________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २७९ ) कोनाश (वि.) [ क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य | कोश (वि०) [क+ईश्+क] नंगा,--शः 1. लंगूर, बन्दर
लोपो नामागमश्च ] 1. भूमिधर 2. गरीब, दरिद्र | 2. सूर्य 3. पक्षी। 3. कृपण 4. लघु, तुच्छ,-शः मृत्यु के देवता यम को कु: (स्त्री०) [कु-+डु] 1. पृथ्वी 2. त्रिभुज या सपाट उपाधि 2. एक प्रकार का बन्दर ।
आकृति की आधार-रेखा, सम०-पुत्रः मंगलग्रह । कोरः [ की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति—की+ई+ कु (अव्य०) 'खराबी', ह्रास, अवमूल्यन, पाप, भर्त्सना,
अच् ] 1. तोता-एवं कीरवरे मनोरथमयं पीयूषमास्वा- ओछापन, अभाव, त्रुटि आदि भावों को संकेत करने दयति-भामि० ११५८,-रा: (ब० व.) काश्मीर
वाला उपसर्ग; इसके स्थानापन्न अनेक हैं, उदा० कद् देश तथा उसके निवासी,-रम् मांस । सम०–इष्टः (कदश्वः), कद (कवोष्ण), का (कोष्ण), कि आम का वृक्ष (इसे तोते बहुत पसन्द करते हैं)।
(किंप्रभुः)-- पंच० ५।१७ । सम-कर्मन् (नपुं०) ---वर्णकम् सुगन्धों का शिरोमणि ।
बुरा कार्य, नीच कर्म,—ग्रहः अमंगल-ग्रह, प्रामः कीर्ण (वि.) [क-+क्त) 1. छितराया हुआ, फैलाया छोटा गाँव या पुरवा (जहाँ राजा का अधिकारी,
हुआ, फेंका हुआ, बखेरा हुआ 2. ढ़का हुआ, भरा अग्निहोत्री, डाक्टर या नदी न हो),-चेल (वि.) हुआ 3. रक्खा हुआ, घरा हुआ 4. क्षत, चोट पहुं- फटे पुराने वस्त्र पहने हुए,--चर्या दुष्टता, अशिष्टाचाया गया--दे० का
चरण, अनौचित्य,-जन्मन् (वि.) नीच कुल में कोणिः (स्त्री०) [क+क्तिन्] 1. बखेरना 2. ढकना, उत्पन्न,-तनु (वि०) विकृतकाय, कुरूप (नः) छिपाना, गुप्त कर देना 3. घायल करना ।
कुबेर का विशेषण-तंत्री खराब बीणा,-तर्कः कीर्तनम् [कत् + ल्युट्] 1. कथन, वर्णन 2. मन्दिर,-ना 1. कुटतत्मिक, हेत्वाभासरूप 2. धर्मविरुद्ध सिद्धान्त ___ 1. कीर्तिवर्णन 2. सस्वर पाठ 3. यश, कीर्ति ।। स्वतंत्र चिन्तन--कुतर्केष्वभ्यासः सततपरपैशुन्यमननम् कोर्तय-कत् ।
-गंगा० ३१, पथः तर्क करने की झठी रीति कोतिः (स्त्री०) [कत् + क्तिन्] 1. यश, प्रसिद्धि, कोति ---तीर्थम् खराब अध्यापक-दृष्टि: (स्त्री०) 1.
--इह कीर्तिमवाप्नोति-मनु० २।९, वंशस्य कर्तार- कमजोर नजर 2. पापदृष्टि, कुटिल आंख (आलं.) मनन्तकीर्तिम्-रघु० २०६४, मेघ० ४५ 2. अनुग्रह, 3. वेदविरुद्ध सिद्धान्त, धर्मविरुद्ध सिद्धांत-मनु० अनुमोदन 3. मैल, कीचड़ 4. विस्तृति, विस्तार १२।९५,-देशः 1. बुरा देश या बुरी जगह 2. वह 5. प्रकाश, प्रभा 6. ध्वनि। सम०-भाज (वि.) देश जहाँ जीवन की आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध (पु.) द्रोण का विशेषण या जो अत्याचार से पीड़ित हो,–बेह (वि.) कुरूप, जो कि कौरवों और पांडवों का सैन्य-शिक्षाचार्य था, विकृतकाय (हः ) कुबेर का विशेषण,--धी (वि०) ..... शेषः केवल यश के रूप में जीवित रहना, यश के 1. मूर्ख, बुद्ध, बेवक्फ 2. दुष्ट,---नटः बुरा पात्र, अतिरिक्त और कुछ नहीं छोड़ना अर्थात् मृत्यु-तु० -- नदिका छोटी नदी, क्षुद्र नदी, लघु स्रोत--सुपूरा नामशेष, आलेख्यशेष ।
स्यात्कुनदिका-पंच० ११२५,-- नाथः बुरा स्वामी, कोल (भ्वा० पर०) 1. बांधना 2. नत्थी करना 3. कील -नामन् (पु.) कंजूस,- रथः 1. कुमार्ग, बुरा गाड़ना।
रास्ता (आलं. भी) 2. धर्मविरुद्ध सिद्धान्त,-पुत्रः कोलः [कील+घा] 1. फन्नी, खंटी-कीलोत्पाटीव | बुरा या दुष्ट पुत्र,-- पुरुषः नीच या दुष्ट पुरुष,--पूय
वानरः-पंच० १।२१ 2. भाला 3. बल्ली, खंभा (वि०) नीच दुष्ट, तिरस्करणीय,-प्रिय (वि०) 4. हथियार, 5. कोहनी 6. कोहनी का प्रहार 7. ज्वाला अरुचिकर, तिरस्करणीय, नीच, अधम,-प्लवः बुरी 8. परमाणु 9. शिव का नाम ।।
किश्ती-कुप्लवैः संतरन् जलम्-- मनु० ९।१६१, कोलकः [कील+कन्] 1. फन्नी या खंटी 2. खंबा, स्तंभ -ब्रह्मः,-ब्रह्मन् पतित ब्राह्मण,--मंत्रः 1. बुरा दे. कील।
उपदेश 2. बरे कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए कोलाल: [कील--अल+अण] 1. अमृतोपम स्वर्गीय पेय, प्रयुक्त मंत्र,-योगः अशुभ संयोग (ग्रहों का), रस
देवताओं का पेय 2. मधु 3.हेबान,-लम् 1. रुधिर (वि.) बरे रस या स्वाद वाला, (सः) एक प्रकार
2. जल । सम-धिः समुद्र,—पः पिशाच, भूत । की मदिरा,-रूप (वि.) कुरूप, विकृत रूप, पंच० कोलिका [कील+कन्+टाप, इत्वम्] धुरे की कील । ५।१९,-रूप्यम टीन, जस्ता, वंगः सीसा,---बच्चस्, कोलित (वि.) [कील+क्त 1. बंधा हुआ, बद्ध 2. स्थिर वाक्य (वि०) गाली देने वाला, अश्लील भाषी,
कील से गड़ा हुआ, कील ठोक कर जड़ा हआ–तेन दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला (नपुं०) दुर्वचन, मम हृदयमिदमसमशरकीलितम...गीत०७, सा नश्चे- दुर्भाषा,-वर्षः आकस्मिक प्रचंड बौछार,-विवाहः तसि कीलितेव- मा०५।१०।
विवाह का भ्रष्ट या अनुचित रूप-मनु० ३।६३,-वृत्तिः
For Private and Personal Use Only