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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमुचिः [न-मच- इन 1. एक दैत्य जिसे इन्द्र ने मार (0) राज नीतिशास्त्र पारंगत--विद (पं०) गिराया था। बमचे नमुचेररये शिर:-रघु० --विशारदः राजनयिक, राजनीतिज्ञ-शास्त्रम् ९।२२, (जब इन्द्र ने असुरों पर विजय प्राप्त की तो 1. राजनीतिशास्त्र, 2. राजनीति का या राजनीतिक नमुचि नामक एक असुर ने इन्द्र का डटकर मुकाबला ! अर्थशास्त्र का कोई ग्रन्थ 3. नीतिशास्त्र..... शालिन् किया और अन्त में इन्द्र को बन्दी बना लिया। (वि.) न्यायपूर्ण, न्यायपरायण कि० ५।२४ । उस दैत्य ने इन्द्र से कहा कि यदि तुम यह प्रतिज्ञा नयनम् [नी ल्युट ] 1. मार्ग दर्शन, निर्देशन, संचालन, करो कि 'न मैं तुम्हें दिन में मारूँगा न रात को, न प्रबन्धन 2. लेना, निकट लाना, खींचना 3. हकमत पानी में न सूखे में तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। इन्द्र ने करना, शारान करना 4. प्रापण 5. आँख। सम० प्रतिज्ञा की और फलतः उसे छोड़ दिया गया। फिर ----अभिराम (वि.) आँखों को प्रसन्न करने वाला, इन्द्र ने संध्या समय पानी के झाग के साथ (जो न प्रियदर्शन (-मः) चाँद,---उत्सवः 1. दीपक, लैंप पानी था न सूखापन नमुचि का सिर काट डाला । 2. आँख को प्रसन्नता 3. कोई प्रिय वस्तु उपांतः दूसरे एक कथन के अनुसार नमचि इन्द्र का मित्र था आँख का कोना--कु० ४१२३, - गोचर (वि०) उसने एक बार इन्द्र की शक्ति को पी लिया दृश्यमानं, दृष्टि-परास के अन्तर्गत,-छनः पलक,--पयः और उसे निर्बल एवं अशक्त बना दिया, फिर दुष्टि-परास----चुटम् अक्षिगोलक,--विषयः 1. कोई अश्विनीकुमारों (सरस्वती ने भी) ने इन्द्र को वज दश्यमान पदार्थ 2. क्षितिज,-सलिलम ओम् मेष० ३९ । दिया जिससे उसने नमुचि का सिर काट डाला) | | नरः । न+अब्] 1. मनुष्य, पुमान् पुरुष संयोजयति 2. कामदेव । विद्येच नोचगागि नरं सरित, समुद्रमिय दुर्घर्ष नपं. नभेरुः [नम् + एरु] एक वृक्ष का नाम, रुद्राक्ष या सुरपुन्नाग भाग्यगतः परम् -- हि०प्र० ५, मनु० १९६, २२१३ गणा नमेप्रसवावतसाः --तु० ११५५, ३१४३, रघ० 2. शतरंज का मोहरा 3. धूपघड़ी की कील, शंकु ४।७४ । 4. परमात्मा, नित्यपुरुष 5. दोनों हाथों को दोनों नम्र (पि०) [नमं+र] । विनीत, प्रणतिशील, झुका हुमा, ओर सीधा फैलाकर, हाय के एक सिरे से दूसरे हाथ विनत, नीचे लटकने वाला भवंति नम्रास्तरवः फला- के सिरे तक की लम्बाई 6. एक पात्रीन ऋषि का गर्म :... श० ५।१२, स्तोकनम्रा स्तनाभ्या-मेघ ० ८२, नाम 7. अर्जुन का नाम -- दे० नी. नरनारायण । पंच० १।१०६, रत्न० ११११ 2. प्रणतिशील, सादर सम०--अत्रियः, -- अधिपतिः, ...- ईशः, -- ईश्वरः अभिवादनशील,...-अभूच्छ नम्रः प्रणिपात शिक्षया - देवः, - पतिः पाल. राजा, भग० १०।२७, मनु० .....रधु० ३।२५, इत्युच्यते तागिरुमा स्म नम्रा --कु० ७.१३, रघु० २२५, ३१४२, ७६२, मध० ३७, ७।२८ 3. सुशील, विनयो, विनयशील, श्रद्धाल याज्ञ० ११३१०, अंतक: मृत्यु, अवनः विष्णु का --गंध० ५५ 4. कुटिल, वक्र 5. पूजा करने वाला विशेषण,---अंशः रास, पिशाच,----इन्द्र: 1. राजा --- 6. भक्त, उपासक । रघु० २।१८, ३४३३, ६१८०, मनु० ९।२५३ 2. वैच, नय (भा० आ०-नयते) 1. जाना 2. रक्षा करना । विषनाशक औषधियों का विक्रेता, बिनाशक --तेनयः नी--अन् । 1. निर्देशन, मार्गदर्श, प्रबन्धन कश्चिन्नरेन्द्राभिमानी तां निर्वण्य --- दश० ५१, 2. व्यवहार, नित्यचर्या, आचरण, दिनचर्या-जैसा कि सुनिग्रहा नरेन्द्रेण फणोद्रा इव राजव:-----शि० २।८८, दुर्नय में 3. दूरदर्शिता, अग्रदृष्टि 4. नीति, शासन (यहाँ शब्द दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है),--उत्तमः निमयक बुद्धिमत्ता, राजनीतिज्ञता, नागरिक प्रशासन विष्णु का विशेषण, ऋषभः 'मनुष्यों में श्रेष्ठ' राजराज्य की नीति - नयप्रचारं व्यवहार दुष्टताम् - कुमार, राजा,--कचालः मनुष्य की खोपड़ी, --कोलक: मच्छ० ११७, नवगुणोपचितामिव भूपतेः सदुपकार आध्यात्मिक गुरु की हत्या करने वाला, केशरिन् फला श्रियमर्थिनः-- रघु० ९।२७ 5. नैतिकता, न्याय, (पुं०) विष्णु का चौथा अवतार, तु० 'नसिह' को नो०, न्यायपरता, पाय्यता चलति नयान्न जिगीषतां हि --विष् (पुं०) राक्षस, पिशाच-भट्टि० १५।९४. चेतः .... कि० १०।२९, २१३, ६।३८,१६।४२ 6. रूप- ---नारायणः कृष्णा का नाम, (द्वि० व०–णी) मूलरेखा, ढांचा, योजना-मुदा०६।११,७।९ 7. सिद्धांत रूप से दोनों एक ही माने जाते थे, परन्तु पुराणों वाक्य, नियम 8. क्रम, प्रणाली, रीति 9. पद्धति, वाद, और महाकाव्यों में दो स्वतंत्र माने जाने लगेसम्मति 10. दार्शनिक पद्धति -वैशेषिके नये - नर को अर्जुन का समरूप तथा कृष्ण का नारायण भाषा०, १०५ । सन०.--कोविद् (वि०) नीति का रूप (कुछ स्थानों पर इन्हें 'देवो' पूर्वदेवा' 'ऋषी' कुशल, दूरदर्शी - चक्षुस् (वि०) शासमय अग्रदृष्टि या 'ऋषिसत्तमौ' कहते है, कहा जाता है कि यह रखने वाला, बुद्धिमान्, दूरदर्शी --रघु० १५५ --नेतृ दोनों हिमालय पर्वत कड़ी साधना और तपस्या किया For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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