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( १७४ ) इतिहास: [ इति-न-ह-|-आस (अस् धातु, लिट् लकार, स्वेदानीम् श० ४, आर्यपुत्र इदानीमसि-उत्तर० ३,
अन्य पु०, ए. व.)] 1. इतिहास (परंपरा से प्राप्त | इदानीमेव-अभी, इदानीमपि--अब भी, इस विषय उपाख्यान समूह)--धर्मार्थकाममोक्षाणामपदेशसमन्वि- में भी। तम्, पूर्ववृत्तं कथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते । 2. वीर- इदानीन्तन (वि.)(स्त्री...नी) वर्तमान, क्षणिक, वर्तमान गाथा (जैसा कि महाभारत) 3. ऐतिहासिक साक्ष्य, कालिक। परंपरा (जिसको पौराणिक एक प्रमाण मानते हैं)। इद्ध (भू० क० कृ०) [ इन्ध+क्त ] जला हुआ, प्रकाशित सम-निबन्धनम्-उपाख्यानयुक्त या वर्णनात्मक -खम् 1. धूप, गर्मी 2. दीप्ति, चमक 3. आश्चर्य । रचना।
इध्मः-ध्मम् [इध्यतेऽग्निरनेन इन्ध+मक | इंधन, इत्यम् (अव्य०) [इदम् + थम् ] इस लिए, अतः, इस विशेषकर वह जो यज्ञाग्नि में काम आता है- रघु०
रीति से--इत्थं रतेः किमपि भूतमदृश्यरूपम्-कु० | १४१७०, । सम०-जिह्वः अग्नि,--प्रवश्चनः कुल्हाड़ी, ४१४५, इत्थं गते-इन परिस्थितियों के कारण। कुठार (परशु)। सम०-कारम् (अव्य०) इस प्रकार,- भूत (वि०) | इध्या [ इन्ध-+-क्यप्+टाप् ] प्रज्वलन, प्रकाशन। 1. इस प्रकार परिस्थितियों में फंसा हुआ, ऐसी दशा
इन (वि.) [इण-नक्] 1. योग्य, शक्तिशाली, बलवान् में ग्रस्त --कु० ६।२६ कथमित्थंभूता-मालवि० ५,
2. साहसी, न: 1. स्वामी २. सूर्य-शि० श६५ 3. का० १४६, 2. सच्चा, यथातथ्य, सही (जैसे कि
राजा न न महीनमहीनपराक्रमम्-- रघु० ९।५ । कहानी),-विध (वि.) 1. इस प्रकार का 2. इस
इन्दिन्दिरः [ इन्द्+किरच नि०] बड़ी मधु-मक्खी - लोभाप्रकार के गुणों से युक्त ।
दिन्दिन्दिरेषु निपतत्सु- भामि० २।१८३ । इत्य (वि.) [इण्+क्यप, तुक ] जिसके पास जाया | इन्दिरा [ इन्द+किरच ] लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी । सम०
जाय, जहाँ पहुँचना उपयुक्त हो--इत्यः शिष्येण गरु- | -आलयम् इन्दिरा का आवास, नील कमल, --मन्दिरः वत्,-त्या 1. जाना, मार्ग 2. डोली, पालकी।
विष्णु का विशेपण (-रम) नील-कमल । इत्वर (वि.) (स्त्री०-री) [ इण् + वरप्, तुक ] 1. | इंदीवरिणी [ इन्दीवर+इनि+डीप् ] नील-कमलों का
जाने वाला, यात्रा करने वाला, यात्री 2. ऋर, कठोर। समूह। 3. नीच, अधम 4. णित, निद्य 5. निर्धन,-रः हिजड़ा, | इन्दीवारः [ इंद्याः वारो वरणम् अत्र--ब० स०] नील
---री 1. व्यभिचारिणी, कुलटा 2. अभिसारिका। । कमल । इवम् (सा० वि०)[पुं०--अयम्, स्त्री०-इयम्, नपु०-इदम् | इन्दुः । उनत्ति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्---उन्द-+-उ
[ इन्द्+कमिन् ] 1. यह--जो यहाँ है (वक्ता के आदेरिच्च ] 1. चंद्रमा-दिलीप इति राजेन्दग्न्दिः निकट की वस्तु की ओर संकेत करते हए---इदमस्तु क्षीरनिवाविव-रघु० १११२, 2. (गणित में) 'एक' संनिकृष्टं रूपम्) इदं तत्... इति यदुच्यते .. श० की संख्या 3. कपूर। सम० -- कमलम् सफेद कमल, ५, यह है कथन की सत्यता 2. उपस्थित, वर्तमान ... कला चन्द्रमा की कला या अंश (यह कलाएं गिनती ('यहाँ' की भावना को प्रकट करने के लिए कर्तकारक में १६ है, पौराणिक कथाओं के आधार पर इनमें से के रूप प्रयुक्त किये जाते हैं-इयमस्मि- यह रही प्रत्येक कला क्रमश: १६ देवताओं के द्वारा निगली मैं, इसी प्रकार,-इमे स्मः, अयमागच्छामि-यह मैं जाती है)-कलिका 1. केतकी का पौधा 2. चन्द्रमा आता हूँ) 3. यह शब्द तुरन्त ही बाद में आने वाली की एक कला,- कान्तः चन्द्रकान्तमणि (-ता) वस्तु की ओर संकेत करता है जब कि 'एतद्' शब्द रात,--क्षयः 1. चन्द्रमा का प्रतिदिन घटना 2. नूतनपूर्ववर्ती वस्तु की ओर - अनुकल्पस्त्वयं ज्ञेयः सदा चन्द्र दिवस, प्रतिपदा,- जः,-पुत्रः बुधग्रह (---जा) सद्भिरनुप्ठित:--मनु० ३३१४७. (अयम् = वक्ष्य- रेवा या नर्मदा नदी,---जनक: समुद्र,-दलः चन्द्रमा माण:-कुल्ल.) श्रुत्वंतदिदमुचु:-.-4. किसी वस्तु की कला, अर्धचन्द्रः,-भा कुमुदिनी,- भत,--शेखरः, को अधिक स्पष्टतया या बलपूर्वक बतलाने या कई -मौलिः मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाला बार शब्दाधिक्य प्रकट करने के लिए यह शब्द यत्, देवता, शिव,---मणिः चन्द्रकान्तमणि,-मंडलम चन्द्रमा तत्, एतद, अदस्, किम् अथवा किसी पुरुष वाचक का परिवेश, चन्द्र मण्डल, - रत्नम् - मोती,-ले सर्वनाम के साथ जुड़ कर प्रयुक्त होता है-कोऽयमा- (रे) खा चन्द्रमा की कला,--लोहकम्,-लौहम् चरत्यविनयम् ---श०१२२५, सेयम्, सोऽयम्-यह यहाँ, चाँदी,- बबना छन्द का नाम दे० परिशिष्ट,- वासरः ---यमहं भो..-- श०, ४, अरे यहाँ तो मैं है।
सोमवार। इदानीम् (अव्य.) [ इदम् +दानीम्, इश् च ] अब, इस | इन्दुमती [इन्दु+मतुप्+जी ] 1. पूर्णिमा 2. 'अज' की
समय, इस विषय में, अभी, अब भी-वत्से प्रतिष्ठ- । पत्नी, 'भोज' की बहन ।
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