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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०४ ) कवच 3. मकड़ी 4. जोंक 5. विधवा 6. लोहा 7. घूंघट, मुख पर डालने का ऊनी कपड़ा । जालिनी [जाल + इनि + ङीप् ] चित्रों से सुभूषित कमरा । जाल्म ( वि० ) ( स्त्री० -- हमी ) [ जल +णिक् बा० म ] 1. क्रूर, निष्ठुर, कठोर 2. उतावला, अविवेकी, ल्मः ( स्त्री हमी) 1. बदमाश, शठ, लुच्चा, पाजी, कुकर्मी --अपि ज्ञायते कतमेन दिग्भावेन गतः स जाल्म इति - विक्रम ० १ 2. निर्धन आदमी, नीच, अधम । जल्मक ( वि० ) ( स्त्री० - ल्मिका ) [ जाल्म + कन् ] घृणित, नीच, कमीना, तिरस्करणीय । जावम्यम् [ जवन + ष्यञ् ] 1. चाल, तेजी 2. शीघ्रता, त्वरा । जाहम् एक प्रत्यय जो शरीर के अङ्गों के अभिधायक संज्ञा शब्दों के अन्त में 'मूल' को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है - कर्णजाहम् - कान की जड़, इसी प्रकार अक्षि ओष्ठ आदि । जाह्नवी जनु + अण् + ङीप् ] गङ्गा नदी का विशेषण । जि (म्वा० पर० ( परा और वि पूर्व आने पर आ० - जयति, जित) 1. जीतना, हराना, विजय प्राप्त करना, दमन करना - जयति तुलामधिरूढो भास्वानपि जलद पटलानि पञ्च० १।३३० भट्टि० १५/७६, १६२ 2. मात कर देना, आगे बढ़ जाना-- गर्जितानन्तरां वृष्टि सौभाग्येन जिगाय सा – कु० २१५३, रघु० ३।३४ घट० २२, शि० १११९ 3, जीतना ( दिग्विजय करना या जूए में जीतना ), दिग्विजय करके हस्तगत करना - प्रागजीयत घृणा ततो मही- रघु० ११।६५, (यहाँ 'जि' का अर्थ विजय प्राप्त करना भी है) - मनु० ७९६ 4. दमन करना, दबाना, नियन्त्रण रखना ( कामावेग आदि पर ) विजय प्राप्त करना 5. विजयी होना, प्रमुख या सर्वोत्तम बनना ( प्रायः नान्दी श्लोकों या अभिवादन आदि में प्रयुक्त ) - जयतु जयतु महाराजः ( नाटकों में ) स जयति परिणद्धः शक्तिभिः शक्तिनाथः - मा० ५११, जितमुडुपतिना नमः सुरेभ्यः - रत्न० १४, भर्तृ० २१२ गीत० १।१, प्रेर० जापयति, जितवाना, विजय दिलाना, सन्नन्त - जिगीषति जीतने की, हस्तगत करने की, आगे बढ़ जाने की, रीस करने की, होड़ लगाने की इच्छा करना; अधि- जीतना, हराना, पछाड़ना - भर्तृ० १९/२, निस्-- 1. जीतना, हराना - रघु० ३।५१, भट्टि० २५२, ७/९४ याज्ञ० ३।२९२ 2. जीत लेना, दिग्विजय द्वारा हस्तगत करना - मनु० ८ १५४, परा - ( आ० ) 1. हराना, जीतना, विजय प्राप्त करना, दमन करना-यं पराजयसे मूषा-याज्ञ० २०७५ भट्टि०८/९२. खोना, वञ्चित होना 3. जीत लिया जाना या वशीभूत किया जाना, (कुछ) असह्य लगना — अध्ययनात्पराजयते – सिद्धा०, अध्ययन करना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कठिन या असा लगता है - भट्टि० ८ ७१, वि - (आ० ) 1. जीतना 2. हराना, वशीभूत करना, दमन करना -- व्यजेष्ट षड्वर्गम्- भट्टि० ११२, प्रायस्त्वन्मुखसे वया विजयते विश्वं स पुष्पायुधः - गीत० १०, भट्टि० २३९ १५/३९ 3. मात कर देना, आगे बढ़ जाना- चक्षुर्भेचकमम्बुजं विजयते - विद्धशा० १।३३ 4 जीत लेना, दिग्विजय करके हस्तगत करना - भुजविजितविमानरघु० १२ १०४, १५९, शा० २।१३ 5. विजयी होना, श्रेष्ठ या सर्वोत्तम होना - विजयतां देवः - श० ५, जि: [ जि + डि ] पिशाच । जिगनुः [गम् + लु सन्वद्भावत्वात् द्वित्वम् ] जीवन । प्राण, जिगीषा [ जि+सन् + अ + टापु ] 1. जीतने की, दमन करने की, या वशीभूत करने की इक्छा - यानं सस्मार कौबेरं वैवस्वतजिगीषया - रघु० १५/४५ 2. स्पर्धा प्रतिद्वंद्विता 3. प्रमुखता 4. चेष्टा, व्यवसाय, जीवनचर्या । जिगीषु ( वि० ) [ जि + सन् + उ ] जीतने का इच्छुक । जसा [ अद् + सन् + अ, घसादेशः 1. खाने की इच्छा, बुभुक्षा 2. हाथपाँव मारना 3. प्रबल उद्योग करना । जिघत्सु (वि० ) [ अद् + सन् + उ घसादेश: [ बुभुक्षु, भूखा । जिघांसा | हन् + सन् + अ + टाप् ] मार डालने की इच्छा --- रघु० १५।१९ । जिघांसु [ हन्+ सन् + उ ] मार डालने का इच्छुक, घातक, --सुः शत्रु, वैरी । जिघृक्षा [ ग्रह, + सन् + अ + टाप् ] ग्रहण करने की या लेने की इच्छा । जिन ( दि० ) [ घा+श जिघ्रादेशः ] 1. सूंघने वाला 2. अटकलबाज, अनुमान लगाने वाला, निरीक्षण करने वाला - उदा० मनोजिघ्रः सपत्नीजनः सा० द० । जिज्ञासा | ज्ञा + सन् + अ +टाप् ] जानने की इच्छा, कुतू हल, कौतुक या ज्ञानेप्सा । जिज्ञासु (वि०) [ज्ञा + सन् + उ ] 1. जानने का इच्छुक, ज्ञानेप्सु, प्रश्नशील- भग० ६/४४2. मुमुक्षु | जित् (वि० ) [ जि + क्विप् ] ( समास के अन्त में प्रयुक्त ) जीतने वाला, परास्त करने वाला, विजय प्राप्त करने वाला — तारकजित्, कंसजित् सहस्रजित् आदि । जित (भू० क० कृ० ) [ जि+क्त] जीता हुआ, अभिभूत, दमन किया हुआ, ( शत्रु या आवेग आदि) संयत, 2. हस्तगत, हासिल, (दिग्विजय द्वारा) प्राप्त 3. मात दिया हुआ, आगे बढ़ा हुआ 4. वशीभूत, दासीकृत या प्रभावित कामजित श्रीजित आदि । सम अक्षर (वि०) भलीभांति या तुरन्त पढ़ने वाला, अमित्र (वि०) जिसने अपने शत्रुओं को जीत लिया है, जेता विजयी, अरि (वि०) जिसने अपने शत्रुओं पर विजय For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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