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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुष्यम् , द्वतावस्था दो पर अधिक स्वार्थ अण्] उभ्यम् WEATI ( ४८६ ) करने वाला,-णः शत्रु,-णम् घृणा, जुगुप्सा, शत्रुता, | की अवस्था या प्रकृति 2. दो खण्ड, विभिन्नता, अरुचि। द्विधाभाव 3. संदेह, अनिश्चितता, डाँवाडोल होना वेषिन्, बेष्ट (वि) [द्वेष+इनि, द्विष् + तृच्] घृणा करने । निलम्बन,-धतद्वधीभावकातरं मे मन:-श०१4. दुविधा वाला, (पुं०) शत्रु ।। 5. विदेश नीति के छ: गुणों में से एक (कुछ के मताद्वेष्य (सं० कृ.) [द्विष + ण्यत्] 1. घृणा के योग्य, 2. नुसार इसका अर्थ है-दो तरह का व्यवहार, दुरंगापन, घिनौना, घृणित, अरुचिकर-रघु० १।२८,--व्यः बाहर से शत्रु के साथ मित्र जैसे संबंध रचना-बलिशत्रु भग०६।९, ९।२९, मनु० ९।३०७ । नोद्विषतोर्मध्ये वाचात्मानं समर्पयन, द्वैधीभावेन द्वैगुणिः- [द्विगुण+ठक्] सूदखोर जो शत-प्रतिशत ब्याज तिष्टेत्तु काकाक्षिवदलक्षितः; दूसरों के मतानुसार लेता है। शत्रु की सेना में फूट डालना और अपने से बलवान् द्वैगुण्यम् [द्विगुण+व्या ] 1. दुगुनी राशि मूल्य या माप शत्रु का छोटी२ टुकड़ियों में मुकाबला करना तथा 2. द्वित्व, द्वैतावस्था 3. तीन गुणों (अर्थात् सत्त्व, आक्रमण द्वारा उसे दुःखी करना-द्वैधीभावः स्वबलस्य रजस् और तमस् ) में से दो पर अधिकार रखना। द्विधा करणम्-याज्ञ० ११३४७ पर मिता०, तु० द्वतम् [द्विघा इतम् द्वितम्, तस्य भावः स्वार्थे अण] मनु०७१७३, व १६० से। 1. द्वित्व 2. द्वैतवाद (दर्श०) दो विशद नियमों का ध्यम् [ द्विघा+व्य] 1. दुरंगी चाल 2. विविधता, प्रकथन, जैसे कि जीव और प्रकृति, ब्रह्म और विश्व, विभिन्नता। आत्मा और परमात्मा एक दूसरे से भिन्न है-तू० द्रुप (वि०) (स्त्री०-पी) [द्वीप+अण्] 1. टापू से 'अद्वत'--कि शास्त्र श्रवणेन यस्य गलति द्वतान्धकारो संबंध या टापू पर रहने वाला 2. शेर से संबंध रखने त्करः- भामि० ११८६ 3. एक जंगल का नाम । वाला, शेर की खाल का बना हआ या व्याघ्र की खाल सम०-वनम् एक जंगल का नाम--कि० १११, से ढका हुआ,-पः शेर की खाल से ढकी हई गाड़ी। --वादिन् (पुं०) वह दार्शनिक जो द्वैतसिद्धान्त को द्वैपक्षम् [द्विपक्ष+अण ] दो दल, दो टोलियां मानता है। द्वैपायनः [द्वीपायन+अण् टापू में उत्पन्न, वेदव्यास। द्वैतिन् (पु.) [द्वैत-+ इनि] द्वैतवादी दार्शनिक । द्वप्य (वि०) (स्त्री०--प्या,---प्यी) [द्वीप+य ] टापू द्वतीयीक (वि०) (स्त्री० --की) [द्वितीय+ ईकक् ] निवासी या टापू से संबन्ध-शि० ३।७६ । दूसरा-द्वतोयीकतया मितोऽयमगमत्तस्य प्रबन्धे महा- ! ईमातुर (वि.) [ द्विमातृ-+अण् ] दो माताओं वाला, काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते स! निसर्गोज्ज्वल:-नै० अर्थात् जन्मदात्री माता तथा सौतेली माता,-: २।११०, तु० तार्तीयीक । 1. गणेश का नाम 2. जरासंघ का नाम-हते हिडिंबरिद्वेध (वि०) (स्त्री०-धी) [ द्वि-धमुञ ] दोहरा, पुणा राज्ञि द्वैमातुरे युधि-शि० २।६० । दुगुना (द्वैधीभू-दो भागों में विभक्त होना, खण्ड २ | द्वैमातृक (वि०) (स्त्री०-को) [द्विमातृक+अण् ] (वह होना, द्विविधा में पड़ना, मन में अनिश्चित होना), देश) जहाँ वर्षा तथा नदी दोनों का जल खेती के ---धम् 1. द्वैतावस्था, दोहरी प्रकृति या अवस्था काम आता हो (तु० 'देवमातक')। 2. दो भागों में वियुक्ति 3. दुगुने साधन, गौण आर- द्वैरथम् [ द्विरथ+अण् ] 1. दो रथारोहियों का एकाकी क्षण 4. विविधता, भिन्नता, संघर्ष, विवाद, विभेद युद्ध 2. एकल युद्ध,-थः शत्रु । -~-श्रुतिद्वधं तु यत्र स्यात् तत्र धर्मावुभौ स्मृतौ-मनु० द्वराज्यम् [ द्विराज्य+व्या ] दो राजाओं में बँटा हुआ २।१४, ९।३२, याज्ञ, २।७८ 5. संदेह, अनिश्चितता उपनिवेश। ---भग० ५।२५, वेणी० ६।४४ 6. दो प्रकार का | द्वैवार्षिक (वि.) [द्विवर्ष-ठक् ] प्रति दूसरे वर्ष होने व्यवहार, दुरंगीनीति, विदेशनीति के छ: प्रकारों में से | एक, दे० नी. द्वैधीभाव और गुण । वैविध्यम् [द्विविध+ष्यत्र ] 1. द्वैतता, दुरंगी प्रकृति, द्वैधीभावः [ द्वैध+च्चि+भू+घञ ] 1. द्वैतता, दो प्रकार | 2. विभिन्नता, विविधता, भिन्नता । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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