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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवगुरु बृहस्पति का विशेषण,—इन्द्रः,--ईशः 1. इन्द्र | का विशेषण 2. शिव का विशेषण,-उद्यानम् 1. दिव्य । बाग 2. नन्दन वन 3. मन्दिर का निकटवर्ती बाग, --ऋषिः (देवर्षिः) 1. सन्त जिसने देवत्व प्राप्त कर लिया है, दिव्य ऋषि, प्रथा, अत्रि, भग, पुलस्त्य, अंगिरस आदि--एवं यातिनि देवर्षी ----कु०६।८४ (अर्थात् अंगिरम) 2. नारद का विशेषण-भग०१०११३, २६, -~ओकस् (न०) सुमेरु पर्वत, ----कन्या स्वर्गीय देवी, अप्सरा, कर्मन् (नपुं०) - कार्यम् 1. धार्मिक कृत्य या संस्कार 2. देवों को पूजा, काष्ठम् देवदारु का वृक्ष,-कुण्डस् प्राकृतिक झरना,- कुलम् 1. मन्दिर 2. देवों का समूह,-कुल्या स्वर्गीय गंगा,-कुसुसम् लौंग, --खातम्,--खातकम् 1. पर्वतों में बनी एक प्राकृतिक गुफा 2. एक प्राकृतिक तालाब या जलाशय – मनु० ४।२०३ 3. मन्दिर का निकटवर्ती तालाब, विलम् एक गुफ़ा, कन्दरा,--गणः देवों की एक श्रेणी,-गणिका अप्सरा,-गर्जनम् बादल की गड़गड़ाहट,-गायनः स्वगीय गायक, गन्धर्व,---गिरिः एक पहाड़ का नाम-मेघ० ४२, ---गुरुः 1. (देवों के पिता) कश्यप का विशेषण 2. (देवों के गुरु) बहस्पति का विशेषण, ही सरस्वती या उसके किनारे पर स्थित स्थान का विशेषण, --गृहम 1. भन्दिर 2. राज-प्रासाद,-चर्या देवों की पूजा या सेवा, ..-चिकित्सकौ (द्वि०व०) देवों के वैद्य अश्विनीकुमार, -- छन्दः १०० लड़ की मोतियों की माला, तरुः 1. गूलर का वृक्ष 2. स्वर्गीय वृक्षों (मंदार, पारिजात, संतान कल्प और हरिचंदन) में से एक, -...ताड: 1. आग 2. राहु का विशेषण,-वत्तः 1. अर्जुन के शंख का नाम --भग० १२१५ 2. कोई व्यक्ति (अनिश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त) देवदत्तः पचति, पीनो देवदत्तः दिवा न भुक्ते- आदि, -.--.दार (०, नपुं०) देवदारु की जाति का पेड़-कू० ११५४, रघु० २।३६,~दासः मन्दिर का सेवक (-सी) 1. मन्दिर या देवों को सेविका 2. वेश्या (जिसे मन्दिर में नाचने के लिए लगाया गया हो),--दीपः आँख, ---दूतः दिव्य संदेशवाहक, देवदूत, दुंदुभिः 1. दिव्य ढोल 2. लाल फूलों वाला तुलसी का पौधा,--देवः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. शिव-कु० ११५२ 3. विष्णु, -द्रोणी देवमति का जलस,--धर्मः धार्मिक कर्तव्य या पद,-नदी 1. गंगा 2. कोई भी पावन नदी--मन० २।१७, --नन्दिन् (पुं०) इन्द्र के द्वारपाल का नाम, -नागरी एक लिपि का नाम जिसमें प्रायः संस्कृत भाषा लिखी जाती है,-निकायः देवावास, स्वर्ग, -निन्दकः देवताओं को निन्दा करने वाला, नास्तिक, —निमित (वि०) देवता द्वारा रचित, प्राकृतिक, --पतिः इन्द्र का विशेषण,-पथः 1. स्वर्गीय मार्ग । आकाश, अन्तरिक्ष 2. छायापथ,–पशुः देवता के नाम पर स्वच्छंद छोड़ा हुआ पशु,-पुर,—पुरी (स्त्री०) अमरावती का विशेषण, इन्द्र की नगरी,-पूज्यः बृहस्पति का विशेषण,-प्रतिकृतिः (स्त्री०)-प्रतिभा देवमूर्ति, देवता की प्रतिमा,-प्रश्नः ग्रहादिसंबंधी जिज्ञासा, भविष्य सम्बन्धी प्रश्न, भविष्य की बातें बतलाना, -प्रियः देवों को प्रिय, शिव का विशेषण (देवानांप्रियः) एक अनियमित समास, इसका अर्थ है 1. बकरा 2. मूढ, (पशु की भांति जड-जैसाकि 'तेऽप्यतात्पर्यज्ञा देवानां प्रियाः' काव्य०),-बलिः देवताओं को दी जाने वाली आहुति,-ब्रह्मन् (पुं०) नारद का विशेषण, ब्राह्मणः 1. वह ब्राह्मण जो अपना निर्वाह मन्दिर से प्राप्त आय से कर लेता है, 2. आदरणीय ब्राह्मण,-भवनम् 1. स्वर्ग 2. पन्दिर 3. गूलर का वृक्ष,-भूमिः (स्त्री०) स्वर्ग,-भूतिः (स्त्री०) गंगा का विशेषण,-भूयम् देवत्व, दिव्यप्रकृति, भूत् (पुं०) 1. विष्णु का विशेषण 2. इन्द्र का विशेषण,-मणिः 1. विष्णु की मणि, कौस्तुभ 2. सूर्य,-मातक (वि.) वृष्टि के देवता तथा बादल ही जिसकी प्रतिपालिका माता हो, जिसे केवल वर्षा का जल ही लभ्य हो, जो सिंचाई को छोड़कर केवल वर्षा के जल पर ही निर्भर हो, (वह देश) जो और प्रकार की जलव्यवस्था से वंचित हो-देशौ नद्यम्बुवृष्टघम्बुसंपन्नव्रीहिपालितः, स्यान्नदीमातृको देवमातृकश्च यथाक्रमम्-अमर०, तु०-वितन्वति क्षेममदेवमातृकाः (अर्थात् नदीमातृकाः) चिराय तस्मिन् कुरवश्चकासते ---कि० १११७, मानकः विष्णु की मणि जिसे कौस्तुभ कहते है,-मुनिः दिव्य ऋषि,-यजनम् यज्ञभूमि, यज्ञस्थली-देवयजनसंभवे सीते-उत्तर०४,-यजिः (वि०) देवताओं के आहति देने वाला,-यज्ञः वह हवन जिसमें वरिष्ठ देवताओं के निमित्त अग्नि में आहुति दी जाती है, (गृहस्थों के पाँच नैत्यिक यज्ञों में से एक--मनु० ३३८१, ८५-दे० पंचयज्ञ),-यात्रा किसी देवप्रतिमा का जलूस, या सवारी निकालने का उत्सव,—यानम्, ---रथः दिव्यरथ---,युगम् चार युगों में से एक, कृतयुग, सतयुग,-योनिः अतिमानव प्राणी, उपदेव 2. दिव्य उत्पत्ति वाला, योषा अप्सरा-रहस्यम् देवी रज या रहस्य--राज,-राजः इन्द्र का विशेषण, लता नवमल्लिका लता, नेवारी-लिङ्गम देवता की मूर्ति या प्रतिमा,-लोकः स्वर्गलोक, दिव्य-लोक मन० ४११८२, -वक्त्रम् आग का विशेषण,-वर्मन् (नपुं०) आकाश, --वकिः , --शिल्पिन् (पुं०) विश्वकर्मा, देवताओं का शिल्पी-वाणी दिव्य वाणी, आकाशवाणी, वाहनः अग्नि का विशेषण, व्रतम् धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक व्रत (तः) 1. भीष्म का विशेषण 2. कार्तिकेय का विशेषण,-शत्रुः राक्षस,-शुनी देवों की कुतिया सरमा ६० For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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