________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 700 ) विशेष 4. स्वर की ध्वनि का लंबा करना, प्रदीर्घ | प्लोषः [ प्लुष्-+-धज ] जलाना, अन्तर्दाह होना ('प्रोष' करना। भी)। प्लष् i (म्वा०, दिवा० ऋया० पर०-प्लोषति, प्लष्यति, | प्लोषण (वि.) (स्त्री०- णी) [प्लष् + ल्युट ] जलना, प्लष्णाति, प्लुष्ट) जलाना, झुलसना, धकधकाना, गर्म झुलसना, जल कर राख हो जाना-तार्तीयीक पूरालोहे से दागना--ऋतु० 1 / 22, भट्टि० 2034 / / रेस्तदवतु मदनप्लोषणं लोचनं व:--मा० 1, (पाठाii (ऋया० पर० प्लुष्णाति) 1. छिड़कना, गीला न्तर),–णम् जलना, झुलसना ('प्रोषण' भी)। करना 2. लेप करना 3. भरना। प्सा (अदा० पर० प्साति, प्सात) खाना, निगल जाना / प्लुष्ट (भ० क० कृ०) [प्लुष+क्त ] झुलसाया गया, प्सात (भू० क० कृ०) [प्सा+क्त ] 1. खाया हुआ 2. भखा। प्लेख (भ्वा० आ० प्लेवते) सेवा करना, हाजरी देना, सेवा | प्सानम् [प्सा+ ल्युट् ] 1. खाना 2. भोजन / में उपस्थित रहना। प्सा (अदा पर क्त ] झुलसाया गया प्ले गया, दागा गया। फक्क (म्वा० पर०-फक्कति, फक्कित) 1. शनैः-शनैः / / स्थिताम् भर्त० 2 / 35 / सम०-करः सांप, धरः चलना-फिरना, फुर्ती से जाना, सरकना, धीरे-धीरे | 1. साँप 2. शिव का नाम - भूत (पुं०)साँप,.... मणिः चलना 2. गलती करना, दुर्व्यवहार करना 3. फूल सांप के फण में पाई जाने वाली मणि,-मण्डलम् साँप उठना। का कुंडलीकृत शरीर--- करालफलमण्डलम- रघु०१२। फक्किका [ फक्क+पवुल-+टाप, इत्वम् ] 1. एक अवस्था, 98, तत्फणामण्डलोदचिर्मणिद्योतितविग्रहम्-१०।७ / सिद्ध करने के लिए पूर्वपक्ष, उक्ति या प्रतिज्ञा जिसको फणिन् (पुं०) | फणा--इनि ] 1. फणधारी साँप, सामान्य बनाये रखना है-फणिभाषितभाष्यफक्किका विषमा साँप, सर्प--उदुमिरतो यद्गरलं फणिनः पुष्णासि कुण्डलनामवापिता-नै० 2 / 95 2. पक्षपात, पूर्वचिन्तित परिमलोद्गारः - भामि० 1 / 12,58, फणी मयूरस्य सम्मति / तले निषीदति -- ऋतु० 113, रघु० 16 / 17, कु० फट (अव्य०) एक अनुकरणमूलक शब्द जिसे जादू मंत्रा- 3 / 21 2. राहु का विशेषण 3. पतंजलि का विशेषण, दिक के उच्चारण करने में रहस्यमय रीति से प्रयक्त (पाणिनि के सूत्रों पर महाभाष्य के प्रणेता)--फणिकिया जाता है - अस्त्राय फट / भाषितभाष्यफक्किका--नै० 2695 / सम०- इन्द्रः, फट: [ स्फूट-अच, पृषो०] 1. साँप का प्रसारित किया ..... ईश्वरः 1. शेषनाग का विशेषण 2. सांपों के हआ फणा ('फटां' भी इसी अर्थ में) निविषेणापि अधिपति अनन्त का विशेषण 3 पतंजलि का विशेषण, सर्पण कर्तव्या महती फटा (पाठान्तर---फणा) विष --खेल: लवा, बटेर,-- तल्पगः विष्णु का (शेषनाग भवत् मा भूद्वा फटाटोपो भयङ्करः- पंच० 11204 जिनकी शय्या है) विशेषण,-पतिः 1. वासुकि या 2. दाँत 3. धूर्त, ठग, कितव।। शेषनाग का विशेषण 2. पतंजलि का विशेषण-प्रियः फडिंगा [फड़ इति शब्दमिङ्गति --फड्+इग-|-अच वाय,... फेनः अफीम, भाष्यम (पाणिनि के सूत्रों पर टाप् ] झींगुर, टिड्डी, टिड्डा, फतिंगा। किया गया भाष्य) महाभाष्य, भुज् (पुं०) 1. मोर फण (भ्वा० पर० फणति, फणित) 1. चलना-फिरना. 2. गरुड़ का विशेषण। इधर उधर घूमना,-रुजुर्भेरि फेणुर्बहुधाहरिराक्षसा: फत्कारिन (पं०)! फत्कार-|-इनि ] पक्षी।। --भट्टि० 14178 2. अनायास उत्पन्न करना, बिना फरम् [ फल+अच, रलयोरभेदः ] ढाल-तु० फलक | किसी परिश्रमके पैदा करना (यह अर्थ कुछ के मता- 1 फरुबकम् (नपुं०) पानदान पान रखने का डब्बा / नुसार प्रेरणार्थक क्रिया का है)। फर्फरीकः [स्फुर+ईकन्, धातोः फर्फरादेशः ] खुले हुए फणः,-णा [फण+अच्, स्त्रियां टाप् ] किसी भी साँप . हाथ की हथेली / -कम् 1. ताजा अंकुर या टहनी का का फैलाया हुआ फण - विप्रकृतः पन्नगः फर्ण (फणां) अंखुवा 2. मृदुता,- का जूता / कुरुते-श० 6 / 30, मणिभिः फणस्थैः-- रघु० 13 / फल (भ्वा० पर० फलति, फलित) 1. फल आना, फल 12, कु० 668, वहति भुवनश्रेणि शेषः फणाफलक- पैदा करना-नानाफलैः फलति कल्पलतेव विद्या-भर्तृ० For Private and Personal Use Only