________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 / 139 / 19 2. आरम्प, शुरू किया गया---प्रभु-। उहालकायनः [उद्दालक+फा ] उद्दालक की सन्तान / भिरुपित क्षत्य-विश्व० 26 3. उधुर, जागा हुआ दीर्ण (वि.) [ उद्+द+पत ] फटाहा / ---- तां रात्रिमुषितं रामं सुखोरितमरिन्दमम्-रा०६॥ गीपकः [ उद्+दी+बुल ] पक्षिमिशेष / 12111 / गीपका [ उद्+दीप्+ण्वुल+टा ] एक प्रकार की उदित्वर (वि०) 1. ऊपर जाने वाला, ऊपर उठने वाला | चिऊँटी। अविदितगतिवोद्रेकादित्वरविक्रमः-शिव० 141 | उद्देष्य (अ.) [ उद् + दूष् +क्त्वा (ल्यप्) ] सार्वजनिक 106 2. आगे बढ़ने वाला-- गोप्तुं शौरिरुदित्वरत्वर रूप से बदनाम करके या दोषारोपण करके - शि. उदैद् ग्राहग्रहातं गजम्-विश्व० 18 / 2 / 113 / उदे (उद्+आ+इ-अदा० पर०) ऊपर जाना, उठना, उद्देशतः (अ.) [ उद्देश+तसिल ] संकेत करके, विशेषरूप उन्नत होना। से, मुख्य रूप से, स्पष्टरूप से-एष व्रदेशतः प्रोक्तः उदेयिवस् (वि.) [उद्+आ+5 (ईयिवस्) ] उगा - ~भग 10140 / हुआ, उद्भूत, जात-सख उदेयिवान सात्वतां कले | महेशपदम् [त० स०] वह शब्द जो कर्तृकारक के रूप में --भाग० 1031 // 4 / ' प्रयुक्त है - ये यजमाना इत्युदेशर्पदम् -मी० पू० उद्गगरिका (स्त्री०) सुबकियां लेना-का। 6 / 6 / 20 पर शा० मा०। उद्गल (वि.) [न० ब०] गर्दन ऊपर उठाये हुए। | उद्देश्यक (वि०) [उद्+दिश+णिच्+ण्यत् ] सदेत उद्गारकमणिः [ उद्+ग+ण्वुल+मण्+इन् ] प्रवाल, करता हुमा, इंगित से दर्शाता हुआ। मूंगा। त. (वि.) [ उद्+हन्+क्त ] 1. भरपूर, भरा हुआ, उद्गारः [ उद्ग+पश ] (समुद्री) झाग / --पश्चिमेन समुख- ततस्तु धारोक्तमेषकल्पं-रा०६।६७।१४२ तु तं दृष्ट्वा सागरोद्गारसनिभम्-रा० 7.32 / 9 / 2. चमकीला, जगमग होता हुआ,--अन्योन्यं रजसा उद्गारचूर: (पुं०) एक प्रकार का पक्षी। तेन कोशेयोद्धतपाण्डुना-रा०६५५।१९। / उदगीर्ण (वि.) [ उद्+ग+त ] 1. वान्त, वमन किया उखर्व (वि०) [20 स०] अधिकता, प्राचुर्य-आपूर्यत हुआ,-निष्ठ्यूतोद्गीणेवान्तादि गौणवृत्तिव्यपाश्रयम् / ___ बलोवर्वायुवेगरिवार्णवः-रा० 6/74 / 35 / / फाव्या. 2. बाहर निकाला हुआ, निष्कासित 3. प्रेरित, उखत (वि.) [उद्+धून +क्त ] 1. फेंका हुआ, कराया हुआ-काकलीकलकले रुदगीर्णकर्णज्वरा:-गीत. उछाला हुआ,-उतमिव सागरम्-महा० 5 / 19 / 4 1136 4. उठता हुआ, किनारे से बहता हुआ 2. अव्यवस्थित, बिखरा हुआ-आसीद्वनमिवोडतं -उद्गीर्ण हवाणोंषी-२० 1736 / स्त्रीवनं रावणस्य तत्-रा० 5 / 9 / 663. ऊँचा, उगानम् [ उद्++ ल्युट ] साममन्त्रों के उच्चारण में उन्नत - देवदारुभिरुन्तैरूवबाहुमिव स्थितम्-त. एक विशेष अवस्था / 5 / 56 / 29 / उद्गीतक (वि०) [ उद्++त+कन् ] जो ऊँचे स्वर उर ( =उद्+ह) विकृत करना, नष्ट करमासे गायन करता है। .. एष वा सजनामात्यमुखरामि स्थिरो भव-महा० उतपनम् [ उद्+अर्थ+ ल्युट् ] बालों को संयुक्त करने 5.189 / 23 / के लिए पिन ---साभिवीक्ष्य दिशः सर्वा वेण्युग्रथन- | उषित (वि.) [उद्+हष् +क्त] हर्ष के कारण मुत्तमम् - रा० 5/67 / 30 / जिसके रोंगटे खड़े हो गये हों। उपोविका / उद् + ग्रीवा+इनि+कन्+टाप् ] पंजों पर उतरणम् [ उद्+ह+ल्युट् ] प्रतीक्षा करना, आशा करना खड़े होना -उग्रीविकादानमिवान्वभूवन (रोमाणि) / --अपि ते ब्राह्मणा भुक्त्वा गताः सोबरणान् गहान् --201453, कामिमिथुननिधुवनलीला दर्शनार्थ- -महा० 13160 / 14 / मिवोद्ग्रीविकाशतदानखिनेषु प्रदीपेषु-वास। उमारकविधिः (पुं०) [उद्+ह+णिच्+ण्वुल+वि उघट्टनम् [उद्+घट्ट+ल्युट] (अत्याचार का आरंभ। +घा+कि] देने की या भुगतान करने की रीति उद्घोण (वि.) [ब.स.] सूअर की भांति जिसके नथुने / -तत्कथय कथमस्योद्धारकविधिर्भविष्यति-पंच०२। ऊपर को हों-स्फुरदुरोणवदन:-शिव- 2013 / / उदारः [उद्+ह+घञ ] 1. संकलन 2. (खाने के उद्दण्डित (वि.) [ उद् - दण्ड्+क्त ] उठाया हुआ, पश्चात्) जो थालियों में बच जाय, उच्छिष्ट / सम० भक्त -कथा०। -कोशः एक ग्रन्थ का नाम,-विभागः अंशों के उद्दपशास्त्रिन् पन्द्रहवीं शताब्दी का तमिलदेशवासी एक प्रभाग, विभाजन / महान् विद्वान् / | उतारित (वि.) [ उद्+ह+णिच्+क्त ] निष्कासित उहलम (वि.) [उत् + दल + ल्युट ] फाड़ देने वाला।। मुक्त, छुड़ाया हुआ। 156 For Private and Personal Use Only