SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 867
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (वि० [ रु आ, बामदे० रुज) ( 858 ) (वि.) सोने के मुलम्मे से युक्त, सोना चढ़ा हुआ, रुचा दे० 'रुच'। -वाहनः द्रोणाचार्य का नामान्तर / रुचिः (स्त्री०) [रुच्+कि]। प्रकाश, कान्ति, आभा, रक्मिन् (पु) [रुक्म+इनि ] भीष्मक के ज्येष्ठ पुत्र तथा | उज्ज्वलता,-रुचिमिन्दुदले करोत्यजः परिपूर्णेन्दुरुचिर्महीरुक्मिणी के भाई का नाम / पतिः-शि०१६।७१, रघु०५।६७, मेघ०१५ 2. प्रकाश रुक्मिणी [ रुक्मिन् की ] विदर्भ के राजा भीष्मक की किरण-जैसा कि 'रुचिभर्त' में 3. छबि, रङ्ग, सौन्दर्य पुत्री का नाम (रुक्मिणी की सगाई रुक्मिणी के पिता बहुधा समास के अन्त में--पटलं बहिर्बहलपङ्करुचि ने शिशुपाल से कर दी थी, परन्तु रुक्मिणी गुप्त रूप से --शि० 9 / 19 4. स्वाद, मज़ा-जैसा कि 'रुचिकर' में कृष्ण से प्रेम करती थी। उसने कृष्ण को एक पत्र भेज 5. सुस्वाद, भूख, क्षुधा 6. कामना, इच्छा, खुशी,-स्वरच्या कर प्रार्थना की कि उसका अपहरण कर लिया जाय, स्वेच्छा से, खुशी से 7. अभिरुचि, स्वाद-विमार्गगायाश्च बलराम सहित कृष्ण आया और रुक्मिणी के भाई को रुचिः स्वकान्ते-भामि० 1 / 125, 'अभिरुचि या प्रेम' युद्ध में परास्त कर रुक्मिणी को उठा कर ले गया / --न स क्षितीशो रुचये वभूव, भिन्नरुचिहि लोकः- रघु० रुक्मिणी से कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ)। 6 / 30, नाटयं भिन्नरुचेर्जनस्य बहुधाप्यकं समाराधनम् रक्षा (वि.)=रूक्ष, दे। - मालवि० 114; 'संलग्न' 'व्यस्त' या 'अनुरक्त' के रुग्ण (भू० क० कृ०) [रुज्+क्त ] 1, टूटा हुआ, नष्ट अर्थ में प्रयोग बहधा समास के अन्त में हिंसारुचे: भ्रष्ट 2. व्यर्थीकृत 3. झुका हुआ, वक्रीकृत 4. क्षति ---मा० 5 / 29 8. प्रणयोन्माद, किसी की बात में ग्रस्त, चोट पहुँचाया हुआ 5. रोगी, बीमार (दे० रुज)। लवलीनता। सम-कर (वि.) 1. स्वादिष्ट, चटपटा, सम०--रय (वि.) जिसका आक्रमण रोक दिया गया मजेदार 2. इच्छा का उत्तेजक 3. पाचनशक्तिवर्धक, हो, जिसका घावा विफल कर दिया गया हो। पौष्टिक,-भर्त (पुं०) 1. सूर्य-शि० 9 / 17 2. पति। हप (भ्वा० आ० रोचते, रुचित) 1. चमकना, सुन्दर या रुचिर (वि.) रुचि राति ददाति--रु--किरच शानदार दिखलाई देना, जगमगाना- रुरुचिरे रुचिरे- 1. उज्ज्वल, चमकदार, प्रकाशमान, जगमगाता,-हेमक्षणविभ्रमाः-शि० 6 / 46, मनु० 3 / 62 2. पसन्द रुचिराम्बर-चौर० 14, कनकरुचिरम, रत्नरुचिरम् करना, (अन्य व्यक्तियों से ) प्रसन्न होना, (वस्तुओं आदि 2. स्वादिष्ट, मजेदार 3. मधुर, ललित 4. क्षुधासे) प्रसन्न होना, रुचिकर होना; (प्रसन्न व्यक्ति वर्धक, भूख बढ़ाने वाला 5. पुष्टिदायक, बलवर्धक, के लिए संप्र० तथा वस्तु के लिए कर्त)-न स्रजो -रा 1. एक प्रकार का पीला रंग 2. वृत्तविशेष दे० रुरुचिरे रमणीभ्यः-कि० 9 / 35, यदेव रोचते परिशिष्ट १,-रम् 1. केसर 2. लौंग। यस्मै भवेत् तत् तस्य सुन्दरम् -- हि० 2053, कई बार | रुच्य (वि.) [रुच्---क्यप्] उज्ज्वल, प्रिय आदि, दे० व्यक्ति के लिए संबं०,--दारिद्रयान्मरणाद्वा मरणं मम _ 'रुचिर'। रोचते न दारिद्रयम-मच्छ०१११,प्रेर०-(रोचयति-ते) | रुज (तुदा० पर० रुजति, रुग्ण) 1. तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े पसन्द कराना, रुचिकर या सुहावना करना---कु० करना, नष्ट करना--रघु० 9 / 63 / 12 / 73, भट्टि ३३१६,-इच्छा० (रुरु-रोचिषते) पसन्द करने की 4 / 42 2. पीड़ा देना, क्षति पहुँचाना, अस्वस्थ करना, इच्छा करना, अभि --, पसन्द करना, रुचिकर होना / रोगग्रस्त करना - रावणस्येह रोक्ष्यन्ति कपया भीम –यदभिरोचते भवते-विक्रम 2, प्र--, 1. बहुत विक्रमाः - भट्टि० 8 / 120 3. झुकना। चमकना 2. पसन्द किया जाना, वि० चमकना, | रुज, रुजा (स्त्री०) रुज् +-क्विप, रुज्+टाप्] 1. भंग, जगमगाना--रघु० 615, 1714, भट्टि० 8 / 66 / अस्थिभंग 2. पीड़ा, संताप, यातना, वेदना--- अनिशबच, रचा (स्त्री०) रुच-विप, रुच-+टाप] 1. प्रकाश, मपि मकरकेतुर्गनसो रुजमावहन्नभिमतो मे स० 3 / 4, कान्ति, उज्ज्वलता,-क्षणदासु यत्र च रुचकतां गताः क्व रुजा हृदयप्रमाथिनी. - मालवि० 312, चरण -शि० 13 / 53 9 / 23, 25, शिखरमणिरुच:-- कि० रुजापरतिम् -.4 / 3 3, बीमारी, व्याधि, रोग--रघ० 5 / 43, मेघ० 44 2. रङ्ग, छवि (समास के अन्त में) 49 / 52 4. थकावट, श्रम, प्रयत्न, कष्ट / सम० चलयन्मृगरुचस्तालकान् ---रघु० 8153, कु. 365, --प्रतिक्रिया प्रतिकार या रोग की चिकित्सा, इलाज, कि० 5 / 45 3. अभिरुचि, इच्छा। चिकित्सा का व्यवसाय,-भेषजम् औषध, सन् सतक (वि.) [रुच+क्वन् ] 1. रुचिकर, सुखद 2. क्षुधा- (नपुं०) विष्ठा, मल। वर्षक या भूख बढ़ाने वाली (औषधि) 3. तीक्ष्ण, चपरा, रुण्डः,-डम् [रुङ्+ड, रुण्ड्+अच् वा सिर रहित शरीर, -क: 1. नीबू 2. कबूतर, कम 1. दाँत 2. सोने का घड़मात्र, कबन्ध-वेल्लरवरुण्डमण्डनिकरवीरो विधत्ते आभूषण विशेषकर हार 3. पौष्टिक या पाचनशक्ति- भुवम्-उत्तर० 5 / 6, मा० 3 / 17 / वर्धक 4, माला, हार 5. काला नमक / | ततम् [रु+क्त] क्रन्दन, किलकिलाना, दहाड़ना, शब्द For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy