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--रूपोच्चयेन---श० २।९, तु० 'शिलोच्चयः' भी 2. | उच्छ (तुदा० पर०) (उच्छति, उष्ट) 1. बांधना 2. पूरा एकत्र करना, संचय करना (फल आदि)-पूष्पोच्चयं । करना 3. छोड़ देना, त्याग देना। नाटयति-श० ४, कु० ३।६१, 3. स्त्री के ओढ़ने की | उच्छन्न (वि.) [उद्+छद्+क्त] 1. नष्ट किया हुआ, गांठ 4. समृद्धि, अभ्युदय ।
उखाड़ा हुआ (कदाचित् 'उत्सन्न') दे० उच्छिन्न गाचरणम् [ उद्+च+ ल्युट् ] 1. ऊपर या बाहर जाना | 2. लप्त (रचना आदि)। 2. उच्चारण करना।
उच्छलत् (शत्रन्त-वि०) [उद्+शल+शत] 1. चमकता उन्चल (वि०) [उद्+चल्+अच् ] हिलने-डुलने वाला, हुआ, इधर-उधर हिलता-डुलता हुआ 2. हिलता-डुलता, --लम् मन।
चलता-फिरता 3. ऊपर को उड़ता हुआ, ऊपर ऊंचाई उज्वलनम् [ उद्+चल्+ल्युट् ] चले जाना, कूच करना। पर जाता हुआ। उच्चलित (भू० क० कृ०) [उद्+चल+क्त ] चलने के उच्छलनम् [उद्+शल+ ल्युट्] ऊपर को जाना, सरकना लिए तत्पर, प्रस्थान करने वाला-रघु० २।६ ।
या उड़ना। उच्चाहनम् [उद्+च+णि+ल्यूट] 1. हांक कर | उच्छादनम् [उद्+छ+णिच+ल्युट] 1. चादर, ढकना बाहर करना, मिकाल देना 2. वियोग 3. दूर हटाना,
2. तेल मलना, लेप या उबटन से शरीर पोतना । (पौषे का) उन्मूलन 4. एक प्रकार का जादू-टोना 5.
| उच्छासन (वि०) [उत्क्रान्तः शासनम्] नियंत्रण में न रहने जादूमंत्र चलाना, शत्रु का नाश करना।
वाला, निरंकुश, उदंड। उच्चारः [उ+चर+णिच्+घ ] 1. कथन, उच्चा- | उच्छास्त्र, वतिन् [उद्गतः शास्त्रात्-ग० स०] 1. शास्त्र
रण, उद्घोषणा 2. विष्ठा, गोबर-मातुरुच्चार एव । (नागरिक और धार्मिक--विधि-ग्रन्थ) के विरुद्ध स:-हि० प्र० १६, मनु० ४।५० 3. छोड़ना।
आचरण करने वाला 2. विधि-ग्रंथों का उल्लंघन करने उच्चारणम् [उद्+च+णिच् + ल्युट्] 1. बोलना, वाला।
कथन करना,-वाच:-शिक्षा० २, वेद 2. उद्घोषणा, उच्छिख (वि०) [उद्गता शिखा यस्य] 1. शिखा युक्त उदीरणा।
2. चमकीला, जिसकी ज्वाला ऊपर की ओर जा रही उच्चावच (वि०) [ मयुरव्यंसकादिगण-उदक च अवाक हो-रघु० १६५८७ ।
च] 1. ऊँचा,-नीचा, अनियमित-मनु० ६७३ 2. उच्छित्तिः (स्त्री०) [उद्+छिद्+क्तिन्] मूलोच्छेदन, विविध, विभिन्न-मनु० ११३८, शि० ४।४६ ।
विनाश । कोसल-रत्ना०४। उच्चूम-ल. [उद्गता चूडा यस्य-ब० स०] ध्वजा पर उच्छिन्न (भू० क० कृ०) [उद्+छिद्+क्त] 1. मूलोच्छिन्न, फहरान वाला झंडा, ध्वज।
विनष्ट, उखाड़ा हुआ--उच्छिन्नाश्रयकातरेव कुलटा उच्चः (अव्य०) [उद्+चि+डैस् ] 1. उत्तुंग, ऊँचा, | गोत्रान्तरं श्रीर्गता-मुद्रा०६५ 2. नीच, अधम ।
ऊँचाई पर, ऊपर (विप० नीचं-चैः)-विपधुच्चः | उच्छिरस् (वि.) [उन्नतं शिरोऽस्य-ब० स०] 1. ऊँची स्थेयम्..-भर्तृ० २।२८, उच्चरुदात्त:-पा० ११२।२९ गर्दन वाला (शा०) 2. उन्नत 3. (अतः) कुलीन, 2. ऊँची आवाज से, कोलाहलपूर्वक 3. प्रबलता से, श्रेष्ठ, महानुभाव-शैलात्मजापि पितुरुच्छिरसोड अत्यन्त, अत्यधिक-विदधति भयमच्चैर्वीक्ष्यमाणा भिलाषम्-कु० ३१७५, ६७०।। बनान्ता:-रघु० ११२२ 4. (समास में विशेषण के रूप | उच्छिलीन्ध्र (वि.)[ब० स०] कुकुरमुत्ता(साँप की छतरी) में प्रयुक्त) (क) उन्नत, कुलीन-जनोऽयमुच्चैः ।। से भरा स्थान,-कर्तुं यच्च प्रभवति महीमुच्छिलीन्ध्रामपदलनोत्सुक:-कु० ५।६४, श० ४।१५, रत्ना०४।। वन्ध्याम् मेघ० ११,-ध्रम् कुकुरमुता, साँप की छतरी। १९ (ख) पूज्य, प्रमुख, प्रसिद्ध-उच्चरुच्चैःश्रवास्तेन
| उच्छिष्ट (भू० क० कृ०) [उत्+शिष् + क्त] 1. शेष, कु० २।४७ । सम०-घुष्टम् 1. हंगामा, हल्लागुल्ला,
बचा हुआ, 2. अस्वीकृत, त्यक्त--रघु० १२०१५ गलगपाड़ा 2. ऊँची आवाज में की गई घोषणा,-वादः
3. बासी, कल्पना, पुराने विचार या आविष्कार, बड़ी प्रशंसा, शिरस् (वि.) उदाराशय, महानुभाव -ष्टम् 1. जूठन, खंड, अवशिष्ट (विशेषत: यज्ञ - कु. १०२२,--श्रवस्,-स (वि.) 1. बड़े कानों
या आहार का)-नोच्छिष्टं कस्यचिद्दद्यात-मनु० २।५६ । वाला 2. बहरा; (पुं०) इन्द्र का घोड़ा (जो 'समुद्र- सम०-अन्नम् जूठन, भुक्तावशेष--मोवनम् मोम । मन्थन से प्राप्त' कहा जाता है)।
उच्छीर्षकम् [उत्थापितं शीर्ष यस्मिन] 1. तकिया 2. सिर । उच्चस्तमाम् (अव्य०) [उच्चस्+तमप्+आम्] 1. अत्यंत उच्छुष्क (वि०) [उद्+शुष्+क्त तस्य कः] सूखा. मुझया
हुआ। उच्चस्तरम्---राम् (अव्य०) [उच्चस्+तरप्+आम् च] उच्छून (दि.) [उद्+श्वि+क्त] 1. सूजा हुआ -प्रबल
1. ऊँचे स्वर से 2. अत्यन्त ऊँचा-कु. ७१६८। । रुदितोच्छुननेत्रं प्रियायाः-मेघ० ८६, उत्तानोच्छून
ऊंचा 2. बहुत ऊँचे स्वर उच्चस+तरप्+आम् च] | उदिताच्छ्ननेत्रं प्रियायाः मेघ
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