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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2040, परोपकाराय द्रुमाः फलन्ति- सुभा०-विधातुयापारः फलतुः च मनोज्ञश्च भवतु-मा० 1 / 16 (इस अर्थ में प्रायः सकर्मक के रूप म धातु का प्रयोग होता है) ---..मोर्यस्यैव फलन्ति विविधश्रेयांसि मन्नीतयः-मुद्रा० 2 / 16 'निष्पन्न या घटित करना' 2. परिणामयुक्त होना, सफल होना, पूरा होना, निष्पन्न होना, कामयाब होना 'कैकेयि कामाः फलितास्तवेति- रघु० 13 / 59, 15 / 78, यदा न फेलुः क्षणदाचराणां (मनोरथाः)-भट्रि० 14 / 113, 12166, नवाकृतिः फलति नैव कुलं न शीलम्-भर्त० 2196,116 3. फल निकलना, परिणाम या नतीजा पैदा करना—फलितमस्माकं कपटप्रबन्धेन-हि. 1, फलितं नस्तहि भगवती पादप्रसादेन-मा० 6, कि० 18 / 25, खल: करोति दुर्वत्तं नूनं फलति साधुषु-हि० 3121, 'दुष्ट व्यक्ति बुरे कार्य करते है और भले पुरुषों को उनका परिणाम भुगतना पड़ता है 4. पक्का होना, पक जाना। ii (भ्वा० पर०-फलति, फुल्ल या फुल्त (पहले अर्थ में), दूसरे अर्थ में फलित) 1. बलपूर्वक तोड़ना, खंड 2 करना, फट जाना, दरार पड़ना-तस्य मूर्धानमासाद्य पफालासिवरो हि सः---महा० 2. प्रति फलित होना, अक्स पड़ना-कि० 5 / 38 3. जाना / फलम् [ फल ---अच् ] 1. फल (आलं 0 से भी) जैसे वृक्ष का उदेति पूर्व कुसुमं ततः फलम् --श० 7 / 30, रघु० 4 / 33, 1649 2. फसल, पैदावार-कृषिफलं --- मेघ० 16 3. परिणाम, फल, नतीजा, प्रभाव --अत्यत्कटः पापपुण्यरिहव फलमश्नुते-हि० 1183, फलेन ज्ञास्यसि—पंच० 1, न नवः प्रभुराफलोदयात् स्थिरकर्मा विरराम कर्मणः-रघु० 8 / 22, 1133 4. (अतः) पुरस्कार, क्षतिपूर्ति, पारितोषिक (शुभ या अशुभ) प्रतिफल --फलमस्योपहासस्य सद्यः प्राप्स्यसि पश्य माम्-रघु० 12 // 37 5. कृत्य, कर्म (विप० वचन)- ब्रुवते हि फलेन साधवो न तु कंठेन निजोपयोगिताम्-२० 2148, भले पुरुष अपनी उपयोगिता कर्मों से सिद्ध करते हैं न कि वचनों से' 6. उद्देश्य, आशय, प्रयोजन-परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः -पंच० 1143, किमपेक्ष्य फलम-कि०।२१ / 'किस आशय को विचार में रखकर', मेघ० 54 7. उपयोग, भलाई, लाभ, हित....जगता वा विफलेन कि फलम् -भामि० 2061 8. लाभ या मूलराशि का ब्याज 9. प्रजा, सन्तान-रघु० 14139 10. (फल की) गिरी 11. पट्टिका या फलक 12. (तलवार का) फल 13. तीर की नोक या सिरा, बाण, गीतकार-मुद्रा० 7.10 14. ढाल 15. अंडकोष 16. उपहार 17. (गणित में) गणना-फल 18. गुणनफल 19. रजःस्राव 20. जायफल 21. हल का फल, फाली। सम०-अदनः---फलाशन,... अनुबन्धः परिणामक्रम, फलपरम्परा,- अनुमेय (वि.) जिसका अनुमान फल या परिणाम पर निर्भर हो - फलानुमेयाः प्रारम्भाः संस्काराः प्राक्तना इव रघु० १।२०,---अन्तः बांस,-अन्वेषिन् (वि०) (कर्मों के) पुरस्कार या क्षतिपूर्ति की खोज करने वाला,-- अपेक्षा (कर्मो के) फ़ल या परिणामों की आशा, नतीजे का ध्यान, अशनः तोता,-अम्लम इमली,-अस्थि (नपुं०) नारियल,-आकांक्षा (अच्छे परिणामों की) आशा -दे० फलापेक्षा,- आगमः 1. फलों की पैदावार, फलों का भार,- भवन्ति नम्रास्तरवः फलागमैः-श० 5 / 12 2. फलों का मौसम, पतझड़, आढ्य (वि०) फलों से भरा हुया,-आढचा एक प्रकार के अंगूर (जिसमें गुठलियाँ या बीज नहीं होते),-उत्पत्तिः (स्त्री०) 1. फलों की पैदावार 2. फायदा, लाभ (त्तिः) आम का वृक्ष (कभी-कभी इसी अर्थ को प्रकट करने के लिए 'फलोत्पत्ति' भी लिखा जाता है), - उदयः 1. फलों का दिखाई देना (आना), फल या परिणाम का निकलना, अभीष्ट पदार्थ या सफलता की प्राप्ति-आफलोदयकर्मणाम्-रघु० 115, -- उद्देशः फलों का ध्यान, दे० फलापेक्षा,--कामना परिणाम या फल की इच्छा,----काल: फलों का समय, -----केशरः नारियल का पेड़, ग्रहः हित या लाभ को ग्रहण करने वाला, ---प्रहि, ---ग्रहिन् (वि०) (फलेग्रहि या फलेग्राहिन्) फलो से भरा हुआ, मौसम में फल देने वाला, - इलाध्यतां कुलमुपैति पैतृकं स्यान्मनोरथतरुः फलेग्रहिः-कोति० 3 / 60, मा० 9 / 39, ---द (वि०) 1. उपजाऊ, फलदार, फल देने वाला - मनु० 11 / 142 2. लाभकर या फायदा पहुंचाने वाला (वः) वृक्ष, निवृत्तिः (स्त्री०) परिणामों की समाप्ति,-निष्पत्तिः फलों का उत्पादन, पाकः (फलेपाकः' भी) 1. फलों का पकना 2. परिणामों की पूर्णता, - पावपः फलवृक्ष,-पूरः,-पूरक: सामान्य नीबू का पेड़, -प्रदानम् 1. फलों का देना 2. विवाह के अवसर पर एक संस्कार विशेष,-बन्धिन् (वि.) फल को विकसित करने वाला या रूप देने वाला, --भूमिः (स्त्री०) वह स्थान जहाँ मनुष्य अपने कर्मों का शुभाशुभ फल भोगता है (अर्थात् स्वर्ग या नरक),-भूत् (वि.) फलदायी, फलों से पूर्ण,--भोगः 1. फलों का आनन्द लेना 2. भोगाधिकार,-योगः 1. अभीष्टपदार्थ या फल की प्राप्ति - मुद्रा० 7 / 10 2. मजदूरी, पारिश्रमिक, ... राजन् (पुं०) तरबूजा -वतुलम् तरबूज,--वृक्षः फलदारवृक्ष, वृक्षक कटहल का वृक्ष,-शाउवः अनार का पेड़,-श्रेष्ठः आम का पेड़,-संपद् 1. फलों की बहुतायत 2. सफलता, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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