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बैबी ) 1. असुरों से संबन्ध रखने वाला 2. भूतप्रेतों से संबंध रखने वाला, आसुरी माया, आसुरी रात्रिः आदि 3. नारकीय राक्षसी-आसुरं भावमाश्रितः भग० ७११५, (आसुर-आचरण के पूर्ण विवरण के लिए दे० भग० १६ । ७-२४ ) - र: 1. राक्षस, 2. आठ प्रकार के विवाहों में से एक जिसमें कि वर, वधू को उसके पिता या पैतृकबांधवों से खरीद लेता है (दे० उद्वाह) – आसुरो द्रविणादानात् - याज्ञ० ११६१, मनु० ३१३१ - री 1. शल्यचिकित्सा, जर्राही 2. राक्षसी-संभ्रमादासुरीभिः - वेणी ० १ । ३ । आसूत्रित (वि० ) [ आ + सूत्र + क्त ] 1. माला पहने हुए या माला के रूप में, 2. अंतर्ग्रथित ।
आसेकः [ आ + सिच् + घञ ] गीला करना, खींचना, ऊपर से उड़ेलना ।
आसेचनम् [ आ + सिच् + ल्युट् ] ऊपर से उँडेलना, गीला करना, छिड़कना ।
१६८ )
आस्तिकता, त्वम्, आस्तिक्यम् [ आस्तिक + तल त्व ष्यञ वा ] 1. ईश्वर और परलोक में विश्वास 2. पवित्रता, भक्ति, श्रद्धा - भग० १८/४२ आस्तिक्यं श्रद्दधानता परमार्थेष्वागमार्थेषु - शंकर० । आस्तीक : एक प्राचीन मुनि, जरत्कारु का पुत्र ( जरत्कारु के बीच में पड़ने से ही जनमेजय ने तक्षक नाग को छोड़ दिया था, जिसके कारण कि सर्पयज्ञ रचा गया था ) | आस्था [ आ + स्था + अ ] 1. श्रद्धा देखभाल, आदर, विचार, ध्यान रखना ( अधि० के साथ) मर्त्येष्वास्थापराङ्मुखः रघु० १०।४३ मय्यप्यास्था न ते चेत् - भर्तृ० ३।३० दे० 'अनास्था' भी 2. स्वीकृति, वादा 3. थून, सहारा, टेक 4. आशा, भरोसा 5. प्रयत्न 6. दशा, अवस्था 7. सभा ।
आसेषः [ आ + सिघ् + घञ्ञ ] गिरफ्तारी, हिरासत, कानूनी प्रतिबंध यह चार प्रकार का है: - स्थानासेधः कालकृतः प्रवासात् कर्मणस्तथा नारद । मासेवा-वनम् [ प्रा० स०] 1. सोत्साह अभ्यास, किसी क्रिया का सतत अनुष्ठान, 2. बारंबार होना, आवृत्ति - पा० ८|३|१०२, आसेवनं पौनःपुन्यम् सिद्धा० । आस्कन्दः – वनम् [ आ + स्कन्द् + षञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. आक्रमण, हमला, सतीत्वनाश; परवनिता प्रगल्भस्य -- वेणी० २, 2. चढ़ना, सवारी करना, रौंदना, 3. भर्त्सना, दुर्वचन 4. घोड़े की सरपट चाल 5. लड़ाई,
युद्ध ।
आस्कन्दितम् - - तकम् [ आ + स्कन्द् + क्त, स्वार्थे कन् वा ] घोड़े की चाल, घोड़े की सरपट चाल ।
आस्कन्दिन् (वि० ) [ आ + स्कन्द् + णिनि] चढ़ बैठने वाला, टूट पड़ने वाला रघु० १७/५२ । आस्तरः [ आ + स्तृ + अप् ] 1. चादर ओढ़ने का वस्त्र 2. दरी, बिस्तरा, चटाई - शा० २।२० 3. विस्तरण, फैलाव (वस्त्रादि ) ।
आस्तरणम् [ आ + स्तृ + ल्युट् ] 1. विस्तरण, बिछावन 2. बिस्तरा, तह, कुसुम फूलों की क्यारी-कु० ४। ३५, तमालपत्रास्तरणासु रन्तुम् - रघु० ६ । ६४ 3. गद्दा, रजाई, बिस्तर के कपड़े 4 दरी 5. हाथी की जीनपोश, साज-सामान, रंगीन झूल ।
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आस्तारः [ आ + स्तृ + घञ ] फैलाना, बिछाना, बखेरना । सम० --- पचक्ति: छन्द का नाम, दे० परिशिष्ट । मास्तिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अस्ति + ठक् ] 1. जो ईश्वर और परलोक में विश्वास रखता है 2. अपनी धर्म-परंपरा में विश्वास रखने वाला 3. पवित्रात्मा, भक्त, श्रद्धालु - आस्तिकः श्रद्दधानश्च - याज्ञ ० १ २६८ ।।
आस्थानम् [ आ + स्था + ल्युट् ] 1. स्थान, जगह 2. नींव,
आधार 3. सभा 4. देखभाल, श्रद्धा, दे० 'आस्था' 5. सभागृह 6. विश्रामस्थान, नी सभा भवन | सम० गृहम्, निकेतनम्, मंडप : सभाभवन । आस्थित ( भू० क० कृ० ) ( कर्तृवाच्य के रूप में प्रयुक्त)
रहने वाला, बसने वाला, आश्रय लेने वाला, काम में लगने वाला, अभ्यास करने वाला, अपने आपको ढालने वाला ।
आस्पदम् [ आ + पद् । घ सुट् च ] 1. स्थान, जगह, आसन, ठौर - तस्यास्पदं श्रीयुवराजसंजितम् - रघु० ३।३६, ध्यानास्पदं भूतपतेर्विवेश कु० ३।४३, ५।१०, ४८, ६९, 2. ( आलं० ) आवास, स्थल, आशय करिण्यः कारुण्यास्पदम् भामि० ११२, 3. श्रेणी, दर्जा, केन्द्रस्थान 4. मर्यादा, प्रामाणिकता, पद 5. व्यवसाय, काम 6. थूनी, भाश्रय ।
आस्पन्दनम् [ आ + स्पन्द् + ल्युट् ] धड़कना, काँपना । आस्पर्धा [ प्रा० स०] होड़, प्रतिद्वंद्विता । आस्फाल: [ आ + स्फल् + णिच् + अच् ] 1. मारना, रगड़ना, शनैः २ चलाना 2. फडफडाना 3. विशेष रूप से हाथी के कानों की फड़फड़ाहट । आस्फालनम् [आ+स्फल्+ णिच् + ल्युट् ] 1. रगड़ना, दबा कर रगड़ना, (पानी आदि का), हिलना फड़फड़ाना - अनवरतधनुर्ज्यास्फालनक्रूरपूर्वम् - श० २१४, आसां जलास्फालनतत्पर(णाम् - रघु० १६।६२, ३/५५, ६० ७३, अमरु ५४, ऐरावत' कर्कशेन हस्तेन कु० ३।२२ 2. घमंड, हेकड़ी ।
आस्फोट: [अ + स्फुट् + अच्] 1. आक या मदार का पौधा 2. ताल ठोकना, टा नवमल्लिका का पौधा, जङ्गली चमेली । आस्फोटनम् [ आ + स्फुट् + ल्युट् ] 1. फटकना 2. कांपना 3. फूंक मारना, फुलाना 4. सिकोड़ना, बन्द करना 5. ताल ठोकना ।
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