SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) एत (वि.) (स्त्री०--एता, एनी) रंगविरंगा, चमकीला | एषा [एच् +अ+टाप् ] फलना-फूलना, हर्ष । -तः हरिण या बारासिंघा। एधित (भू० क० कृ०) [एध् + क्त ] 1. विकसित, बढ़ा एत (सर्व.वि.) (पुं०--एषः, स्त्री--एषा, नपुं० | हआ 2. पाला पोसा-मृगशावैः सभमेधितो जनः-श. --एतद्) [ +अदि, तुक्] 1. यह, यहाँ, सामने २।१८ । (वक्ता के निकटतम वस्तु का उल्लेख करना-समी- एनस् (नपुं०) [इ+ असुन्, नुडागमः ] 1. पाप, अपराध, पतरवति चैतदो रूपम् ), इस अर्थ में 'एतद' शब्द कई दोष शि० १४।३५ 2. कुचेष्टा, जुर्म 3. खिन्नता बार पुरुषवाचक सर्वनाम पर बल देने के लिए प्रयुक्त 4. निन्दा, कलंक। होता है,--एषोऽहं कार्यवशादायोध्यिकस्तदानीन्तनश्च | एनस्वत्, एनस्विन् (वि०) [एनस् + मतुप्, व आदेशः, संवृत्तः–उत्तर० १2. यह प्रायः अपने पूर्ववर्ती शब्द | विनि वा] दुष्ट, पापी। की ओर संकेत करता है, विशेषकर जबकि यह 'इदम्' एरण्डः [ आ-ईर् + अण्डच् ] अरंडी का पौधा (बहुत थोड़े या किसी और सर्वनाम के साथ संयुक्त किया जाय पत्तों वाला एक छोटा वृक्ष)---अत एव लो०-निरस्त-एष वै प्रथमः कल्प:-मनु० ३।१४७, इति यदुक्तं | पादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते । तदेतच्चिन्त्यम् 3. यह संबंधबोधक वाक्यखंड में भी | एलकः [ इल+अच्+कन् ] मेढ़ा, दे० 'एडक'। प्रायः प्रयुक्त होता है और उस अवस्था में-संबंधबोधक एलवाल (नपुं०), एलवालुकम [एला+वल+उण ह्रस्वः, बाद में आता है--मनु० ९।२५७, (अव्य०) इस रीति कन् च ] 1. कैथ वृक्ष की सुगंधयुक्त छाल 2. एक से, इस प्रकार, अतः, ध्यान दो,-'एतद्' शब्द उन __रवेदार या दानेदार द्रव्य (जो औषधि या सुगंध के समासों में प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है जो रूप में प्रयुक्त होता है)। प्रायः निगदव्याख्यात या स्वतः स्पष्ट हों- उदा० एलविलः [ इलविला:-अण | कुबेर, दे० 'एलविल'। --°अनन्तरम् इसके तुरन्त बाद, अंत----इस प्रकार | एला [ इल+अच---टाप् ] 1. इलायची का पौधा-एलानां समाप्त करते हुए। सम०---द्वितीय (वि.) जो किसी फलरेणवः, रघु० ४।४७, ६।६४ 2. इलायची (इलाकार्य को दोबारा करे,-----प्रथम (वि.) जो किसी को | यची के बीज)। सम.---.पर्णी लाजवन्ती जाति का पहली बार करे। एक पौधा। एतदीय (वि.) [ एतद्+छ ] इसका, के, की। एलोका [ आ + ईल-+ ईकन्+टाप् ] छोटी इलायची । एतनः [आ+इ+तन ] श्वास, सांस छोड़ना। एव (अव्य०) [इ+बन ] किसी शब्द द्वारा कहे गये एतहि (अव्य०) [इदम् +हिल्, एत आदेशः ] अब, इस विचार पर बल देने के लिए बहुधा इस अव्यय का समय, वर्तमान समय में। प्रयोग होता है 1. ठीक, बिल्कूल, सही तौर पर एतादृश-श,-वृक्ष, (वि.) [स्त्री०- शी,—क्षी] 1. -एवमेव-बिल्कुल ऐसा ही, ठीक इसी प्रकार का ऐसा, इस प्रकार का सर्वेपि नैतादृशाः-भर्तृ० २।। 2. वही, सही, समरूप--अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः ५१ 2. इस प्रकार का। स एव भर्त० २।४०3. केवल, अकेला, मात्र (बहिएतावत् (वि.) [एतद्+वतुप् ] इतना अधिक, इतना करण की भावना रखते हुए)-सा तथ्यमेवाभिहिता बड़ा, इतने अधिक, इतना विस्तृत, इतनी दूर, इस भवेन–कु० ३।६३, केवलमात्र सचाई, सचाई के गुण का या ऐसे प्रकार का- एतावदुक्त्वा विरते मृगे अतिरिक्त और कुछ नहीं 4. पहले ही 5. कठिनाई से, न्द्रे-रघु० २।५१, कु० ६१८९ एतावान्मे विभवो उसो क्षण, ज्यूंही (मुख्यतया -कृदन्तों के साथ)-उपभवन्तं सेवितुम्-मालवि० २, (अव्य०) इतनी दूर, स्थितेयं कल्याणी नाम्नि कीर्तित एव यत् ---रघु० १॥ इतना अधिक, इतने अंश में, इस प्रकार । ८७ 6. की भांति, जैसे कि (समानता प्रकट करते हुए) एष (म्वा० आ०-एधते, एधित) 1. उगना, बढ़ना-पंच. –श्रीस्त एव मेऽस्तु-गण. (=तव इव) और 7. २११६४ 2. फलना-फूलना, सुख में जीवन बिताना सामान्यतः किसी उक्ति पर बल देने के लिए--भवितदावतो सुखमेधेते-पंच० ११३१८, प्रेर० उगवाना, बढ़- व्यमेव तेन-उत्तर० ४, यह बात निश्चित रूप से वाना, अभिवादन करना, सम्मान करना -कु०६।९०। होगी, निम्नांकित अर्थ भी इस शब्द द्वारा प्रकट होते एषः [इन्ध्+घन, नि०] इंधन, स्फुलिलावस्थया वह्नि- हैं 8. अपयश 9. न्यूनता 10. आज्ञा 11. नियंत्रण रेषापेक्ष इव स्थितः-श० ७.१५, शि० २१९९। तथा 12. केवल पूर्ति के लिए। एषतुः[एष+चतु] 1. मनुष्य 2. अग्नि । एवम् (अव्य०) [इ+बम (बा.)] 1. अतः, इसलिए, एचस् (मपुं०) [इन्ध+असि ] इंधन-यथैधांसि समिद्धोऽ । इस रीति से-अस्त्येवम्-पंच० १, यह इस प्रकार निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन -भग० ४।३७ अनलायागुरु- है, एवंवादिनि देवर्षों-कु० ६१८४; ब्रूया एवम्-मेघ० चन्दनैषसे -पु. ८७१। १०१ (जो कुछ बाद में आता है) एवमस्तु--ऐसा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy