________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 847 ) आदि,---महोत्सवः, --यात्रा रथ में देव प्रतिमा स्थापित ! दिये गये तथा उसकी रसोई में उपयुक्त किये गये कर जलस निकालना (ऐसे रथ को प्रायः मनुष्य स्वयं पशुओं की इतनी बड़ी संख्या थी कि उनकी खालों से खींचते है),--मुखम् गाड़ी का अगला भाग, युद्धम् रुधिर की नदी निकलो मानी जाती है, इसी नदी 'रथों का युद्ध' वह युद्ध जिसमें योद्धा रथों पर बैठ कर का बाद में 'चर्मण्वती' नाम पड़ गया-तु० मेघ० युद्ध करते हैं,-वर्मन् (नपुं०),-वीथिः राजमार्ग, 45, और तदुपरि मल्लि.)। मुख्य सड़क,--वाहः 1. रथ का घोड़ा 2. सारथि, रन्तुः [रम्+तुन्] 1. रास्ता, मार्ग 2. नदी। -शक्तिः (स्त्री०) वह ध्वज जिस पर रथ शुद्ध की धनम्, रन्धिः (स्त्री०) र + ल्युट, इन् वा, नुमागमः] पताका लहराती रहती है,- शाला गाड़ीवर, गाड़ियाँ | 1. क्षति पहुंचाना, सन्ताप देना, नष्ट करना रखने का स्थान, सप्तमी माघशुक्ला सप्तमी का 2. पकाना / दिन। रन्ध्रम् [रध+रक्, नुमागमः] 1. विवर, छेद, गर्त, मुँह रथिक (वि.) (स्त्री०-की) [रथ-ठन्] 1. रथ पर खाई, दरार.... रन्धेष्विवालक्ष्यनमः प्रदेशा--रघु० सवारी करने वाला 2. रथ का स्वामी। 13 / 56, 15 / 2, नासाग्ररन्ध्रम् . मा० 111; क्रौंचरथिन् (वि.) [रथ+इनि] 1. रथ में सवारी करने रन्ध्रम् मेघ० 57 2. (क) बलहीन स्थान, वह वाला, या रथ हांकने वाला 2. रथ को रखने वाला या जगह जहाँ आक्रमण किया जा सके रन्ध्रोपनिपारथ का स्वामो-(पुं०)1. गाड़ी का स्वामी 2. वह तिनोउनाः श० 6, रन्ध्रान्वेषणदक्षाणां द्विषामायोद्धा जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है ----रघु० मिषतां ययौ रघु० 12111, 15 / 17, 17 / 31, 7 / 37 / (ख) त्रुटि, दोष, कमी। सम० अन्वेषिन्, अनुरथिन, रथिर (वि०) [रथ+इन, इरच वा] दे० ऊ० सारिन (वि.) दूसरों के कमजोर स्थलों को ढूंढ़ने 'रथिन्'। वाला - मृच्छ० 8 / 57, बभ्रुः चूहा,...वंशः खोखला रथ्यः [रथं वहति-यत्] 1. रथ का घोड़ा -धावत्यमी या पोला बांस / मृगजवाक्षमयेव रथ्या:---श० 128 2. रथ का एक रभू (भ्वा० आ० रभते, रब्ध, प्रेर० रम्भयति-ते; इच्छा. भाग। रिप्सते) आरंभ करना, आ प्रा--,1. आरंभ करना रथ्या [रथ्य---टाप्] 1. गाड़ियों के आने जाने के लिए शुरू करना, काम में लग जाना, जिम्मेवारी ले लेना सड़क, राजमार्ग, मुख्य सड़क -भूयोभूयः सविघ प्रारभ्यते न खल विघ्नभयेन नीचैः - भर्त० 2 / 27, नगरीरथ्यया पर्यटन्तम् --मा० 1114 2. वह स्थान आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः सुभा०, भट्टि० 5 / 38, रघु० जहाँ कई सड़कें मिलती हों 3. गाड़ियों या रथों का 8 / 45 2. व्यस्त होना, सोत्साह होना --शि० 2191, समूह--शि०१८।३। / परि ,कौलो भरना, आलिङ्गन करना - इत्युक्तवन्तं रद् (भ्वा० पर० रदति) 1. टुकड़े टुकड़े करना, फाड़ना, परिरभ्य दोभ्या-कि० 11180, भामि०१।९५, कु० 2. खुरचना। 5 / 3, शि० 9172, सम्---, 1. क्षुब्ध होना भाव रवः [रद् +अच] 1. टुकड़े टुकड़े करना, खुरचना 2. दांत, विभोर होना, प्रभावित होना 2. कूपित होना, (हाथी का) दांत--पाताश्चेन्न पराञ्चन्ति द्विरदानां उत्तेजित होना, क्रोधोन्मत्त या चिड़चिड़ा होना (प्रायः रदा इव--भामि० 1165 / सम० खण्डनम् दाँत से क्तान्त रूप प्रयुक्त)--रघु० 16 / 16 / काटना, जनय रदखण्डनम् गीत० १०,-छदः, | रभस् (नपुं०) [रम् --असुन् ] 1. प्रचण्डता, उत्साह ओष्ठ। 2. बल, सामर्थ्य / रदनः [रद् + ल्युट् दाँत / सम०.-छदः ओठ। रभस (वि.) [रभ+असच्] 1. प्रचण्ड, उग्र, भीषण, रषु (दिवा० पर० रध्यति, रद्ध, प्रेर० रन्धयति, इच्छा० प्रखर 2. प्रबल, गहन, उत्कट, शक्तिशाली, तीक्ष्ण, रिरधिषति या रिरन्सति) 1. चोट पहुंचाना, क्षति तीब्र (उत्कण्ठा आदि) रभसया न दिगन्तदिदृक्षया पहुँचाना, संताप देना मार डालना, नष्ट करना--अक्षं ---कि० 5 / 1, रघु० 9 / 61, मुद्रा० ५।२४,---सः रधितुमारेभे-भट्टि० 9/29 2. भोजन बनाना 1. प्रचण्डता, भीषणता, उग्रता, शीघ्रता, वेग, आतुरता, (खाना) पकाना या तैयार करना। उत्कटता-आलीषु केलीरभसेन बाला मुहर्ममालापरन्तिदेवः [रम्+तिक रन्तिश्चासी देवश्च-कर्म० स०] मपालपन्ती—भामि० 2 / 12, त्वदभिसरणरभसेन एक चन्द्रवंशी राजा, भरत के बाद छठी पीढ़ी में वलन्ती - गीत० 6, शि० 6 / 13, 11 / 23, कि० (यह अत्यन्त पुण्यात्मा और उदार व्यक्ति था, उसके 9 / 47 2. उतावलापन, साहसिकता, जल्दबाजी पास अपार धनराशि थी जो इसने बड़े 2 यज्ञों के ---अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही अनुष्ठान में व्यय की। उसके राज्य में यज्ञ में बलि शल्यतुल्यो विपाक:-भर्त० 2 / 99 3. क्रोध, आवेश, For Private and Personal Use Only