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उठ कर अगवानी करना - सपर्यया प्रत्युदियाय पार्वती - कु० ५1३१, वि-, 1. चले जाना, विदा होना -तस्यामहं त्वयि च संप्रति वीतचिन्तः - श० ५११२, इसी प्रकार वीतभय, वीतक्रोध 2. परिवर्तित होना ---सदृशं त्रिषु लिंगेषु यन्न व्येति तदव्ययम् - सिद्धा ० 3. खर्च करना - दे० व्यय, विपरि-, बदलना ( बुराई के लिये) दे० विपरीत, व्यति--, 1. बाहर जाना, पथविचलित होना, अतिक्रमण करना - रेखामात्रमपि क्षुण्णादा मनोर्वर्त्मनः परम् न व्यतीयुः प्रजास्तस्य नियन्तुमिवृत्तयः । रघु० १ १७, 2. ( समय का) गुजरना, व्यतीत होना सप्तव्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य दिनानि - रघु० २।२५, व्यतीते काले- आदि 3. परे चले जाना, पीछे छोड़ना- रघु० ६।६७, व्यप1. विदा होना. विचलित होना, मुक्त होना व्यपेतमदमत्सरः --- याज्ञ० १।२६७. स्मृत्याचारव्यपेतेन मार्गेण - २/५, 2. चले जाना, जुदा होना, अलग-अलग होना — समेत्य च व्यपेयाताम् - हि० ४।६, मनु०९/१४२, ११।९७, सम्---, इकट्ठे आना, इकट्ठे मिलना, समनु, साथ चलना, अनुसरण करना, समय-, 1. एकत्र होना, इकट्ठे आना - समवेता युयुत्सवः -- भग० १1१, 2. संबद्ध होना, संयुक्त होना दे० समवाय, समा इकट्ठे आना या मिलना-समेत्य च व्यपेयाताम् - हि० ४/६९, समुद्, एकत्र होना, संचित होना - अयं समुदितः सर्वो गुणानां गणः - रत्न० ११६, समुप, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, संप्रति, निर्णय करना, निश्चित करना, निर्धारित करना, अनुमान लगाना - किं तत्कथं वेत्युपलब्धसंज्ञा विकल्पयन्तोऽपि न संप्रतीयुः - भट्टि० ११।१० ।
इक्षव: ( ब० व०) गन्ना, ईख, ऊख । इक्षु: [ इष्यतेऽसौ माघुर्यात् इष् + क्सु ] गन्ना, ईख । सम० -- काण्डः, -- डम् गन्ने की दो जातियाँ - काश और मुञ्जतृण, कुट्टकः गन्ने इकट्ठे करने वाला -बा एक नदी का नाम, पाकः गुड़, शीरा, राब, -भक्षिका गुड़ और शक्कर से बना भोज्य पदार्थ, -मती, मालिनी, – मालवी एक नदी का नाम, - मेहः मधुमेह, -- यन्त्रम् गन्ना पेलने का कोल्हू, - रसः 1. गन्ने का रस 2. गुड़, राब या शक्कर, -- वणम् गरने का खेत, गन्ने का जंगल, वाटिका, --- वाटी, गन्नों का उद्यान, विकारः शक्कर, गुड़ या राब, सारः गुड़ या राब । इक्षुकः [ स्वार्थे कन् ] गन्ना, ईख, दे० इक्षु | rrator [ इक्षुक + छ स्त्रियां टाप् ] गन्नों की क्यारी । इक्षुरः [ इक्षुम् राति- इति रा + क ] गन्ना, ईख । इक्ष्वाकु: [ इक्षुम् इच्छाम् आकरोति इति इक्षु + आकृ +] अयोध्या में राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं
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का पूर्व पुरुष, यह वैवस्वत मनु का पुत्र था और सूर्यवंशी राजाओं में सबसे प्रथम पुरुष था । - इक्ष्वाकु वंशोभिमतः प्रजानाम् - उत्तर० १।४४ 2. इक्ष्वाकु की सन्तान – गलितवयसामिक्ष्वाकूणामिदं हि कुलव्रतम् - रघु० ३।७० ।
इख, इंख ( भ्वा० पर० ) ( एखति, इङ्खति ) जाना, हिलना-डुलना, (प्राय: 'प्र' के साथ ) हिलना-डुलना, काँपना मा० ६ |
इग् (भ्वा० उभ० ) ( इङ्गति ते, इङ्गित) 1. हिलना, काँपना, क्षुब्ध होना ---- यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते - भग० ६।१९, १४।२३ 2. जाना, हिलना-डुलना । इङ्ग ( वि० ) [ इङग् + क] 1. हिलने डुलने योग्य 2. आश्चर्य जनक, विस्मयकारी गः 1. इशारा या संकेत 2. इंगित द्वारा मनोभाव का संकेत देना ।
ज्ञान दे० इंग' ।
इङ्गनम् [ इङग-1 ल्युट् ] 1. हिलना-डुलना, कांपना 2. इङ्गितम् [ इग् + क्त ] 1. धड़कना, हिलना 2. आन्तरिक विचार, इरादा, प्रयोजन - आकारवेदिभिः का० ७, पंच० ११४३, अगूढसद्भावमितीङ्गितज्ञया— कु० ५/६२, रघु० १२० शि० ९/६९ 3 इशारा, संकेत, अंगविक्षेप- पंच० ११४४. 4. विशेषतः शरीर के विभिन्न अंगों की चेष्टा जो आन्तरिक इरादों का आभास दे देती हैं, अंगविक्षेप आन्तरिक भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ है- आकारैरिङ्गितैर्गत्या ... गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः - मनु० ८२२६, । सम० - कोविद, - ज्ञ (वि०) बाहरी अंगचेष्टाओं के द्वारा आन्तरिक मनोभावों की व्याख्या करने में कुशल संकेतों को जानने वाला ।
इङ्गुदः, -दी [इङग् + उ = इङ्गुः तं द्यति खंडयति इति-दो + [क] एक औषधि का वृक्ष, हिंगोट का वृक्ष, मालकंगनी – इङगुदीपादपः सोऽयम् — उत्तर० १११४, – बम् काफल
-दानम
इच्छा [इप् + श+टाप् ] 1. कामना, अभिलाप, रुचि, - इच्छया - रुचि अनुसार 2. (गणित में ) प्रश्न या समस्या 3. ( व्या० में) सन्नन्त का रूप । सम० अभिलाप का पूर्ण होना, निवृत्तिः (स्त्री०) कामनाओं की शान्ति, सांसारिक इच्छाओं के प्रति उदासीनता, - फलम् किसी प्रश्न या समस्या का समाधान - रतम् अभिलपित खेल - मेघ० ८९, वसुः कुवेर -संपद् (स्त्री० ) किसी की कामनाओं का पूर्ण होना ।
इज्य: [ यज् + क्यप् ] 1. अध्यापक 2. देवों के अध्यापक बृहस्पति की उपाधि |
इज्या [ इज्य + टाप् ] 1. यज्ञ - जगत्प्रकाशं तदशेषमिज्यया - रघु० ३।४८ ११६८, १५/२, 2. उपहार, दान 3.
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