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( ४०४ )
कवच 3. मकड़ी 4. जोंक 5. विधवा 6. लोहा 7. घूंघट, मुख पर डालने का ऊनी कपड़ा । जालिनी [जाल + इनि + ङीप् ] चित्रों से सुभूषित कमरा । जाल्म ( वि० ) ( स्त्री० -- हमी ) [ जल +णिक् बा० म ]
1. क्रूर, निष्ठुर, कठोर 2. उतावला, अविवेकी, ल्मः ( स्त्री हमी) 1. बदमाश, शठ, लुच्चा, पाजी, कुकर्मी --अपि ज्ञायते कतमेन दिग्भावेन गतः स जाल्म इति - विक्रम ० १ 2. निर्धन आदमी, नीच, अधम । जल्मक ( वि० ) ( स्त्री० - ल्मिका ) [ जाल्म + कन् ] घृणित, नीच, कमीना, तिरस्करणीय ।
जावम्यम् [ जवन + ष्यञ् ] 1. चाल, तेजी 2. शीघ्रता,
त्वरा ।
जाहम् एक प्रत्यय जो शरीर के अङ्गों के अभिधायक संज्ञा शब्दों के अन्त में 'मूल' को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है - कर्णजाहम् - कान की जड़, इसी प्रकार अक्षि ओष्ठ आदि । जाह्नवी जनु + अण् + ङीप् ] गङ्गा नदी का विशेषण । जि (म्वा० पर० ( परा और वि पूर्व आने पर आ०
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जयति, जित) 1. जीतना, हराना, विजय प्राप्त करना, दमन करना - जयति तुलामधिरूढो भास्वानपि जलद पटलानि पञ्च० १।३३० भट्टि० १५/७६, १६२ 2. मात कर देना, आगे बढ़ जाना-- गर्जितानन्तरां वृष्टि सौभाग्येन जिगाय सा – कु० २१५३, रघु० ३।३४ घट० २२, शि० १११९ 3, जीतना ( दिग्विजय करना या जूए में जीतना ), दिग्विजय करके हस्तगत करना - प्रागजीयत घृणा ततो मही- रघु० ११।६५, (यहाँ 'जि' का अर्थ विजय प्राप्त करना भी है) - मनु० ७९६ 4. दमन करना, दबाना, नियन्त्रण रखना ( कामावेग आदि पर ) विजय प्राप्त करना 5. विजयी होना, प्रमुख या सर्वोत्तम बनना ( प्रायः नान्दी श्लोकों या अभिवादन आदि में प्रयुक्त ) - जयतु जयतु महाराजः ( नाटकों में ) स जयति परिणद्धः शक्तिभिः शक्तिनाथः - मा० ५११, जितमुडुपतिना नमः सुरेभ्यः - रत्न० १४, भर्तृ० २१२ गीत० १।१, प्रेर० जापयति, जितवाना, विजय दिलाना, सन्नन्त - जिगीषति जीतने की, हस्तगत करने की, आगे बढ़ जाने की, रीस करने की, होड़ लगाने की इच्छा करना; अधि- जीतना, हराना, पछाड़ना - भर्तृ० १९/२, निस्-- 1. जीतना, हराना - रघु० ३।५१, भट्टि० २५२, ७/९४ याज्ञ० ३।२९२ 2. जीत लेना, दिग्विजय द्वारा हस्तगत करना - मनु० ८ १५४, परा - ( आ० ) 1. हराना, जीतना, विजय प्राप्त करना, दमन करना-यं पराजयसे मूषा-याज्ञ० २०७५ भट्टि०८/९२. खोना, वञ्चित होना 3. जीत लिया जाना या वशीभूत किया जाना, (कुछ) असह्य लगना — अध्ययनात्पराजयते – सिद्धा०, अध्ययन करना
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कठिन या असा लगता है - भट्टि० ८ ७१, वि - (आ० ) 1. जीतना 2. हराना, वशीभूत करना, दमन करना -- व्यजेष्ट षड्वर्गम्- भट्टि० ११२, प्रायस्त्वन्मुखसे वया विजयते विश्वं स पुष्पायुधः - गीत० १०, भट्टि० २३९ १५/३९ 3. मात कर देना, आगे बढ़ जाना- चक्षुर्भेचकमम्बुजं विजयते - विद्धशा० १।३३ 4 जीत लेना, दिग्विजय करके हस्तगत करना - भुजविजितविमानरघु० १२ १०४, १५९, शा० २।१३ 5. विजयी होना, श्रेष्ठ या सर्वोत्तम होना - विजयतां देवः - श० ५, जि: [ जि + डि ] पिशाच । जिगनुः [गम् + लु सन्वद्भावत्वात् द्वित्वम् ] जीवन ।
प्राण,
जिगीषा [ जि+सन् + अ + टापु ] 1. जीतने की, दमन करने की, या वशीभूत करने की इक्छा - यानं सस्मार कौबेरं वैवस्वतजिगीषया - रघु० १५/४५ 2. स्पर्धा प्रतिद्वंद्विता 3. प्रमुखता 4. चेष्टा, व्यवसाय, जीवनचर्या । जिगीषु ( वि० ) [ जि + सन् + उ ] जीतने का इच्छुक । जसा [ अद् + सन् + अ, घसादेशः 1. खाने की इच्छा,
बुभुक्षा 2. हाथपाँव मारना 3. प्रबल उद्योग करना । जिघत्सु (वि० ) [ अद् + सन् + उ घसादेश: [ बुभुक्षु,
भूखा ।
जिघांसा | हन् + सन् + अ + टाप् ] मार डालने की इच्छा --- रघु० १५।१९ ।
जिघांसु [ हन्+ सन् + उ ] मार डालने का इच्छुक, घातक,
--सुः शत्रु, वैरी ।
जिघृक्षा [ ग्रह, + सन् + अ + टाप् ] ग्रहण करने की या
लेने की इच्छा ।
जिन ( दि० ) [ घा+श जिघ्रादेशः ] 1. सूंघने वाला
2. अटकलबाज, अनुमान लगाने वाला, निरीक्षण करने वाला - उदा० मनोजिघ्रः सपत्नीजनः सा० द० । जिज्ञासा | ज्ञा + सन् + अ +टाप् ] जानने की इच्छा, कुतू
हल, कौतुक या ज्ञानेप्सा ।
जिज्ञासु (वि०) [ज्ञा + सन् + उ ] 1. जानने का इच्छुक,
ज्ञानेप्सु, प्रश्नशील- भग० ६/४४2. मुमुक्षु | जित् (वि० ) [ जि + क्विप् ] ( समास के अन्त में प्रयुक्त )
जीतने वाला, परास्त करने वाला, विजय प्राप्त करने वाला — तारकजित्, कंसजित् सहस्रजित् आदि । जित (भू० क० कृ० ) [ जि+क्त] जीता हुआ, अभिभूत,
दमन किया हुआ, ( शत्रु या आवेग आदि) संयत, 2. हस्तगत, हासिल, (दिग्विजय द्वारा) प्राप्त 3. मात दिया हुआ, आगे बढ़ा हुआ 4. वशीभूत, दासीकृत या प्रभावित कामजित श्रीजित आदि । सम अक्षर (वि०) भलीभांति या तुरन्त पढ़ने वाला, अमित्र (वि०) जिसने अपने शत्रुओं को जीत लिया है, जेता विजयी, अरि (वि०) जिसने अपने शत्रुओं पर विजय
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