________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1229 ) आचार्यसवः [आचार्य+म+अच] एकाह--अर्थात् एक परम सुख, परमानन्द,--औपम्पम् स्वसादृश्य, अपनी दिन तक रहने वाला यज्ञ का नाम / समानता-आत्मौपम्यन सर्वत्र भग०६।३२,-कर्मन् आचार्यकम् | आचार्य+क] 1. आचार्य का पद--ताण्डवा- (नपुं०) अपना कर्तव्य, ज्योतिः (नपुं०) आत्मा चार्यकं कुर्वन्निव क्रीडाशिखण्डिनाम--भा० 111106 की प्रभा, तेज तुप्त (वि०) अपने में संतुष्ट-आत्म2. आचार्य का सम्मान करना चकाराचार्यकं तत्र तृप्तश्च मानवः-भग० 3.17, प्रत्ययिक (वि.) कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः महा० 7.14716 3. भाष्य- अपने अनुभव से जानकारी प्राप्त करने वाला--आत्मकर्ता या व्याख्याकार का कर्तव्य - श्रुत्यञ्चलाचार्यकम् प्रत्ययिक शास्त्रम् - महा० 12 / 246 / 13, - भूः ---विश्व० 289 / कामदेव,--वर्य (वि०) अपने दल या समुदाय से आचेष्टित (वि.) [आ+चेष्ट-क्ति] उपक्रान्त, वचन संबंध रखने वाला, उद्वाहुना जहविरे महरात्मवर्याः दिया हुआ, - तम् कार्य, कृत्य, कार्यकलाप / --शि० 5 / 15, - संस्थ (वि.) अपने पर ही दृष्टि आच्छन्न (वि.) [आ+छद्+क्त] आवृत, ढका हुआ। जमाये हुए-आत्मसंस्थं मनः कृत्वा -भग०६।२५, आच्छावनम् [आ+छ+णिच+ल्यट] बिस्तरे की चादर। ... सतत्त्वम् दे० आत्मतत्त्वम्,-स्य (वि०) जो अपने आजात (वि.) [आ+जन्+क्त] उच्च कुल में उत्पन्न, / अधिकार में हो-आत्मस्थं कुरु शासनम्-रा०२।२१।८। यो वं कश्चिदिहाजातः क्षत्रियः क्षत्रकर्मवित्-- | आत्ययिक (वि.) [अत्यय+ठक] विलम्बित, जिसमें महा०५।१३४१३८ / पहले ही देर हो गई हो-कृत्यमात्ययिक स्मरन्-रा० आजानिक (वि.) [आ+जाया (जानि) स्वार्थे कन] 5 / 58/46 / अन्तर्जात, नैसर्गिक आजानिकरागभूमिता-10 आत्ययिका [अत्यय+ठक] 1. कठिनाई. संकट 2. अनिवार्य 15 / 54, अ० श० 5 / कर्तव्य / आजपादम् (नपुं०) पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र / आत्रेयी [अरपत्यं ढक, स्त्रियां ङोप] गभिणी स्त्री महा० आजिमुखम् [ष० त०] युद्ध का अग्रभाग। 12 / 165 / 54, आत्रेयीमापन्नगर्भामाह:--मी० सू०६। आजीवितान्तम् (अ०) मरने तक, मृत्युपर्यत / 117 पर शा० भा० / आज्यग्रहः [ष० त०] धी का कटोरा / आथर्वणम् [अथर्वन्-+अण्] जारण मारण टोना, जादू / आज्यभागः [ष० त०] घी की आहुति का हिस्सा / आदष्ट (वि.) [आ-+दश्+क्त] कुतरा हुआ, चोंच मारा आजनाम्यञ्जने (नपुं० कर्तृ० द्वि० ब०) आँखों का अंजन हुआ, लूंगा हुआ। __और पैरों का उबटन / आदानम् [आ+दा+ल्युट्] पराभूत करना, पराजित करना आजलिकः [अञ्जलि+ठक्] अर्धचन्द्र के आकार का एक -अथवा मन्त्रवद् ब्युरात्मादानाय दुष्कृतम् --महा० तीर। 12 / 212 / माटविकः [अटव्यां चरति भवो वा ठक्] जंगली जनजाति आदानसमितिः (स्त्री०) जैनियों के पांच सिद्वान्तों में से का चौधरी--कौ० अ० 110 / एक जिसमें वस्तु को इस प्रकार ग्रहण किया जाता आदयरोगः [आ+ध्ये क पृषो+रुज्+घञ्] गठिया, है जिससे कि कोई जीवहत्या न हो। सन्धिवात / आदाल्भ्यम् निर्भयता- महा० 12 / 1205 / आण्डकोशः [अण्ड+अण्+कोशः] अंडे का खोल। आदिः [आ+दा+कि] 1. प्रथम, प्रारम्भिक 2. साम के आतङ्कम् (आ+तञ्च+घञ, कुत्वम्] भरणी नक्षत्र / सात भेदों में से एक-अथ सप्तविघस्य वाचि सप्तविधं आतप्त (वि०) [आ+तप्+क्त] गर्म किया हुआ, आग सामोपासीत...."यदेति स आदिः - छा० 2 / 8 / 1 / में तपाया हुआ। सम-दीपकम् दीपकालंकार का एक भेद (जहाँ आतिशायिक (वि०) [अतिशय+ठक्] अतिप्रचुर, बहुत | क्रिया वाक्य के आरम्भ में हो),-विपुला आर्या अधिक। ___ छन्द का एक भेद, वृक्षः एक प्रकार का पौधा / आतिष्ठद्गु (अ०) [तिष्ठन्ति गावः यस्मिन्काले दोहाय | आदित्यवर्शनम् [ष० त०] एक संस्कार जिसमें चार मास के उस समय तक जब तक कि गौएँ दुहे जाने के लिए बच्चे को सूर्य दर्शन कराया जाता है। ठहरती है (सायंकाल के बाद एक डेढ़ घंटा तक) आविस्यपुराणम् एक उपपुराण का नाम / -आतिष्ठद्गु जपन् सन्ध्याम् - भट्टि० 4 / 14 / / आदीनवदर्श (वि.) [आ+दी+क्त+वा+क, दृश्+ मात्मन् (पुं०) [अत्+मनिण्] मानसिक गुण-भावद्धि- घा] पासे के खेल में अपने साथी खिलाड़ी के प्रति या सत्यं संयमश्चात्मसंभवः-महा० 121167 / 5 / दुर्भावना रखने वाला। (समस्त शब्दों में आत्मन् के 'म्' का लोप हो जाता | आदेशः [आ+दिश्+घञ] किसी कार्य को करने का है)। सम-मानग्यः आत्मा को प्राप्त होने वाला | संकल्प, व्रत-उद्धृत में स्वयं तोयं व्रतादेशं करिष्यति For Private and Personal Use Only