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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपूर्द किया गया है, अधीक्षक या शासक अथवा राज्य- यथा नृत्यात्, पुरुषस्य तथात्मानं प्रकाश्य विनिवर्तते पाल 2. दण्डनायक, मजिस्ट्रेट 3. मुख्य आरक्षाधिकारी प्रकृतिः - शर्व० 5. रणक्षेत्र 6. नाचना, गाना, अपेक्षकः 1. कुली, द्वारपाल 2. अन्तःपुर का पहरेदार अभिनय 7. आमोद, मनोविनोद 8. सुहागा 9. स्वर का 3. गांडू, लौंडा नाटक का पात्र अभिनेता,-करण्डः अनुनासिक उच्चारण-सरंगम् कम्पयेत्कंपम् रथीवेति .....करण्डकम् तबीज़ की डिबिया, गण्ड, जादू की निदर्शनम्-शिक्षा० 30, इसी प्रकार 26, 27,28, डिबिया .. अहो रक्षाकरण्डकमस्य मणिवन्धे न दृश्यते - गः गम् रांग, टिन / सम०--अङ्गणम् अखाड़ा, ----श०७,-गृहम् प्रसूति का गह, ---- रक्षागृहगता दीपाः नाचघर,-अवतरणम् 1. रङ्गमंच पर प्रवेश 2. अभिप्रत्यादिष्टा इवाभवन्--रघु० 1059, पात्रः एक नेता या नाटयपात्र का व्यवसाय,-अवतारक:-अवतारिन् प्रकार का भोजपत्र, पालः, पुरुषः पहरेदार, चौकी- (पुं० अभिनेता, नाटक का पात्र, आजीव: 1. अभिनेता दार, प्रारक्षी,-प्रदीपः वह दीपक जो भूत प्रेत से बचाव 2. चित्रकार, इसी प्रकार,-- उपजोविन् (पं०),कारः के लिए जलता हुआ रखा जाता है,--भूषणम्,-मणि, -- जीवकः चित्रकार, रंगवेपक,--चुरः 1. अभिनेता, -रत्नम् एक प्रकार का आभूषण जो ताबीज की नाटक का पात्र 2. वाग्मी,- जम् सिन्दूर,-वेवता भांति भूत प्रेतादि की बाधा से बचाव के लिए पहना क्रीड़ा तथा सार्वजनिक आमोद-प्रमोद की अधिष्ठात्री जाता है। देवता, द्वारम् 1. रङ्गशाला का द्वार 2. किसी नाटक रक्षित, रक्षिन् (वि०) [ रक्ष+तच, णिनि वा ] बचाने का मंगलाचरण या प्रस्तावना,-भूतिः (स्त्री०) आश्विन वाला, चौकसी करने वाला, राज्य करने वाला--नै० मास की पूर्णिमा की रात,-भूमिः (स्त्री०) 1. रङ्गमंच, 1 / 1 पुं०) 1. रक्षा करने वाला, संरक्षक, बचाने वाला नाट्यशाला 2. अखाड़ा, रणक्षेत्र,- मंडपः रङ्गशाला, 2. चौकीदार, सन्तरी, प्रारक्षी-अये पदशब्द इव मा -मात (स्त्री०) 1. लाख, लालरङ्ग, महावर, इसे नाम रक्षिणः ---मृच्छ० 3 / पैदा करने वाला कीड़ा 2. कुटनी, दूती,-वस्तु (नपुं०) - रघुः [ लंघति ज्ञानसीमानं प्राप्नंति-लंघ+कु, न लोपः, रङ्गलेप, वाट: अखाड़ा, बाड़ा जहाँ नाटक नाच आदि लस्य र:] एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा, दिलीप का पुत्र होते हों,--शाला नाचघर, नाटयगृह, नाटकघर / और अज का पिता (ऐसा प्रतीत होता है कि इसका रन्ध (भ्वा० उभ० रन्धति-ते) 1. जाना 2. शीघ्र जाना, नाम रघु (रघु या रन्ध-जाना ) इस कारण पड़ा हो। जल्दी करना-द्वारम् ररन्धतुर्याम्यम्-भट्टि० 14 / 15 / क्योंकि इसके पिता ने यह पहले ही जान लिया कि यह रच ( चुरा० उभ० रचयति-ते ,रचित ) 1. व्यवस्थित लड़का विद्या के ही पार नहीं जायगा अपि युद्ध में करना, सज्जित करना, तैयार करना, बना लेना, रचना अपने शत्रुओं को भी परास्त कर देगा-तु० रघु०३।२१ करना-पुष्पाणां प्रकरः स्मितेन रचितो नो कुन्दजात्याअपने नाम की सार्थकता के अनुसार उसने दिग्विजय दिभिः-अमरु ४०,रचयति शयनं सचकितनयनम-गीत. आरम्भ किया, समस्त ज्ञात भूमण्डल का चक्कर लगाया 5 2. बनाना, रूप देना, कार्यान्वित करना, रचना करना और कीति तथा विजयोपहार के साथ वापिस आया। पैदा करना-मायाविकल्परचितैः स्यंदन:-रघु०१३।७५, आ कर उसने विश्वजित यज्ञ का आयोजन किया और माधुर्यं मधुबिंदुना रचयितुं क्षारांबुधेरीहते-भर्तृ० दक्षिणा में ब्राह्मणों को सर्वस्व दे डाला, तथा अज को 216, मौलो वा रचयांजलिम्- वेणी० 3 / 40 अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया)। सम० 3. लिखना, रचना करना, (किसी कृति आदि को) नन्दनः, नथ:-पतिः-श्रेष्ठ:-सिंहः राम के विशेषण / एकत्र करना-अश्वधाटी जगन्नाथो विश्वहृद्यामरीरचत्रड (वि.) [रमते तुष्यति --रम् +-क] 1. अधम, दरिद्र अश्व० 26, श० 3.15 4. रखना, स्थिर करना, भंगता, अभागा, दयनीय 2. मन्थर,-कः भिखारी. मन्द- जमाना-रचयति चिकुरे कुरबककुसुमम्-गीत०७, कु० भाग्य. भूखा, क्षुधात, भुखमरा-प्रेतरङ्कः--मा 5 / 16, 4 / 18, 34, श० 6 / 17 5. अलंकृत करना, सजाना बक्षित या 'भुखमरी आत्मा' पञ्च० 0254 / / मेघ०६६ 6. (मन को) लगाना,-आ-,व्यवस्थित रकुः [ रम् + कु] हरिण, कुरङ्ग, कृष्णसार मृग - नै० करना, वि-, 1. व्यवस्थित करना 2. रचना करना 2183 / 3. कार्यान्वित करना, पैदा करना, बनाना- मेघ० 95, रङ्गः। रन्ज् भावे घन ] 1. रङ्ग, वर्ण, रङ्गने का मसाला भामि० 1 / 30 / रङ्गलेप या रोगन 2. रङ्गमंच, नाटयशाला, नाट्यगृह रचनम्-ना [रच्+युच्, स्त्रियां टाप् [ 1. व्यवस्था, अखाड़ा, सार्वजनिक आमोदस्थली-जैसा कि रङ्ग- तैयारी, विन्यास--अभिषेक, सगीत आदि 2. बनाना विघ्नोपशान्तये -सा० द० 281 3. सभा-भवन, सर्जन करना, उत्पन्न करना-अन्यव कापि रचना श्रोतृवर्ग--अहो रागबद्धचित्तवृत्तिरालिखितः इव सर्वतो वचनावलीनां-भामि० 1169, इसी प्रकार-भ्रकुटि रङ्गः-श० 1, रङ्गस्य दर्शयित्वा निवर्तते नर्तकी / रचना-मेघ० 95 3. सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पत्ति, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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