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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तति (सर्व वि०) (नित्य बहुवचनांत, कर्तृ० कर्म० तति) । तथा (अव्य०) [तद् प्रकारे थाल विभक्तित्वात ] 1. वैसे, [तत+उति] इतने अधिक, उदा०---तति पुरुषाः सन्ति इस प्रकार, उस रीति से तथा मां वञ्चयित्वा-श० -आदि,-तिः (स्त्री०---तन्+क्तिन् ] 1. श्रेणी, ५, सूतस्तथा करोति-विक्रम० १ 2. और भी, इस पंक्ति, रेखा-विस्रब्धं क्रियतां वराहततिभिमस्ताक्षतिः प्रकार भी, भी-अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नमतिपल्वले-श० २।५, बलाहकतती: शि० ४१५४, ११५ स्तथा--पंच० ११३१५, रघु० ३।२१ 3. सच, ठीक 2. गण, दल, समूह 3. यज्ञ कृत्य । इसी प्रकार, सचमुच वैसा ही-यदात्थ राजन्यकुमार तरवम् [तन् -क्विप, तुक, पृषो० तत-त्व] (कभी कभी तत्तथा--रघु० ३।४८, मनु०१।४२ 4. (अनुरोध के 'तत्वम्' भी लिखा जाता है) 1. वास्तविक स्थिति या रूप में) ऐसा निश्चित जैसा कि ('यथा' को पहले रख दशा 2. तथ्य,-वयं तत्त्वान्वेषान्मधुकर हतास्त्वं खलु कृती कर) दे० यथा ('यथा' के सहसंबंधी के रूप में 'तथा' ---श० २४ 3. यथार्थ या मूल प्रकृति--संन्यासस्य के कुछ अर्थों के लिए 'यथा' के नी० दे०) तथापि महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्-भग०१८।१, ३।२८, (प्रायः 'यद्यपि' का सहसंबंधी) तो भी' तब भी' 'फिर मनु० १४३,३९६,५।४२ 4. मानव आत्मा की वास्त भी' 'तिस पर भी'-प्रथितं दुष्यन्तस्य चरितं तथाविक प्रकृति या विश्वव्यापी परमात्मा के समनुरूप पीदं न लक्षये—श० ५, बरं महत्याम्रियते पिपासया विराट सृष्टि या भौतिक संसार 5. प्रथम या यथार्थ तथापि नान्यस्य करोत्युपासनाम्-चात० २।६, वपुःसिद्धांत 6. मूलतत्त्व या प्रकृति 7. मन 8. सूर्य 9. वाद्य प्रकर्षादजयद्गुरुं रघुस्तथापि नीचेविनयाददृश्यत-रघु० का भेद विशेष, विलंबित 10. एक प्रकार का नृत्य । ३।३४, ६२, तथेति 'सहमति', 'प्रतिज्ञा' को प्रकट सम-अभियोगः असन्दिग्ध दोषारोप या घोषणा, करता है, तथेति शेषामिव भर्तुराज्ञामादाय मूर्ना मदनः -अर्थः सचाई, वास्तविकता, यथार्थता, वास्तविक प्रतस्थे--कु० ३।२२, रघु० ११९२, ३।६७, तथेति प्रकृति, -,-विद् (वि०) दार्शनिक, ब्रह्मज्ञान का निष्क्रान्तः (नाटकों में) तथैव 'उसी प्रकार' 'ठीक उसी वेत्ता,--न्यासः विष्णु की तंत्रोक्त पूजा में विहित एक भाँति' तथैव च 'उसी ढंग से तथाच 'और इसी अंगन्यास (इसमें शरीर के विभिन्न अंगों पर गह्य प्रकार', 'इसी ढंग से', 'इसी प्रकार कहा गया है अक्षर या अन्य चिन्ह बनाने के साथ कुछ प्रार्थनाएँ कि' तथाहि 'इसी लिए' 'उदाहरणार्थ', इसी कारण बोली जाती हैं) ( यह कहा गया है कि )-तं वेधा विदधे नूनं तस्वतः (अव्य०) [तत्त्व+तस् ] वस्तुतः, सचमुच, ठीक महाभूतसमाधिना, तथाहि सर्वे तस्यासन् परार्थेकफला ठीक---तत्त्वत एनामुपलप्स्ये-०१, मनु०७।१०। गुणा:---रघु० १२२९, श० १२३१ । सम०-कृत तत्र (अव्य०) [तत् । बल] 1. उस स्थान पर, वहाँ, सामने, (वि०) इस प्रकार किया गया,----गत (वि.) 1. ऐसी स्थिति या दशा में होने वाला तथागतायां परिहासउस ओर 2. उस अवसर पर, उन परिस्थितियों में, तब, उस अवस्था में 3. उसके लिए, इसमें निरीतयः पूर्वम्--रघु०६८२ 2. इस गुण का, (तः) 1. बुद्ध यन्मदीयाः प्रजास्तत्र हेतुस्त्वद् ब्रह्मवर्चसम्- -रघु० -काले मितं वाक्यमुदर्कपश्यं तथागतस्येव जनः सुचेताः ११६३ 4. प्राय: 'तद्' के अघि० के रूप के अर्थ में -शि०२०८१ 2. जिन,-गुण (वि०) 1. ऐसे गुणों से युक्त या संपन्न 2. ऐसी अवस्था को प्राप्त, ऐसी प्रयुक्त -मनु० २।११२, ३१६०, ४।१८६, याज्ञ. श२६३, तत्रापि 'तब भी' 'तो भी' (यद्यपि का सह अवस्था में तथाभूतां दृष्ट्वा नपसदसि पाञ्चालतनसंबंधी) तंत्र तत्र 'बहुत से स्थानों पर या विभिन्न याम्-वेणी०१।११,-राजः बुद्ध का विशेषण,---रूप, विषयों में 'यहाँ-वहाँ 'प्रत्येक स्थान पर'... अध्यक्षान्वि -~-रूपिन् (वि०) इस आकार प्रकार का, इस प्रकार विधान्कुर्यात् तत्र तत्र विपश्चित:--- मनु० ७८१ । दिखाई देने वाला,-विध (वि०) इस प्रकार का, ऐसे सम-भवत् (वि०) (स्त्री०-ती) श्रीमान्, महोदय, गुणों का, इस स्वभाव का--तथाविधस्तावदशेषमस्तु श्रद्धेय, आदरणीय, महानुभाव, (सम्मानपूर्ण उपाधि जो सः-कु० ५।८२, रघु० ३१४,-विधम् (अव्य०) नाटकों में उन व्यक्तियों को दी जाती हैं जो वक्ता के 1. इस प्रकार, इस रीति से 2. इसी भांति, समान समीप उपस्थित न हों)----पूज्य तत्रभवानत्रभवांश्च रूप से। भगवानपि; आदिष्टोऽस्मि तत्रभवता काश्यपेन- श० तथात्वम् [ तथा+त्व] 1. ऐसी अवस्था, एसा होना ४, तत्रभवान् काश्यपः श०१, आदि,--स्थ (वि०) 2. वस्तु स्थिति या मूल बात, सचाई। उस स्थान पर खड़ा हुआ या वर्तमान, उस स्थान से तथ्य (वि.) [ तथा+यत् ] यथार्थ, वास्तविक, असली संबद्ध। -प्रियमपि तथ्यमाह प्रियंवदा-श०१,-ध्यम सचाई, तत्रत्य (वि.) [त त्यप्] वहाँ उत्पन्न या जन्मा हुआ, वास्तविकता,सा तथ्यमेवाभिहिता भवेन--कु० उस स्थान से संबद्ध । ३।६३, मनु० ८।२७४ । ५३ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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