________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 584 ) --श० 123, वयः परिणामपांडरशिरसं-का. 10, 1 / 12, शि० 5 / 26, 9 / 36, कि० 1114, गाहितपरिमाणमुपैति दिवसः-का० 254, 'दिन समाप्त मखिलं गहनं परितो दृष्टाश्च विटपिनः सर्वे भामि० होने वाला है' 6. बुढ़ापा-परिणामे हि दिलीप- 1 / 21, 29 2. की ओर, की दिशा में आपेदिरेंऽबवंशजा:-रघु० 8 / 11 7. (समय का) बीतना , रपथं परितः पतंगाः भामि० 1117, रघु० 9 / 66 / 8. (अलं. शा. में) रूपक से मिलता जुलता एक परितापः [परि+तप्+घञ्] 1. अत्यंत या झुलसा अलंकार जिसमें उपमेय के गुण उपमान में परिवर्तित देने वाली गर्मी-(पादपः) शमयति परितापं छायया कर दिये जाते हैं (चन्द्रालोक में दी गई परिभाषा संश्रितानाम्-श० 57 गुरुपरितापानि गात्राणि और उदाहरण-परिणामः क्रियार्थश्चेद्विषयी विषया- -~-3 / 18, ऋटु० 1 / 22 2. पीड़ा, वेदना, व्यथा, स्मना, प्रसन्नेन दगब्जेन वीक्षते मदिरेक्षणा-५।१८, शोक-प्रसक्ते निर्वाणे हृदयपरितापं वहसि किम दे० रसगंगाधर में परिणाम' के नीचे)। सम० ---मालवि० 3.1 3. विलाप, मातम, शोक-बिर-पशिन् (वि.) बुद्धिमान्, दूरदर्शी, दृष्टि (वि०) चितविविधविलापं सा परितापं चकारोच्चैः--गीत. बुद्धिमान् (--ष्टि:-स्त्री०) बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, 74. कांपना, भय / ----पथ्य (वि.) जिसका फल स्वास्थ्यप्रद हो शूलम् / | परितुष्ट (भू० क० कृ.) [परि+तुष्+क्त ] 1. पूर्ण पीडायुक्त अजीर्ण या मन्दाग्नि, उदरपीडा, पीड़ा के रूप से संतुष्ट-वयमिह परितुष्टा वल्कलस्न्वं च साथ उदरवायु, बायगोले का दर्द। लक्ष्म्या ---- भतुं० 3 / 50, इसी प्रकार---मनसि च परिपरि (री) णायः [ परि+नी+घञ पक्षे उपसर्गस्य तुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः-भत० 3150 2. प्रसन्न, दीर्घः ] 1. शतरंज की गोट का चलाना 2. (शतरंज खुश। __ की) चाल / परितुष्टिः (स्त्री०) [ परि+तुष्+क्तिन् ] 1. संतृप्ति, परिणायकः [परि+नी+ण्वुल ] 1. नेता 2. पति | पूर्ण संतोष 2. खुशी, हर्ष / ---शि० 9173 / परितोषः [परि+त+घञ ] 1. सन्तोष, इच्छा का परि (री) णाहः [परि+नह+घा, पधे उपसर्गस्य अभाव (विप० लोभ) सव इह परितोषो नि बशेषो दीर्घः ] 1. परिधि, वृत्त, विस्तार, फैलाव, चौड़ाई, विशेषः भर्त० 3 / 50 2. पूर्ण सतोष, तृप्ति--आपअर्ज-स्तनयुगपरिणाहाच्छादिना वल्कलेन--श० // रितोषाद्विदुर्षा न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम्... श० 19, स्तनपरिणाह विलासवैजयंती . मा० 3 / 15, 112 3. प्रसन्नता, खुशी, हर्ष, पसन्दगी (अधि० के विशाल वक्षःस्थल,-ककुदे वृषस्थ कृतबाहुमकृश / साथ) कु. 6.59, रघु०१११९२, गुणिनि परितोषः / परिणाह शालिनी -कि० 1220, मृच्छ० 39, | परितोषण (वि०) [ परि+तुष्+णिच् + ल्युट् ] संतुष्ट रत्न० 2 / 13, महावी० 7 / 24 2. वृत्त की परिधि / ___करने वाला तृप्त करने वाला,--णम् संतुष्ट करना / परिणाहवत् (वि.) [ परिणाह+मतुप, मस्य वत्वम् ] | परित्यक्त. (भू० क. कृ.) [ परि+त्यज-+क्त ] 1. विशाल, बड़ा, विस्तृत / छोड़ा हुआ, उत्सृष्ट, सर्वथा त्यागा हुआ 2. वञ्चित, परिणाहिन (वि.) [ परिणाह+इनि] विशाल, बड़ा / रहित (करण के साथ) 3. (तोर आदि) छोड़ा -कू०१।२६।। हुआ 4. अभावग्रस्त / परिणिसक (वि.) परि+निस्+ण्वुल ] स्वाद चखने | परित्यागः [ परि+त्यज्+घ ] 1. छोड़ना, उत्सर्ग वाला, खाने बाला-पलानां परिणिसकः-भट्टि० 9/ करना, सर्वथा त्यागना, छोड़कर भाग जाना, (पत्नी 106 2. चुम्बन / आदि का) सम्बन्ध विच्छेद - अपरित्यागमयाचदात्मनः परिणिष्टा [ परि-+-निष्ठा प्रा० स० ] पूरा कौशल। --रस० 12, कृतसीतापरित्याग:-१५।१ 2. छोड़ देना, परिणीत (भ. क. कृ०) [ परि+नी+क्त ] विवाहित त्यागना, फेंक देना, विरक्त होना, गद्दी छोड़ देना, -ता विवाहित स्त्री। ----स्वनाम परित्यागं करोमि पंच० 1, "मैं अपना परिणेतु (पुं०) [ परि+नी+तृच् ] पति-श० 5 / 17, नाम छोड दूंगा'---मनु० 2 / 25 3. अवहेलना, भूलरघु० 1025, 14 / 26, कु० 7 / 31 / / चूक-मोहात्तस्य (कर्मणः) परित्यागस्तामसः परिकीपरितर्पणम् [परि+तृप्+ल्युट ] तृप्त करना, सन्तुष्ट तितः ... भग० 187 4. वदान्यता, उदारता 5. करना। हानि, कंगाली। परितस् (अव्य.) [परि+तस् ] (संज्ञा के साथ प्रायः परित्राणम् [ पपि++ल्युटु ] संधारण, संरक्षण, बचाना कर्म में, कभी-कभी स्वतंत्र रूप से प्रयोग) 1. इर्दगिर्द, प्रतिरक्षा, मुक्ति, छुटकारा-परित्राणाय साधूनां मब ओर, घुमा फिराकर, सब दिशाओं में, सर्वत्र, विनाशाय च दुष्कृताम्-भग० 418, रामापरित्राण चारों ओर-रक्षांसि वेदि परितो निरास्थत्--भट्रि० / विहस्तयोधं सेनानिवेशं तुमुलं चकार-रघु० 5 / 49 / For Private and Personal Use Only