० १०॥५४, कु. ७८४ २०६६ 2. पृथ्वी, धरती 3. खुली जगह, मैदान । 3. दृढ़, बलशाली, बड़ा--शि० २०१४१ 4. स्पष्ट, सम-ईशः,—ईश्वरः, धव:,-पतिः राजा,-धरः साफ--तस्यासोदुल्वणो मार्गः - रघु० ४।३३। 1. पहाड़ 2. शेषनाग,-भृत् (पु०) 1. राजा 2. पहाह, । उल्मकः [ उष-+-मक, पस्य ल: ] जलती लकड़ी, मशाल । -रुहः वृक्ष-शि० ४१७।
उल्लङघनम् | उद्+लङ+ ल्युट् ] 1. छलांग लगाना, उलपः [वल+कपच, संप्रसारण ] 1. लता, बेल 2. कोमल लांघना 2. अतिक्रमण, तोड़ना।
तण--गोगभिणीप्रियनवोलपमालभारिसव्योपकण्ठविपि- उल्लल (वि.) [उद्+लल+अच ] 1. डांवाडोल, नावलयो भवन्ति-मा० ९।२, शि० ४१८ ।
कंपनशील 2. घने बालों वाला. लोमश। उलूप दे० उलप ।
उल्लसनम् [उद्+लस्+ ल्युट ] 1. आनन्द, हर्ष उलकः [वल-ऊक संप्रसारण ] 1. उल्ल –नोलकोप्य- | 2. रोमांच।
वलोकते यदि दिवा सूर्यस्य कि दूषणम् --भर्त० २।९३, उल्लसित (भू० क० कृ०) उद्+-लस्+क्त 1. चमकीला, त्यजति मदमलकः प्रीतिमांश्चक्रवाक; -शि० ११०६४ उज्ज्वल, आभायुक्त 2. आनन्दित, प्रसन्न । 2. इन्द्र।
। उल्लाघ (वि.) [ उद्+लाघ्+क्त ] 1. रोग से मुक्त,
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