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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०४ ) साधन -प्रकीर्णाभिनवोपचारम (राजमार्गम्) रघु 1. जीविका 2. जीवन-निर्वाह का साधन, गुजारा ७।४, ५।४१, १. अतः (पूजा, उत्सव या सजावट आदि या वृत्ति--निन्दितार्थोपजीवनम्-याश० ३।२३६ की) कोई भी आवश्यक वस्तु-सन्मंगलोपंचाराणाम् 3. जीविका का साधन, संपत्ति आदि--किंचिद्दत्वोप-~-रघु० १०।७७, कु. ७।८८, रघु० ६.१, पूजा की । जीवनम्-मनु० ९।२०७। वस्तुओं या उपचारों की संख्या भिन्न-भिन्न (५, १०, | उपजीव्य (वि०) [उप+जी+ ण्यत् ] 1. जीविका प्रदान १६, १८ या ६४) बतलाई गई है 10. व्यवहार, करने वाला-याज्ञ० २२२७ 2. संरक्षक, संरक्षण शील, आचरण –वैश्य-शूद्रोपचारं च-मनु० ११११६ देने वाला 3. (आलं०) लिखने के लिए सामग्री 11. काम में आना, उपयोग 12. धर्मानुष्ठान, संस्कार देने वाला, जिससे कि मनुष्य सामग्री प्राप्त करे ---प्रयक्त पाणिग्रहणोपचारो-कू०७।८६, महावी० -सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति--महा०, ११२४ 13. (क) आलंकारिक या लाक्षणिक प्रयोग, –व्यः 1. संरक्षक 2. स्रोत या प्रामाणिक ग्रंथ (जिससे गौण प्रयोग (विप० 'मुख्य' या 'प्राथमिक भाव') कि मनुष्य सामग्री प्राप्त करे)- इत्यलमुपजीव्यानां -अचेतनेऽपि चेतनवदुपचारदर्शनात्-शारी०, न चास्य मान्यानां व्याख्यानंषु कटाक्षनिक्षेपेण----सा० द० २। करघृतत्व तत्त्वतोऽस्ति इति मुख्यऽपि उपचार एव | उपजोषः, षणम् [उप-+जष+घा, स्यट वा ] 1. स्नेह शरणं स्यात्-काव्य. १० (ख) समता के आधार 2. सुखोपभोग 3. वार-बार करना। पर बना काल्पनिक अभिज्ञान-उभयरूपा चेयं शुद्धा | उपज्ञा [ उप+ज्ञा+अड] 1. अन्तः करण में अपने आप उपचारेणामिश्रितत्वात-काव्य०२ 14. रिश्वत 15. उपजा हुआ ज्ञान, आविष्कार (प्रायः समास में जहाँ बहाना--शि० १०२ 16. प्रार्थना, याचना 17. विसर्गों नपु० समझा जाता है) पाणिनेरुपज्ञा पाणिन्युपक्षं ग्रन्थः के स्थान में स् या प् का होना ..सिद्धा०, प्राचेनसोपज्ञं रामायणम् ---रघु० १५।६३ उपचितिः (स्त्री०) [उप+चि+क्तिन् ] इकट्ठा करना 2. व्यवसाय जो पहले कभी न किया गया हो- लोकेऽ संचय करना, वर्धन, वृद्धि। भूद्यदुपज्ञमेव विदुषां सौजन्यजन्यं यशः -- रघुवंश पर उपचलनम् [उप-चूल+ल्युट ] गरम करना, जलाना । मल्लि० उपच्छदः [ उप-+छ+णिच् -] ढक्कन, चादर । उपढौकनम् [ उप+ढोक् + ल्युट् ] सम्मानपूर्ण भेंट या उपच्छन्दनम् [उप छन्द्-+-णि +ल्युट् ] 1. प्रलोभन | उपहार, नजराना । देकर मनाना या फुसलाना, समझा बुझा कर किसी उपतापः [उप+तप्-घन ] 1. गर्मी, आँच 2. कष्ट, कार्य के लिए उकसाना-उपच्छन्दनरेव स्वं ते दापयितुं दुःख, पीडा, शोक-सर्वथा न कञ्चन न स्पृशन्त्युपतापाः प्रयतिष्यते-दश० ६५ 2. आमंत्रण देना। - का० १३५ 3. संकट, मसीबत 4. बीमारी उपजनः [ उप-+-जन् ! अच् ] 1. जोड़, वृद्धि 2. परिशिष्ट 5. शीघ्रता, हड़बड़ी। 3. उगना, उद्गमस्थान । उपतापनम् [ उप+त+णिच्-ल्युट ] 1. गरम करना उपजल्पनम्-पिल्म् [ उप+जल्प् + ल्युट्, वा ] बात, | 2. कष्ट देना, सताना। बातचीत। उपतापिन् (वि.) [उप-तप-+ णिनि ] 1. तपाने वाला, उपजापः [ उप+जप्+घञ्] 1. चुपचाप कान में फुस- जलाने वाला 2. गर्मी या पीडा को सहन करने वाला, फुसाना या समाचार देना---परकृत्य मुद्रा० २. वीमार रहने वाला। 2. शत्रु के मित्रों के साथ गुप्त बातचीत, फूट के बीज उपतिष्यम् [अत्या० स०] 1. आश्लेपा नक्षत्रपुंज 2. पुनर्वसु बोकर विद्रोह के लिए भड़काना---उपजापः कृतस्तेन नक्षत्र । तानाकोपवतस्त्वयि-शि०२।९९, उपजापसहान् विल उपत्यका [उप+त्यकन-पर्वनस्यासन्नं स्थलमपत्यका घयन् स विधाता नृपतीन्मदोद्धत:-कि०२१४७, १६। - सिद्धा०] पर्वत को नलहटी, निम्नभूभाग-मलया४२ 3. अनक्य, वियोग । दुरुपत्यका: ---- रघु० ४।४६, एते ग्खल हिमवतोगिग्रुपउपजीवक,-विन (वि०) [ उप+जी -- एक्ल, णिनि त्यकारण्यवासिनः सम्प्राप्ताः--०५। वा ] किसी दुसरे के सहारे रहने वाला, से जीविका उपदंशः । उप+देश+घञ ] 1. भूख या प्याम लगाने करने वाला (करण के साथ या समास में)-जाति- वाली वस्तु, चाट, चटनी अचार आदि-- द्विवानपदशामात्रोपजीविनाम्--मनु० १२१११४, ८१२०, नाना- नुपपाद्य-दश० १३३, अग्रमांगोपदंशं पिब नवाणितापण्योपजीविनाम् -९।२५७, धतोपजीयस्मि ....मच्छ ० मवम्-वेणी०३ 2. काटना, इमाग्ना 3. आतशक २,--(पु०) पराश्रित, अनुचर- भीमकान्तनपगुणः रोग। स बभूवोपजीविनाम्--रघु० १११६ । उपदर्शक: [ उप+देश+णिच्+ण्वुल] 1. मार्गदर्शक, उपजीवनम,-जीविका [उप+जी+ल्युटु, क्यु निर्देशक 2. द्वारपाल, साक्षी, गवाह । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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