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( २३१ )
चिह्न।
ओ (पुं०-औः) [उ+विच्] ब्रह्मा (अव्य०) 1. सम्बोध- | ओदनः---नम् [उन्द-युच् ] 1. भोजन, भात,--उदा.
नात्मक (ओ:) अव्यय 2. (क) बुलावा (ख) स्मरण दध्योदन और घृत° 2. दलिया बना कर दूध में पकाया करना और (ग) करुणा बोधक विस्मयादि द्योतक हआ अन्न ।
ओम् (अव्य०) [अव्+मन्, ऊम्, गुणः] 1. पावन अक्षर ओकः [उच्+क नि० चस्य कः] 1. घर 2. शरण, आश्रय 'ओम्' वेद-पाठ के आरम्भ और समाप्ति पर किया 3. पक्षी 4. शूद्र ।
गया पावन उच्चारण, या मंत्र के आरम्भ में बोला ओकणः (णिः) [ओ+ कण् + अच्, इन् वा] खटमल, इसी जाने वाला 2. अव्यय के रूप में यह (क) औपचारिक प्रकार 'ओकोदनी।
पुष्टीकरण तथा सम्माननीय स्वीकृति (एवमस्तु, मओकस् (नपुं०) [उच्+असुन्] 1. घर, आवास-जैसा तथास्तु) (ख) स्वीकृति, अंगीकरण (हाँ, बहुत
कि दिवौकस् या स्वर्गीकस् (देवता) में 2. आश्रय, अच्छा)-ओमित्युच्यताममात्यः-- मा० ६, ओमित्युक्तशरण ।
वतोथशाङ्गिण इति शि० ११७५, द्वितीयश्चेवोमिति ओल (म्वा० पर०–ओखति, ओखित) 1. सूख जाना 2. ब्रूमः-सा०६०१ (ग) आदेश (घ) मांगलिकता (5)
योग्य होना, पर्याप्त होना 3. सजाना, सुशोभित करना दूर करना या रोक लगाना की भावना को प्रकट करने 4. अस्वीकृत करना, 5. रोक लगाना।
वाला अव्यय 3. ब्रह्म। सम-कार: 1. पवित्र ओघः [उच्+घञ, पृषो०] 1, जलप्लावन, नदी, धारा
ध्वनि 'ओम' 2. पवित्र उदगार 'ओम'। . पुनरोधेन हि युज्यते नदी-कु० ४।४४ 2. जल की | ओरम्फः [ ? ] गहरी खरोंच--मा०७।। बाढ़ 3. राशि, परिमाण, समुदाय 4. समग्र 5. सातत्य ओल (वि०) [आ+उन्+क पुषो०] आर्द्र, गीला।
6. परम्परा, परम्पराप्राप्त उपदेश 7. एक प्रमुख नत्य। ! ओलंड (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-ओलंडति, ओलंडयति, ओंकारः [ओम् +कारः] दे० 'ओम्' के नीचे ।
ओलंडित) ऊपर की ओर फेंकना, ऊपर उछालना। ओज् (भ्वा० चुरा० उभ०-ओजति, ओजयति-ते, ओजित) ओल्ल (वि०) [ओल-पृषो०] आई, गीला,--ल्लः प्रतिभ, सक्षम या योग्य होना।
आगतः प्रतिभू या जामिन के रूप में आया हुआ ओज (वि.) ओज---अच] विषम, असम, ...-अम-, (यह शब्द एक दो बार विद्धशालभजिका में ओजस ।
आया है)। ओजस् (नपुं०) [उब्ज+असून् बलोपः, गणश्च 1. ओषः [ उष्+घा ] जलन, संवाह।
शारीरिक सामर्थ्य, बल, शक्ति 2. वीर्य, जननात्मक ओषणः [ उष्ल्यू ट ] तिक्तता, तीक्ष्णता, तोखा रस । शक्ति 3. आभा, प्रकाश (आलं. शा० में) 4, शैली का
| ओषधिः,-धी (स्त्री०) [ओष-धा+कि, स्त्रियां की विस्तृत रूप, समास की बहुलता (दण्डी के अनुसार
1 जड़ीबूटी, वनस्पति 2. औषधि का पौधा, ओषषि यही गद्य की आत्मा है)--- ओजः समासभूयस्त्वमेतद्- 3. फसलो पौधा या जड़ी बूटी जोकि पक कर. सूख गद्यस्य जीवितम् --काव्या० ११८०, रसगंगाधर में इसके | जाती है। सम०--ईश:---:,-मायः चन्द्रमा
पाँच भेद बतलाये गये हैं 5. पानी 6. धातु की चमक। (वनस्पतियों का अधिदेवता तथा पोषक)- (वि.) ओजसीम, ओजस्य (वि.) [ओजस्-+-ख, यत् वा] मज- वनस्पति से उत्पन्न,---धरः,--पतिः 1. ओषधि-विक्रेता बत, शक्तिशाली।
2. वैद्य 3. चन्द्रमा,-प्रस्थः हिमालय की राजधानी ओजस्वत्, ओजस्विन् ओजस्-+-मतुप्, विनि वा ] मजबूत, ---तत्प्रयातोषधिप्रस्थं स्थितये हिमवत्पुरम्-कु०६॥
वीर्यवान, तेजस्वी, शक्तिशाली। ओडः (पुं० ब० व०) एक देश का तथा उसके निवासियों ओष्ठः [ उष+थन् ] होठ (ऊपर का या नीचे का)। सम०
का नाम, (आधुनिक उड़ीसा)-मनु० १०१४४, -----अधरौ-रम्, ऊपर और नीचे का होठ,-ज (वि.) -ड्रम् जवाकुसुम ।
ओष्ठस्थानीय, जाहः होठकी जड़,--पल्लव:,--पम् ओत (वि.) [आ++क्त ] बुना हुआ, धागे से एक किसलय जैसा, कोमल ओष्ठ-पुटम् होठों को खोलने
सिरे से दूसरे तक सिला हुआ। सम०-प्रोत (वि०) पर बना हुआ गड्ढा । ___ 1. लम्बाई और चौड़ाई के बल आर-पार सिला हुआ | ओष्ठ्य (वि.) [ ओष्ठ--यत् ] 1. होठों पर रहने वाला 2. सब दिशाओं में फैला हुआ।
2. ओष्ठ-स्थानीय (ध्वनि आदि)। मोतुः [अन्+तुन्, ऊ, गुणः ] बिलाव (स्त्री० भी) | ओष्ण (वि.) [ ईषद् उष्ण:-० स०] थोड़ा गरम, बिल्ली-जैसा कि 'स्थूलो (लो) तुः' में।
गुनगुना।
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