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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७० ) पथ श्रेयसामेव पंथा:--भर्त० २।२६, वक्र: पंथाः -मेध०२७ 2. यात्रा, राहगीरी या पर्यटन—जैसा कि 'शिवास्त्रे संतु पंथानः' में (मैं आपफी सुखद यात्रा की कामना करता हूं, भगवान् आपकी यात्रा सफल करें) 3. परास, पहुंच जैसा कि- कर्णपथ, श्रुति', और दर्शन में 4. कार्यपद्धति, आचरण की रेखा, व्यवहारक्रम:--पथः शुचेर्दर्शयितार ईश्वरा मलीमसा- माददते न पद्धतिम्-रघु० ३।४६ 5. संप्रदाय, सिद्धांत 6. नरक का प्रभाग । सम०-देयम सार्वजनिक मार्गों पर लगाया गया राजकर,--द्रुमः खैर का पेड़, ----प्रज्ञ (वि०) मार्गों का जानकार-वाहक (वि.) कर (कः) 1. शिकारी, चिड़ीमार 2. बोझा ढोने वाला, कुली। पथिलः [ पथ् । इलच् ] यात्री, राहगीर, बटोही। पथ्य (वि०) [ पथिन् ।-यत्-+इनो लोपः ] 1. स्वास्थ्य प्रद, स्वास्थ्यवर्धक, कल्याणकारी, उपयोगी (औपधि, आहार, सम्मति आदि) अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:--रामा०, याज्ञ० ३।६५, पथ्यमन्त्रम् 2. योग्य उचित, उपयुक्त,--भ्यम् 1. स्वास्थ्यबर्धक या पौष्टिक आहार जैसा कि 'पथ्याशी स्वामी वर्तते' में 2. कल्याण, कुशलक्षेम-उत्तिष्ठमानस्तु परो नोपेक्ष्यः पथ्यमिच्छता ----शि० २।१०। सम०--अपथ्यम् उन पदार्थों का समूह जो किसी रोग में स्वास्थ्यवर्धक या हानिकर समझे जाते है। पद (फुरा० आ० पदयते) जाना, हिलना-जुलना। ij (दिवा० आ० पद्यते, पन्न-प्रेर०--पादयति-ते, इच्छा० पित्सते) 1. जाना, चलना-फिरना 2. पास जाना, पहुंचना (कर्म० के साथ) 3. हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना -ज्योतिषामाधिपत्यं च प्रभावं चाप्यपद्यत--.-महा०. पालन करना, अनुसरण करना -स्वधर्म पद्यमानास्ते-महा० अनु-1. पीछे चलना, अनुगमन करना, सेवा करना 2. स्नेहशील होना, अन्रक्त होना 3. प्रविष्ट होना, अन्दर जाना 4. अपनाना 5. मालूम करना, देखना, निरीक्षण करना, समझना, अभि, पास जाना, नजदीक होना, पहुंचना-रावणावरजा तत्र राघवं मदनातरा, अभिपेदे निदाघार्ता व्यालीव मलयद्रुमम्-रघु० १२०३२, १९।११ 2. संमिल्लित होना -शि० ३२५ 4. अवलोकन करना, विचार करना, खवाल करना, समझना-क्षणमभ्यपद्यत जनै मृषा गगन गणाधिपति मुतिरिति -शि० ९।२७ 4. सहायता करना, मदद करना, मयाभिपन्नं तम्-महा०पकड़ना, परास्त करना, आक्रमणकरना, दबोच लेना, अधिकार में कर लेगा, ग्रस्त करना - सर्वतश्चाभिन्नैपा धार्तराष्ट्री माचमः, चंडवाताभिपन्नानामुदधीनामिव स्वन:--महा०, दे० 'अभिपन्न । 6. लेना, धारण करना-मन०१३ 7. स्वीकार करना, प्राप्त करना, अभ्युप--, 1. दया करना, सांत्वना देना, आराम पहँचाना, तरस खाना, अनुग्रह करना (कष्ट से) मुक्त करना---कु०४।२५, ५।६१ 2. सहायता मांगना, दीनता प्रकट करना .. सहमत होना, स्वीकृति देना आ--, 1. निकट जाना, की ओर . चलना, पहुँचना--भट्टि० १५॥८१ 2. प्रविष्ट होना, (किसी स्थान या स्थिति को) चले जाना या प्राप्त करना-निर्वेदमापद्यते - मच्छ० १११४, (ऊब जाता है) आपेदिरेऽबरपथं परितः पतंगा:- भामि० १।१७, इसी प्रकार क्षीरं दधिभावमापद्यते-शारी०3. कष्ट फँसना, दुर्भाग्यग्रस्त होना--अर्थधी परित्यज्य यः काममनुवर्तते, एवमापद्य तेक्षिप्रं राजा दशरथी यथा-... रामा० 4. होना, घटित होना-भटिट० ६।३१, प्रेर.----1. प्रकाशित करना, सामने लाना, कार्यान्वित करना, निष्पन्न करना-- रप० २११२ 2. निकालना, जन्म देना, पैदा करना ---लधिमानमापादयति-का० १०५ 3. घटाना, कष्टग्रस्त करना, ले जाना—रघ० ५।५ 4. बदलना 5. नियंत्रण में लाना, उद-, 1. जन्म लेना, पैदा होना, उदय होना, उत्पन्न होना, उगना--- उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा-मा० ११६, मनु० ११७७ 2. होना, घटित होना---प्रेर० --1. पैदा करना, सर्जन करना, जन्म देना, उत्पन्न करना, कार्यान्वित करना, प्रकाशित करना-वस्त्राण्यत्पादयति-पंच० २ 2. सामने लाना, उप-, 1.पहँचना. निकट जाना, पास जाना, पधारना यमुनातटमपपदे पंच०१.हासिल होना,प्राप्त होना, हिस्से में आना-भग०६।३६, १३११८ 3. होना, घटित होना, आ पड़ना, पैदा हो जानादेवि एवमपपद्यते---गाल वि० १, उपपन्ना हि दारेषु प्रभता सर्वतोमुखी--श० ५।२६----रघु० ११६० 4. संभव होना संभाव्य होना--नेश्वरो जगतः कारणमुपद्यते-शारी० कु. ६।६१, ६।१२ ६. उपयुक्त होना, योग्य होना, पर्याप्त होना, अनुरूप समुचित-- (अधि० के साथ) मा क्लैव्यं गच्छ कीन्तेय नैतत्त्वय्यपपद्यते--भग० २।३, १८१७ 6. आक्रमण करना, प्रेर० ....1. किसी स्थिति में लाना, पहुँचाना, प्राप्त कराना--विश्वासमुपपादयति 2. नेतृत्व करना, ले जाना 3. तैयार होना-- रथमपपादयति--वेणी० २ 4. किसी को कोई वस्तु प्रदान करना, प्रस्तुत करना, उपहार देना-रघु० १४१८, १५:१८, १६:३२, याज्ञ. १६३१५ 5. प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, उपार्जन करना, कार्यान्वित करना, काम में लाना, अनुष्ठान करना- यावत मानके शक्यमपापादयितुम् -... बा० ६२, देवकार्यमुपपादयिष्यतः - रघु० १११९१, १७५५ 6. न्याय्य ठहराना, तर्क देना, प्रदर्शित करना, प्रमा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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