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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात दिन, राधा / समृद्धि, समाबड़ा अनुरा ( 854 ) लौकीदार 3. पिशाच, भूत, प्रेत-(तं) यातं वने रात्रि पूजाहेऽपराद्धा शकुन्तला-श०४, अपराद्धोऽस्मि तत्र चरी डुढौके-भट्टि० 2 / 23, -चर्या 1. रात में इधर भवतः कण्वस्य-श० 7 2. चूक जाना, लक्ष्यवेध न उधर घूमना 2. रात को होने वाला कार्य या संस्कार, कर सकना, शि०२।२७ 3. सताना, चोट पहुँचाना, -जम् तारा, नक्षत्रपुंज,-जलम् ओस,-जागरः क्षतिग्रस्त करना-न तु ग्रीष्मस्य व सुभगमपराद्ध युवतिषु 1. रात को पहरा देना, रात को जागते रहना, --श० 3 / 9, आ-, आराधना करना (प्रेर०) रात में बैठे रहना---रघु० 19:34 2. कुत्ता,-तरा 1. राजी करना, मनाना, प्रसन्न करना परेषां चेतांसि आधी रात, मध्यरात्रि,-पुष्पम् कुमुद (जो रात प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा-भर्तृ० 3 / 34, 214, 5 को ही खिलता है),--योगः रात का आ जाना,-- रक्षः, 2. पूजा करना, सेवा करना- मेघ० 45, वि-, चोट --रक्षकः पहरेदार, रखवाला,-रागः अंधकार, पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, रुष्ट करना, ठेस पहुंचाना, घना अंधेरा,-बासस् (नपुं०) 1. रात की वेशभूषा -क्रियासमभिहारेण विराध्यन्तं क्षमेत क:--शि० 2 / 43, 2. अंधकार विगमः रात का अंत, दिन का निकलना, विराद्ध एवं भवता विराद्धा बहुधा च नः---२१४१ / पौ फटना, प्रभात का प्रकाश-वेदः-वेदिन (पं०) राधः[ राधा विशाखा तद्वती पौर्णमासी राधी, सा अस्मिन् मुर्गा / अस्ति-राधी+अण् ] वैशाख का महीना। रात्रिन्विवम्, रात्रिन्दिवा (अव्य०) [द्व० स०] रात दिन, राधा [ राघ्नोति साधयति कार्याणि-राध्-+-अच्+टाप् ] लगातार, अनवरत-रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति 1. समृद्धि, सफलता 2. प्रसिद्ध गोपिका जिस पर -श०५।४। कृष्ण भगवान् का बड़ा अनुराग था (इसकी छनप्रीति रात्रिमन्व (वि०)[रात्रिम+मन+खश् ] रात की भांति को जयदेव ने अपने गीतगोविन्द की रचना द्वारा अमर दिखाई देने वाला (जैसे दुर्दिन या मेघाच्छादित कर दिया है)-तदिमं राधे गहं प्रापय-गीत०१ दिन हो) तु० 'रजनिमन्यः' / 3. अधिरथ की पत्नी तथा कर्ण की पालिका माता राद्ध (भू० क. कृ०) [राध कर्तरि कर्मणि वा क्त] का नाम 4. विशाखा नाम का नक्षत्र 5. बिजली। 1. आराधित, प्रसादित, मनाया गया 2. कार्यान्वित | राधिका दे० 'राधा'। सम्पन्न, निष्पन्न, अनुष्ठित 3. पकाया हुआ, (खाना) | राधेयः [ राधा+ठक् ] कर्ण का विशेषण / राधा हआ 4. तैयार किया हुआ 5. प्राप्त किया हुआ | राम (वि.) [ रम् कर्तरि घञ, ण वा] 1. सुहावना, हासिल किया हुआ 6. सफल, सौभाग्यशाली, प्रसन्न आनंदप्रद, हर्षदायक 2. सुन्दर, प्रिय, मनोहर 7. जादू की शक्ति से पूर्ण, दे० राथ् / सम०--अन्तः 3. मलिन, धूमिल, काला 4. श्वेत,-मः 1. तीन प्रसिद्ध सिद्ध या स्थापित तथ्य, प्रदर्शित उपसंहार या सचाई, व्यक्तियों का नाम-(क) जमदग्नि का पुत्र परशुराम अन्तिम निर्णय, सिद्धांत, मत सर्ववैनाशिकराद्धान्तो (ख) वसुदेव का पुत्र बलराम जो कृष्ण का भाई था नितरामनपेक्षितव्य इतीदानीमुपपादयामः-शारी०, (ग) दशरथ और कौशल्या का पुत्र रामचन्द्र या --अन्तित (वि०) प्रदर्शित, प्रमाणों द्वारा स्थापित, सीताराम, रामायण का नायक / [जब राम बालक तर्कसिद्ध। ही थे तो विश्वामित्र, दशरथ की अनुमति लेकर राध / (स्वा० पर० राघ्नोति, राद्ध; इच्छा० रिरात्सति, लक्ष्मण समेत राम को, राक्षसों से अपने यज्ञों परन्तु 'मारना चाहता है' के लिए रित्सति) 1. राजी की रक्षा करने के लिए अपने आश्रम में ले गये। करना, मनाना, प्रसन्न करना 2. सम्पन्न करना, कार्या- राम ने अनायास ही उन सब राक्षसों को मार न्वित करना, पूरा करना, अनुष्ठान करना, निष्पन्न गिराया और पुरस्कार के रूप में ऋषि से कई करना 3. प्रस्तुत करना, तैयार करना 4. क्षतिग्रस्त चमत्कारयुक्त अस्त्र प्राप्त किये। उसके पश्चात् राम करना, नष्ट करना, मार डालना, उखाड़ना - वानरा विश्वामित्र के साथ जनक की राजधानी मिथिला भवरान् रेधुः--भट्टि० 14 / 19 / नगरी गये, वहाँ शिव के धनुष को झुकाने का आश्चर्यii (दिवा० पर० राध्यति, राद्ध) 1. अनुकूल या दयाई जनक करतब दिखाकर सीता से विवाह किया और होना, 2. सम्पन्न, या पूर्ण होना 3. सफल होना, काम- वापिस अयोध्या आ गये। यह देखकर कि राम ही याब होना, सगद्ध होना 4. तैयार होना 5. मार राज्य का उपयुक्त अधिकारी हो रहा है, दशरथ ने डालना, नष्ट करना, प्रेर० (राधयति-ते) 1. राजी उसे अपना पुर्व राज बनाने का निश्चय किया, परन्तु करना 2. सम्पन्न करना, पूरा करना, अनु ---, आरा- ठोक राज्याभिषेक के दिन दशरथ की प्रिथपत्नी कैकेयी घना करना, पूजा करना, मनाना, अप , 1. रुष्ट ने, अपनी दुष्ट दासी मन्थरा के द्वारा भड़काये जाने करना, ठेस पहुँचाना, पाप करना (संबं० या अधिक पर, दशरथ को अपने दो पूर्व प्रतिज्ञात वरदान पूरा के साथ, अथवा स्वतंत्र रूप से)-..- यस्मिन्कस्मिन्नपि / करने के लिए कहा, एक से उसने रामका चौदह वर्ष For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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