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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३२ ) श्रौ औ [ आ + अ + क्विप्, ऊठ ] ( क ) आमंत्रण ( ख ) | औत्पातिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उत्पात + ठक् ] अमंगलकारी, अलौकिक, संकटमय- रघु० ४४, ५३, -कम् अपशकुन या अमंगल । संबोधन (ग) विरोध तथा (घ) शपथोक्ति अथवा संकल्पद्योतक अव्यय । औक्थिक्यम् [ उक्थ + ठक् + ष्यञ् ] उक्थ का पाठ; सामवेद | औक्यम् | उक्थ + अणु ] पाठ करने की विशेष (उक्य' अंग से संबंध रखने वाली ) रीति । औत्संगिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) उत्संग + ठक् ] कूल्हे पर रक्खा हुआ, या कूल्हे पर धारण किया हुआ । औत्सर्गिक ( वि० ) ( स्त्री० – की ) [ उत्सर्ग + ठञ 11. सामान्य विधि (जैसे कि व्याकरण का नियम) जो अपवाद रूप में ही त्यागने के योग्य हो 2. सामान्य ( विप० विशेष ), प्रतिबन्धरहित, सहज 3. व्युत्पन्न, यौगिक । ओक्षकम्, अक्षम् [ उणां समूहः इत्यर्थे उक्षन् + अण्, टिलोपः न वा ] बैलों का झुण्ड - शि० ५६२ । औष्यम् [ उय् + ष्यञ ] दृढ़ता, भीषणता, भयंकरता, क्रूरता आदि । Re: [ ओघ + अण् ] बाढ़, जलप्लावन । औचित्यम्, औचिती । उचित + ष्यञ्ञ, स्त्रियां ङीष्, यलोपश्च ] 1. उपयुक्तता, योग्यता, उचितपना 2. संगति या योग्यता, वाक्य में शब्द के यथार्थ अर्थ का निर्धारण करने के लिए कल्पित परिस्थितियों में से एक - सामर्थ्यमौचिती देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः -सा० द० २ । औच्चैःश्रवसः [ उच्चैः श्रवस् + अण् ] इन्द्र का घोड़ा । औजसिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ ओजस् + ठक्] ऊर्जस्वी, बलवान् । - कः नायक शूरवीर । औजस्य (वि० ) [ ओजस् + ष्यञ ] बल और स्फूर्ति का संचारक, स्यम् सामर्थ्य, जीवनशक्ति, ऊर्जा, स्फूर्ति । औज्ज्वल्यम् [ उज्ज्वल + ष्यञ ] उज्ज्वलता, कान्ति । ओपिक (वि० ) ( स्त्री० [ उडुप + ठक् ] किश्ती में बैठ कर पार करने वाला, कः किश्ती या लठठे का यात्री । | डुम्बर [ उडुम्बर + अञ, ] = दे० औदुम्बर | : [ ओड़ + अण् ] ओडू ( वर्तमान उड़ीसा ) देश का निवासी या राजा । औत्कण्ठ्यम् (उत्कण्ठा + ष्यञ् ] 1. इच्छा, लालसा 2. चिन्ता । औत्कर्ष्यम् [ उत्कर्ष + ध्या ] श्रेष्ठता, उत्कृष्टता । औत्तम: [ उत्तम + इञ ] १४ मनुओं में से तीसरा । औतर ( वि० ) ( स्त्री० - री, रा) उत्तरी । सम० -पथिक उत्तर दिशा की ओर जाने वाला । औत्तरेयः ( उत्तरा + ढक् ) अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औत्तानपाद:, पादि: [ उत्तानपाद + अण्, इञ्ञ वा ] 1. ध्रुव 2. उत्तर दिशा में वर्तमान तारा । औत्पत्तिक ( वि० ) ( ( स्त्री - की ) [ उत्पत्ति + ठक् ] 1. अन्तर्जात सहज 2. एक ही समय पर उत्पन्न । औरपात ( वि० ) [ उत्पात + अण् ] अपशकुनों का विश्लेषक । · औत्सुक्यम् [ उत्सुक + ष्यञ] 1. चिन्ता, बेचैनी 2. प्रबल इच्छा, उत्सुकता, उत्साह - औत्सुक्यमात्रमवसाययति प्रतिष्ठा ५/६ औत्सुक्येन कृतत्वरा सहभुवा व्यावर्तमाना ह्रियां - रत्न० १ २ । औवक ( वि० ) ( स्त्री० – की) [ उदक + अण् ] जलीय, पनीला, जल से संबंध रखने वाला । औदञ्चन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) डोल या घड़े में रक्खा हुआ । औदनिकः ( दञ्च ) [ ओदन + ठञ्ञ ] रसोइया । औदरिक (वि०) (स्त्री० की ) [ उदर + ठक् ] बहुभोजी, पेटू, खाऊ सर्वत्रोदरिकस्याभ्यवहार्यमेव विषय:-- -- विक्रम० ३ मालवि० ४ । [ उदञ्चन + अण् ] औदर्य ( वि० ) [ उदरे भवः यत् ] 1. गर्भस्थित, 2. गर्भान्त:- प्रविष्ट । औदश्वितम् [ उदश्वित् + अण् ] आधा पानी मिलाकर तैयार किया हुआ मट्ठा । औदार्यम् [उदार+प्या] 1. उदारता, कुलीनता, महत्ता 2. बड़प्पन, श्रेष्ठता 3. अर्थगांभीर्य (अर्थसंपत्ति ) - स सौष्ठवौदार्य विशेषशालिनीं विनिश्चितार्थामिति वाचमाददे - कि० १३, दे० कि० ११।४० पर मल्लि० और 'उदार' के नी० उदारता । औदासीन्यम्, औदास्यम् [उदासीन + ष्यञ, उदास + व्यन्न ! 1. उपेक्षा, निःस्पृहता - पर्याप्तोसि प्रजाः पातुमोदासीन्येन वर्तितुम् - रघु० १० २५, इदानीमौदास्य यदि भजसि भागीरथ गंगा० ४ 2. एकान्तिकता, अकेलापन 3. पूर्ण विराग (सांसारिक विषयों से ), वैराग्य । औदुंबर ( वि० ) ( स्त्री० - री ) [ उदुम्बर + अ ] गूलर के वृक्ष से बना या उससे प्राप्त रः ऐसा प्रदेश जहाँ गूलर के वृक्ष बहुतायत से हों, - री की शाखा, गूलर - रम् 1. गूलर की लकड़ी 2. गूलर का फल 3. तांबा । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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