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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सञ्चारिन (वि०) (स्त्री०-णी) [ सम्+च+णिनि ] | 2. प्रतिबिम्बित होना-कु० 1110, 736 3. संलग्न 1. गतिशील,गमनीय सञ्चारिणी नगर देवतेव-मा०१, होना प्र.-", 1. चिमटना, जुड़ना 2. प्रयुक्त होना, अनुकु. 3154, 6 / 67 2. पर्यटन, भ्रमण 3. परिवर्तन- करण करना, प्रयुक्त किया जाना, सही उतरना, ठीक शील, अस्थिर, चंचल 4. दुर्गम, अगम्य 5. क्षणभं- बैठना- इतरेतराश्रयः प्रसज्येत, वैषम्यनघण्ये नेश्वरस्य गर जैसे कि भाव, दे० नी. 6. प्रभावशाली प्रसज्यते-शारी० 3. संलग्न होना, तस्यामसो प्रास7. आनुवंशिक, वंशपरम्पराप्राप्त ( रोग आदि ) जत्-दश०, व्यति--, मिलाना, साथ-साथ जोड़ना, 8. छत का रोग 9. प्रणोदन, पुं० 1. वाय, हवा व्यतिषजति पदार्थानान्तरः कोऽपि हेतुः--उत्तर० 2. धूप 3. वह क्षणभंगुर भाव जो स्थायी को शक्ति- 6 / 12 / सम्पन्न करता है. दे. व्यभिचारिन् / सञ्जः [सम्+जन्+ड] 1. ब्रह्मा का नाम 2. शिव का सञ्चाली [सम्+चल्+ण+ङीप्] गुंजा की झाड़ी। नाम। सञ्चित (भू० क० कृ०)[सम्+चि+क्त] 1. ढेर लगाया सञ्जयः [सम्+जि+अच्] धृतराष्ट्र के सारथि का नाम, हुआ, संगृहीत, जोड़ा गया, इकट्ठा किया गया (संजय ने कौरवों और पाण्डवों के झगड़े में शान्ति2. रक्खा गया, जमा किया गया 3. गिना गया, पूर्ण समझौता कराने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु गणना की गई 4. भरा हुआ, सुसम्पन्न, युक्त 5. बाधित, निष्फल रहा। इसी ने अंचे राजा धृतराष्ट्र को महाअवरुद्ध 6. सघन, घिनका (जैसे कि जंगल)। भारत के युद्ध का विवरण सुनाया-तु० भग० 111) / सञ्चितिः (स्त्री०)[सम् + चि+क्तिन् संग्रह, सञ्चय / सञ्जल्पः[सम्+जल्प- घा]1. वार्तालाप 2. अव्यवस्थित सञ्चिन्तनम् [सम् +चिन्त+ल्युट] विचार, विमर्श। बातचीत, बकवाद करना, गड़बड़ 3. शोरगुल, हंगामा। सञ्चूर्णम् [सम्+चूर्ण, + ल्युट्] चूर चूर करना। | सञ्जवनम् [सम्+जु+ल्युट्] चतुःशाल, आमने सामने के सञ्छन्न (भू० क. कृ.) [सम् +छद् + क्त] 1. लिपटा चार घरों का समूह जिनके बीच में आंगन बन गया हुआ, ढका हुआ, छिपा हुआ 2. वस्त्र पहने हुए। हो। सञ्छावनम् [सम् +छद्+णिच्+ल्युट्] ढकना, छिपाना / | सजा [सञ्ज+टाप्] बकरी। सञ्ज (भ्वा० पर० सजति, सक्त, इकारान्त या उकारान्त सञ्जीवनम् [सम् +जी+ल्युट] 1. साथ साथ रहना उपसर्ग के लगाने पर धातु का 'स्' बदल कर ष् हो 2. जीवित करना, जीवन देना, पुनर्जीवन, पुनः सजीजाता है) 1. संलग्न होना, जुड़े रहना, चिपके रहना, वता 3. इक्कीस नरकों में से एक नरक, दे० मनु० -तुल्यगन्धिषु मत्तभकटेषु फलरेणवः (ससञ्जः)-रघु० 4 / 89 4. चार घरों का समूह, चतुःशाल,--नी एक 4 / 47 2. जकड़ना कर्मवा० ( सञ्जयते ) संलग्न | प्रकार का अमृत (कहते हैं कि इसके सेवन से मतक होना, चिमटना, जुड़े रहना प्रेर० (सञ्जयति-ते) भी पुनर्जीवित हो जाता है)। -- इच्छा० (सिसंक्षति): अन- 1. चिपकना, चिम- सज्ञ (वि.) [सम् +जा+क] 1. जिसके घटने चलते टना 2. जुड़ना, साथ होना-मृत्युर्जरा च व्याधिश्च समय आपस में टकराते हों 2. होश में आया हुआ दुःखं चानेककारणम्। अनुषक्तं सदा देहे - महा०, 3. नामवाला, नामक-- दे० नी० संज्ञा,---शम् एक उत्तर० 4 / 2, (कर्मवा०) चिमटना, जुड़ जाना (आलं. प्रकार का पीला सुगंधित काष्ठ / से भी)-धर्मपूते च मनसि नभसीव न जातु रजोऽनुष- | सज्ञपनम् [सम् + ज्ञा+णिच् + ल्युट, पुकागमः, ह्रस्वः] ज्यते -दश०, भग० 6 / 4, 18 / 10, अव-, निलम्बित हत्या, वध / करना, संलग्न करना, चिमटना, फेंकना, रखना-शि० सज्ञा [सम्+ज्ञा+अ+टाप] 1. चेतना, होश-समां 5 / 16, 7 / 16, 9 / 7, कु० 7 / 23 2. सौंपना, सुपुर्द लभ, आपद् या प्रतिपद् फिर चैतन्य प्राप्त करना, करना, निर्दिष्ट करना, (कर्मवा०) 1. सम्पर्क में होश में आना 2. जानकारी, समझ 3. बुद्धि, मन होना, मिलते रहना-मच्छ० 1154 2. व्यस्त होना, 4. संकेत, इंगित, निशान, हाव-भाव-मुखापितकातुल जाना, उत्सुक होना, आ-, 1. जकड़ना, जमाना, गुलिसञ्जयव मा चापलायेति गणान् व्यनैषीत्-कु. जोड़ना, मिलाना, रखना-चापमासज्य कण्ठे कु० 341 5. नाम, पद, अभिधान, इस अर्थ में प्रायः 2064, श० 3 / 26 (भुजे) भूयः स भूमेधूरमाससञ्ज समास के अन्त में-द्वन्द्वैविमुक्ताः सुखदुःखसञ्जः --रघु० 2174 2. अभिदान करना, प्रेरित करना | - भग० 15 / 5 6. (व्या० में) 1. विशेष अर्थ रखने कि० 13144 3. सिपुर्द करना, निर्दिष्ट करना वाला नाम या संज्ञा, व्यक्ति वाचक संज्ञा 7. 'प्रत्यय' 4. चिमटना, लगे रहना नि-, 1. जमे रहना, चिमटना, का परिभाषिक नाम 8. गायत्री मन्त्र, दे० गायत्री डाल दिया जाना, रक्खा जाना-कण्ठे स्वयंग्राहनिषक्त- 9. विश्वकर्मा की पुत्री और सूर्य की पत्नी, यम, यमी बाहुं कु० 317, रघु०९।५०, 11170, 19 / 45 और दोनों अश्विनी कुमारों की माता, (इस विषय में For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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