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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह कन्या जो रजस्वला हो गई हो,-व्यतिकर (वि.) दे (भ्वा० आ० दयते, दात--इच्छा दित्सते) रक्षा करना, 1. जिसने कष्ट और मुसीबते झेली हों 2. जो आने | पालना, पोसना। वाले अनिष्ट को पहले ही से भांप लेता है। देदीप्यमान (वि.) [दो+यह+शानच् ] अत्यंत चमक दृष्टिः (स्त्री०) [दृश्+क्तिन् ] 1. देखना, समीक्षण ने वाला, ज्योतिष्मान्, जगमगाता हुआ। 2. मन को आँख से देखना 3. जानना, ज्ञान 4. आँख, देय (वि०) [दा+यत्] 1. दिये जाने के लिए, उपहत देखने की शक्ति, नजर-केनेदानीं दृष्टं विलोभयामि किये जाने के लिए-रघु० ३३१६ 2. दिये जाने के .-विक्रम २, चलापानां दष्टिं स्पशसि-श० १।१४, योग्य, भेंट के लिए उपयक्त 3. वस्तु जो वापिस करने -दृष्टिस्तृणीकृतजगत्त्रयसत्त्वसाराउत्तर० ६।१९ । के लिए है, विभावितैकदेशेन देयं महदभियज्यते--विक्ररघु० २८, श० ४।२, देव दृष्टिप्रसादं कुरु-हि०१ मांक०४।१७, मनु० ८।१३९, १८५ । 5. नजर, चितवन 6. विचार, भाव --क्षद्रष्टिरेषा (भ्वा० आ०-देवते) 1. क्रीडा करना, खेलना, जूआ -का० १७३, एतां दृष्टिमवष्टभ्य-भग० १६८९ खेलना 2. विलाप करना 3. चमकना, परि-, बिलाप 1. विचार, आदर 8. बुद्धि, बुद्धिमत्ता, ज्ञान । सम० करना, शोक मनाना। -कृत,-कृतम् स्थलपद्म, कुंमुद,-क्षेपः निगाह डालना, देव (वि०) (स्त्री० ----वी) [दिव्+अच् ] दिव्य, स्वर्गीय अवलोकन करना,--गुणः तीर का निशाना, चांदमारी, -भग० ९।११, मनु०१२।११७,-व: 1. देव, देवता लक्ष्य,—गोचर (वि०) दृष्टि-परास के अन्तर्गत, जो –एको देवः केशवो वा शिवो वा-भर्त० ३।१२० दिखाई दे, दृश्य,--पथः-दृष्टि-पास,--पातः 1. निहा- 2. वर्षा का देवता, इन्द्र का विशेषण ----यथा 'द्वादश रना, निगाह डालना-मार्गे मृगप्रेक्षिणि दृष्टिपातं कुरुष्व वर्षाणि देवो न ववर्ष' में 3. दिव्य पुरुष, ब्राह्मण -रघु० १३।१८, भर्तृ० ११११, ९४, ३१६६, 2. देखने 4. राजा, शासक, जैसाकि 'मनुष्यदेव' में 5. ब्राह्मणों की क्रिया, आँख का कार्य-रजःकणविनितदष्टिपाताः के नामों के साथ लगने वाली उपाधि-जैसा कि -कु० ३।३१, (मल्लि. 'पात' का अर्थ 'प्रभा' दर्शाते 'गोविन्द देव, पुरुषोत्तमदेव' में 6. (नाटकों में) राजा हैं जो हमारी समझ में अनावश्यक है), पूत (वि०) को संबोधित करने के लिए सम्मान सूचक उपाधि दृष्टिमात्र से पवित्र किया हआ अर्थात् देख लिया कि -ततश्च देव--वेणी० ४, यथाज्ञापयति देवः आदि किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं है,-दृष्टिपूतं न्यसेत्पादम् । 7. (समासान्त में) अपने देवता के रूप मे-यथा -मनु० ६।४५,-बन्धुः जगन्,-विक्षेपः कनखियों से मात, पित। सम०-अंशः भगवान का अंशावतार देखना, कटाक्ष, तिरछी नजर,--विद्या नेत्र-विज्ञान, ----अगारः,-रम मन्दिर,-अंगना स्वर्गीय देवी, अप्सरा, ----विभ्रमः अनुराग भरी दृष्टि, हाव-भाव से युक्त ----अतिदेवः, ----अधिदेवः 1. उच्चतम देवता 2. शिव नजर,-विषः साँप । का विशेषण,-अधिपः इन्द्र का विशेषण,-अंधस (नपं०) बृह, वंह, (म्या० पर० ---दर्हति, इंहति) 1. स्थिर या दृढ़ --अन्नम् 1. देवताओं का आहार, दिव्य भोजन, होना 2. विकसित होना, बढ़ाना 3. समृद्ध होना। अमत 2. वह भोजन जो पहले भगवान की मूर्ति के 4. कसना। आगे प्रस्तुत किया गया है-दे० मनु० ५७ तथा इस द (दिवा० क्रया० पर०-दीर्यति, दणाति, दीर्ण) 1. फट पर कुल्ल० भाष्य, अभीष्ट (वि०) 1. देवताओं को जाना, टूट जाना, टुकड़े २ होना 2. फाड़ना, चीरना, प्रिय 2. देवता पर चढ़ाया हुआ, (---ष्टा) तांबूली, विभक्त करना, विदीर्ण करना, खण्ड २ करना, टुकड़े २ पान-सुपारी,-अरण्यम् बाग-रघु० १०६८०,-अरिः करना। कर्मवा.--दीर्यते 1. फटना, टूटना, खण्ड २ राक्षस,---अर्चनम्,-ना देवपूजा,-अवसथः मन्दिर, होना,-कथमेवं प्रलपतां वः सहस्रधा न दीर्णमनया -अश्वः उच्चैःश्रवा का विशेषण, इन्द्र का घोड़ा, जिह्वया-वेणी० ३ 2. अलग करना, प्रेर०-द --आक्रीडः देवोद्यान, नन्दन वन,-आजीवः,--आजी----दा--रयति--ते 1. टुकड़े २ करना, चीर डालना, विन् (पुं०) 1. भगवान् की मूर्ति का सेवक 2. एक खोदकर विभक्त करना 2. तितर-बितर करना, नीचकोटि का ब्राह्मण जो मूर्ति की सेवा द्वारा, तथा बखरना, वि, टुकड़े २ करना, फाड़ डालना, विभक्त मति पर आये हुए चढ़ावे से अपना जीवन-निर्वाह करना, काट कर टुकड़े २ करना--ऐन्द्रिः किल नख- करता है, आत्मन् (पुं०) गूलर का वृक्ष-आयतनम् स्तस्या विददार स्तनौ द्विजः--रघु० १२।२२, न मन्दिर-मनु० ४।४६,---आयुधम् 1. दिव्य हथियार विदीयें कठिनाः खल स्त्रियः-कु०४१५, रघु० १४१३३ 2. इन्द्रधनुष,-आलयः 1. स्वर्ग 2. मन्दिर,-आवासः 2. फाड़ना (आलं०)-चित्तं विदारयति कस्य न कोवि- 1. स्वर्ग 2. अश्वत्थवृक्ष 3. मन्दिर 4. सुमेरु पहाड़, दार:---ऋतु० ३१६, भग०१।१९, (अव, आ तथा प्र --आहारः अमृत, पीयूष,-इज (वि.) (कर्त० ए० आदि उपसर्ग लगन पर धातु का अर्थ नहीं बदलता है)।। व. देवेट - ड) देवताओं की पूजा करने वाला,- इज्यः For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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