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याज्ञ० २२८२ 2. पृथ्वी, भूमि 3. स्थान, जगह 4. धूल का ढेर 5. तलछट, गाद, तेल आदि के नीचे जमा हुआ मैल, --ल: दुष्ट या शरारती आदमी - सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्वात् क्रूरतरः खलः, मन्त्रौषधिवशः सर्पः, खल: केन निवार्यते - चाण० २६, विषधरतोऽ यतिविषमः खल इति न मृषा वदन्ति विद्वांसः यदयं नकुलद्वेषी सकुलद्वेषी पुनः पिशुनः - वासव० [खलीकृ 1. कुचलना 2. घायल करना या क्षति पहुँचाना 3. दुर्व्यवहार करना, घृणा करना-परोक्षे खलीकृतोऽयं द्यूतकार:- मृच्छ० २] सम० उक्तिः (स्त्री०) दुर्वचन दुर्भाषण, -- धान्यम् खलिहान - पूः (पुं० [स्त्री०) झाड़ देने वाला, साफ करने वाला, मूर्तिः पारा, संसर्ग: दुष्टों की संगति ।
खलकः [ख+ला---क-+- कन्] घड़ा | खलति ( वि० ) [ स्खलन्तिकेशा अस्मात् - स्खल् + अतच् to साधुः ] गंजे सिर वाला, गंजा --- युवखलतिः । स्खलतिकः [ खलति +कै+ क] पहाड़ । खलि:, ली (स्त्री० ) खिल् + इन्] तेल की तलछट, खली स्थाल्यां वैदूर्यमय्यां पचति तिलखलीमिन्धनैश्चन्दनाद्यैः - भर्तृ० २।१०० ।
खलि (ली ) नः, -नम् [ खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् पृषो० वा ह्रस्वः ] लगाम का दहाना, लगाम की रास । खलिनी [खल् + इनि + ङीप् ] खलिहानों का समूह । खलकार:, कृति: ( स्त्री० ) [ खल + च्त्रि + कृ + छन्, fare वा] 1. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना 2. दुर्व्यवहार शा० ११२५ 3. अनिष्ट, उत्पात ।
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खलच् (पुं० ) [ खम् इन्द्रियं लुञ्चति हन्ति इति खलु + क्विप्] अन्धकार ।
खलूरिका परेड का मैदान जहाँ सैनिक लोग कवायद करें। खल्या [खल + यत्---टाप्] खलिहानों का समूह । खल्लः [खल् + क्विप्, तं लाति -- खलु + ला + क] 1. खरल
-. जिसमें डाल कर औषधियाँ पीसी जायें, चक्की 2. गढ़ा 3. चमड़ा 4. चातक पक्षी 5. मशक । खल्लिका [ खल्ल + कन् + दाप्, इत्वम् ] कढ़ाई । खल्लि (ली) ट (वि०) ( खल्ल +इन् + टल् + ड, खल्लि +
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डीष् + ल् + ड] गंजे सिर वाला । खल्वाट (वि० ) [ खल् + वाट उप० स० ] गंजा, गंजे सिर
वाला - खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणः सन्तापितो मस्तके - भर्तृ० २।९०, विक्रमांक ० १८।९९ ।
खश: ( ब० व०) भारत के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी प्रदेश तथा उसके अधिवासी मनु० १०।४४ ।
खशरः ( ब० व० ) एक देश तथा उसके अधिवासियों का
खलु (अव्य० ) [ खल् + उन् बा० यह अव्यय निम्नांकित
अर्थों को प्रकट करता है-1. निस्सन्देह, निश्चय ही, अवश्य, सचमुच - मार्गे पदानि खलु ते विषमीभवन्ति - श० ४।१४, अनुत्सेकः खलु विक्रमालङ्कारः - विक्रम ० १, न खल्वनिर्जित्य रघु कृतौ भवान् - रघु० ३।५१ 2. अनुरोध, अनुनय-विनय प्रार्थना -- न खलु न खलु बाणः सन्निपात्योऽयमस्मिन् श० ११०, न खलु न खलु मुग्धे साहसं कार्यमेतत् - नागा० ३ 3. पूछताछ - न खलु तामभिक्रुद्धो गुरुः-- विक्रम ० ३ ( किमभिक्रुद्धो गुरुः) न खलु विदितास्ते तत्र निवसन्तश्चाणक्य हतकेन - मुद्रा ० २, न खलूरुषा पिनाकिना गमितः सोऽपि सुहृद्गतां गतिम् कु० ४।२४ 4. प्रतिषेध (क्रियात्मक संज्ञाओं के साथ) – निर्धारितेऽर्थे लेखेन खलुक्त्वा खलु वाचिकम् - शि० २७० 5 तर्क- न विदीयें कठिना खलु स्त्रियः -- कु० ४१५, (गण० कार इसे विषाद के निदर्शन के रूप में उद्धृत करता है) - विधिना जन एष वञ्चितस्त्वदवीनं खलु देहिनां सुखम् - ४११० 6. कभी कभी 'खल' पूरक की भाँति भर्ती कर दिया जाता है 7. कभी कभी वाक्यालंकार की तरह प्रयुक्त होता है ।
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नाम ।
खष्पः [ खन्+प नि० नस्य षः ] 1. क्रोध 2. हिंसा, निष्ठु
रता ।
खस [खानि इन्द्रियाणि स्यति निश्चलीकरोति --ख + सो -+- क] 1. खाज, खुजली 2. एक देश का नाम दे० 'श' |
खसूचि: (पुं० [स्त्री० ) [ ख + सूच् + इ ] 1. अपमानसूचक "अभिव्यक्ति (समास के अन्त में ) - वैयाकरण खसूचिः - जो व्याकरण अच्छी तरह न जानता हो या भूल गया हो ।
खस्खस: [ खस प्रकारे द्वित्वम्, पृषो० अकारलोपः ] पोस्त । सम० रस: अफ़ीम ।
खाजिकः [खाज + ठन् ] तला हुआ या भुना हुआ अनाज । खाट् (तु) ( अव्य० ) गला साफ करते समय होने वाली ध्वनि, खात् खखारना ।
खाटः,
टा, टिका, टी (स्त्री० ) [ ख + अट् + घञ, स्त्रियां टाप - खाट + न् + टाप्, इत्वम्, खाट + ङीप् ] अर्थी, टिक्टी जिस पर मुर्दे को रख कर चिता तक ले जाते हैं ।
खाण्डव [ खण्ड + अण् + वा + क] खांड, मिश्री, बम् कुरुक्षेत्र प्रदेश में विद्यमान इन्द्र का प्रिय वन जिसे अर्जुन और कृष्ण की सहायता से अग्नि ने जला दिया था । सम० - प्रस्थः एक नगर का नाम । खाण्डविकः, खण्डिकः [ खाण्डव + ठन्, खण्ड + ठन् ] हलवाई |
खात (वि० ) [ खन् + क्त] 1. खुदा हुआ, खोखला किया हुआ 2. फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तम् 1. खुदाई 2. सूराख 3. खाई, परिखा 4. आयताकार तालाब । सम० - भूः (स्त्री०) खाई, परिखा ।
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