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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक उपाख्यान प्रसिद्ध है, कहते हैं एक बार संज्ञा / मार डालना 2. बलवान् होना 3. देना 4. लेना, अपने पितृगृह जाने की इच्छा करने लगी, उसने अपने | 5. रहना। पति सूर्य से अनुमति मांगी, परन्तु वह न मिल सकी। | सट्टकम् [ सट्ट+ण्वुल] प्राकृत भाषा का एक उपरूपक, संज्ञा ने अपनी इच्छापूर्ति का दृढ़ निश्चय कर लिया, उदा० कर्पूरमंजरी-दे० सा० द०५४२ / अतः अपनी दिव्यशक्ति के द्वारा उसने ठीक अपने सट्वा (स्त्री० [सठ्+व, पृषो०] 1. एक पक्षिविशेष जैसी एक स्त्री का निर्माण किया, जो मानो उसकी 2. एक वाद्ययंत्र / / छाया थी / और इसी लिए उसका नाम छाया पड़ा)। सत् (चुरा० उभ० साठयति-ते) 1. समाप्त करना, पूरा उस निर्मित स्त्री को अपने स्थान पर रख कर वह करना 2. अधूरा छोड़ देना 3. जाना, हिलना-जुलना सूर्य को बिना बताये अपने पितगह चली गई। बाद 4. अलंकृत करना, सजाना। में सूर्य के छाया से तीन बालक उत्पन्न हुए (दे० | सणसूत्रम् [= शणसूत्र, पृषो०] सन की बनी डोरी छाया), छाया सुख पूर्वक सूर्य के साथ रहती जब या रस्सी / संज्ञा वापिस आई तो सूर्य ने उसे घर में नहीं रक्खा। सण्ड दे० षण्ढ' / अपमानित और निराश होकर संज्ञा ने घोड़ी का रूप सण्डिशः [-सन्दश, पृषो०] चिमटा या संडासी। धारण कर लिया और पृथ्वी पर घूमने लगी। समय सण्डीनम् [ सम्+डी+क्त ] पक्षियों की विभिन्न उड़ानों पाकर सूर्य को वस्तुस्थिति का पता लगा, उसने जाना / में से एक; दे० 'डीन' / कि उसकी पत्नी घोड़ी के रूप में धूमती है। फलतः सत् (वि०) (स्त्री०--) [ अतीस्+शत, अकारलोपः] उसने भी घोड़े के रूप धारण कर अपनी पत्नी से 1. वर्तमान, विद्यमान, मौजूद---सन्तः स्वतः प्रकाशन्ते समागम किया। उससे उसके अश्विनी कुमार नामक गुणा न परतो नृणाम् भामि० 1120 श० 7.12 दो पुत्र उत्पन्न हुए) / सम० -- अधिकारः एक प्रधान 2. वास्तविक, असली, सत्य 3. अच्छा, सदगुणसंपन्न, नियम जिसके अनुसार तदन्तर्गत नियमों का विशेष धर्मात्मा या सती-सती योगविसृष्टदेहा... कु० नाम रक्खा जाता है, और वे सब नियम उससे 121, श० 5 / 17 4. कुलीन, योग्य, उच्च, जैसा प्रभावित होते हैं,-विषयः विशेषण,-सुतः शनि का कि 'सत्कुलम्' में 5. ठीक, उचित 6. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ विशेषण / 7. सम्माननीय, आदरणीय 8. बुद्धिमान, विद्वान् सज्ञानम् [सम्+ज्ञा+ल्युट] जानकारी, समझ / 9. मनोहर, सुन्दर 10. दृढ़, स्थिर,---(पुं०) भद्रपुरुष, सज्ञापनम् [सम्+ज्ञा+णिच्-+ ल्युट्, पुक्] 1. सूचित सदगणी व्यक्ति, ऋषि-आदानं हि विसर्गाय सतां करना 2. अध्यापन 3. वध, हत्या। वारिमचामिव-रघु० 4 / 86, अविरतं परकार्यकृतां सजावत् (वि०)[सज्ञा-|-मतूप] 1. सचेतन, होश में आया सतां मधुरिमातिशयेन वचोऽमृतम् भामि० 11113, ___ हुआ, पुनर्जीवित 2. नाम वाला। भर्तृ० 2018, रघु०१।१०, (नपुं०) 1. जो वस्तुतः सञ्जित (वि.)[सज्ञा+इतच्] नाम वाला, नामक, नाम विद्यमान हो, सत्ता, अस्तित्व, सर्वनिरपेक्ष सत्ता, धारी। 2. वस्तुतः विद्यमान, सचाई, वास्तविकता 3. भद्र, सजिन् (वि.) [सज्ञा+इनि] 1. नामवाला 2. जिसका जैसा कि 'सदसत्' में 4. ब्रह्म या परमात्मा, (सत्कृ नाम रक्खा जाय। आदर करना, सम्मान करना, सत्कार करना)। सञ्ज (वि० )[संहते जानुनी यस्य-ब० स०, जानुस्थाने जुः] सम० असत् (सवसत्) (वि.) 1. विद्यमान और जिसके घुटने चलते समय टकराते हों। अविद्यमान, मौजूद, जो मौजूद न हो 2. असली और सज्वरः [सम्+ज्वर+अप्] 1. अतिताप, बुखार 2. गर्मी नकली 3. सत्य और मिथ्या 4. भला और बुरा, 3. क्रोध / ठीक और गलत 5. पुण्यात्मा और दुष्ट (नपुं० द्वि० सट् / (भ्वा० पर सटति) बांटना, भाग बनाना। व०) 1. अस्तित्व और अनस्तित्व 2. भलाई और ii (चुरा० उभ० साटयति-ते) प्रकट करना, प्रदर्शन : बुराई, ठीक और गलत, विवेकः भलाई और बराई करना स्पष्ट करना। मैं अथवा सच और झूठ में विवेक, व्यक्तिहेतुः भलाई सटम्, सटा (सट्+अच् +टाप् वा] 1. संन्यासी की। और बुराई में विवेक का कारण --तं सन्तः जटाएँ 2. (सिंह की) अयाल-मद्रा० 76, शि० श्रोतुमर्हन्ति सदसद्व्यक्तिहेतवः - रघु० 110, 1147 3. सूअर के खड़े बाल विद्यन्तमुद्धतसटाः -आचारः (सदाचारः) 1. सद्वयवहार, शिष्ट प्रतिहन्तुमीषुः-रघु० 9 / 60 4. शिखा, चोटी। सम० आचरण 2. मानी हुई रस्म, परंपराप्राप्त पर्व, -अङ्कः सिंह। स्मरणातीत प्रथा मनु० 2118, - आत्मन् (वि.) सट्ट, (चुरा० उभ० सट्टयति ते) 1. क्षति पहुँचाना, गुणी, भद्र,---उत्तरम् उचित या अच्छा जवाब,-कर्मन् For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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