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बुद्ध ।
मंशयित (पुं०) [अंश्+णिच् + तृच ] विभाजक, | जाना, प्रयाण करना, आरम्भ करना, प्रेर० 1 भेजना बांटने वाला।
2 चमकना 3 बोलना। अंशल (वि.) [अंशं लाति--ला+क] साझीदार, | अंहतिः ती (स्त्री०) [हन+अति-अंहादेशश्च 1 भेंट, हिस्सा पाने का अधिकारी। 2=अंसल दे०
उपहार 2 व्याकुलता, कष्ट, चिंता, दुःख, बीमारी अंशिन (वि.) (अंश् + इनि) 1 हिस्सेदार, सहदायभागी, | (वेद०)।।
-(पुनर्विभागकरणे) सर्व वा स्यु: समांशिनः,- याज्ञ० अंहस् (नपुं०)-(अंहः-हसी आदि) [अम्+असुन हुक च २।११४, 2 भागों वाला, साझीदार ।
1 पाप-सहसा संहतिमहसां विहन्तुं...अलम् - कि० अंशुः [ अंश+कु] 1 किरण, प्रकाशकिरण, पंड, धर्म° ५।१७ 2 व्याकुलता, कष्ट, चिन्ता ।
गरम किरणों वाला, सूर्य,-सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम् | अंहितिः - ती (स्त्री०) [अंह ---क्तिन् ग्रहादित्वात् इट्] --कु. ११३२, चमक, दमक 2 बिन्दु या किनारा 3 उपहार, दान । एक छोटा या सूक्ष्म कण 4 धागे का छोर 5 पोशाक, अंहिः (अंह+क्रिन्-अंहति गच्छत्यनेन) 1 पैर 2 पेड़ की सजावट, परिधान 6 गति। सम-उदकम् ओस का जड़ तु० अंघ्रि, 3 चार की संख्या । सम० --पः जड़ पानी, जालम् रश्मिपुंज या प्रभामण्डल,- घरः, (पर) से पीने वाला, वृक्ष,-स्कन्धः पैर के तलवे का -पतिः,-भूत, बाणः,-भर्त-स्वामिन --हस्त:-सूर्य ऊपरी हिस्सा । (किरणों को धारण करने वाला या उनका स्वामी), अक् (भ्वा० पर० अकति, अकित) जाना, सांप की तरह --पट्टम् एक प्रकार का रेशमी कपड़ा, --माला | टेढ़ा-मेढ़ा चलना।
प्रकाश की माला, प्रभामण्डल, - मालिन् (पुं०) सूर्य । | अकम [न कम--सूखम सुख का अभाव, पीड़ा, विपत्ति, पाप । अंशकम् [अंशु+क-अंशवः सूत्राणि विषया यस्य ] 1
अकच (वि.) [न. ब.] गंजा-छः केतु (अवपतनशील कपड़ा, सामान्यत: पोशाक। सितांशका-विक्रम०३।१२
शिरोबिंदु)। यत्रांशुकाक्षेपविलज्जितानाम्-कु०२१४, श० १२३२;
अकनिष्ठ (वि.)न कनिष्टः-न. त०] जो सबसे छोटा न 2 महीन या सफ़ेद कपड़ा-मेघ० ६४, प्रायः रेशमी हो (जैसे सबसे बदा मंझला) बड़ा, श्रेष्ठ -- एठः गौतम कपड़ा या मलमल । 3 ऊपर ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, लबादा, अधोवस्त्र भी, 4 पत्ता 5 प्रकाश की मंद लो।
अकन्या [ न. त.] , कुमारी न हो, जो अब कुमारी न अंशुमत् (वि.) [अंशु+मतुप्] 1 प्रभायुक्त, चमकदार,
रही हो। -ज्योतिषां रविरंशुमान्---भग०१०।२१ 2 नोकदार ।
अकर (वि.) (न. ब.) 1 लला, अपाहिज 2 कर या चुंगी -----मान् (पुं०) 1 सूर्य, बालखिल्यैरिवांशुमान्-रघु०
से मुक्त 3 अक्रिय, निकम्मा, अकर्मण्य । १५।१०; 2 सगर का पौत्र, दिलीप का पिता और अकरणम् [ कृ भावे ल्यट् न. त.] अक्रिया, कार्य का अभाव असमंजस का पुत्र ।
अकरणात् मन्दकरणं श्रेयः -तु. अंग्रेजी की कहावतें अंशुमत्फला-केले का पौधा ।
'सम थिंग इज बैटर दन नथिंग'-( Something is अंशुल (वि.) [अंशुं प्रभां प्रतिभा वा लाति-ला+क] | better than nothing%3) बैटर लेट दैन नैवर, चमकदार, प्रभायुक्त -ल: चाणक्य मुनि ।।
( Better late than never) न होने से कुछ होना अस् (चु० पर० अंसयति-अंसापयति) दे० अंश । भला है ; कभी न होने से देर में होना अच्छा है। अंसः [अंस-अच्] 1 भाग, खंड दे० अंश, 2 कंधा, अंसफलक, अकरणिः (स्त्री०) [नत्र ++अनिः] असफलता,
कंधे की हड्डी। सम० -कूटः बैल या सांड का डिल्ल निराशा, अप्राप्ति, अधिकांशत: कोसने या शाप देने में अथवा कुब्ब, कंघों के बीच का उभार,---त्रम् 1 कंधों प्रयुक्त, -तस्याकरणिरेवास्तु --सिद्धा० भगवान् करे की रक्षा के लिए कवच 2 धनुष, फलकः रीढ़ का उसकी आशा पूरी न हो, उसे असफलता मिले । ऊपरी भाग –भार: कंधे पर रखा गया भार या जूआ,- | अकर्ण (वि.) [न. ब.] 1 जिसके कान न हों, बहरा 2 भारिक, --भारिन् (वि.) ( अंसे ) कंधे पर जुआ कर्णरहित --र्णः सांप । या भार ढोने वाला विवतिन् ( वि० ) कंधों की अकर्तन (वि.) [न +कृत् + ल्युट न. ब.] ठिंगना। ओर मुड़ा हुआ,-मुखमंसविवति पक्ष्मलाक्ष्याः,-श० अकर्मन् (वि.) (न. ब.) 1 निष्क्रिय, आलसी, निकम्मा 2 ३।२४।
दुष्ट, पतित 3 (व्या०) अकर्मक ---म(नपुं०) 1 कार्य अंसल (वि.) [अंस+लच्] बलवान, हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली का अभाव 2 अन्चित कार्य, दोष,पाप । सम०... -अन्वित
मज़बूत कंधों बाला,-युवा युगध्यायतबाहुरंसल: -- (वि.)1 जिसके पास काम न हो, खाली, निठल्ला 2 रघु० ३।३४।
अपराधी,--कृत् (वि०) कर्म से मुक्त या अनुचित कार्य बहू (म्वा० आ० अंहते, अंहितुं, अंहित) जाना, समीप | करनेवाला,-भोगः कर्मफल भोगने से मुक्ति का अनुभव ।
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