________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1328 ) फैलाना- दश० 2 / 2, दम्भक (वि०) समाज ! लोमटकः लोमड़।। को धोखा देने वाला, सामाजिक ठग, धर्मः सांसारिक लोमविष (वि.) [ब. स.] जिसके बालों में जहर भराहो। कर्तव्य, नाथः सूर्य,--परोक्ष (वि.) संसार से लोमशकर्णः बिल में रहने वाले जन्तुओं की एक जाति / छिपा हुआ, - प्रत्ययः सबका विश्वास, विश्व का | लोलकर्ण (वि०) प्रत्येक की सुनने वाला। प्राबल्य,-- भर्तु (वि.) जनसाधारण का पालक पोषक, | लोलम्बः भौंरा, भ्रमर / - यज्ञः संसार के प्रति भला रहने की इच्छा लोकै- | लोष्टगुटिका मिट्टी की गोलो। षणा-महा० 10 / 18 / 5 पर शा० भा०,-रावण लोष्टायते (ना०० धा० आ०) ढेले के समान समझना। (वि०) संसार को कष्ट देने वाला-रा० 3 / 33 / 1, / लोहः [लूयतेऽनेन-ल+ह ] 1. लोहा 2. इस्पात 3. तांबा ----वर्तनम् लोकव्यवहार जिससे संसार की स्थिति 4. सोना 5. अगर की लकड़ी। सम--अग्रम् लोहे बनी रहे,-विरुद्ध (वि.) लोकमत के विपरीत, की नोक, उच्छिष्टम् -उत्थम् - किट्टम् --मलम् लोहे --विसर्गः 1. संसार का अन्त 2. गौण सृष्टि, का जंग, - कुम्भी लोहे की घड़िया,-चर्मवत् धातु की -संबाषः जनसमुदाय,-सुन्दर (वि०) जिर तश्तरी से ढका हुआ मात्रः बर्थी। सौन्दर्य की सब लोग प्रशंसा करें। | लोहित (वि०) [रुह+इतन्, रस्य ल:] 1. आँख की लोकसात् (अ०) लोगों की भलाई के लिए। पलकों का एक रोग 2. एक प्रकार का मूल्यवान् लोचनम् [लोच+ल्युट ] 1. दर्शन, दष्टि, ईक्षण 2. आँख। | पत्थर, रत्न। सम०-अञ्चल: आंख की कोर,- आपातः झांकी, | लोह्यम् पीतल / / -आवरणम पलक,-परुष (वि०) देखने में विकराल। लौकिक (वि.) [लोक+ठक 11. सांसारिक 2. सामान्य लोभः [ लुभ+घा] 1. लालच, लालसा 2. इच्छा, 3. दैनिक जीवन संबंधी। सम०--अग्निः सामान्य प्रबल चाह 3. विस्मय, घबराहट, उलझन / सम. आग जो यज्ञ कार्यों में प्रयुक्त न होती हो,--न्यायः -अभिपातिन् (वि.) जो लालसा के कारण भागता सामान्यतः माना हुआ न्याय / है,-मोहित (वि.) लालच से अन्धा / / लोहशास्त्रम् धातुविज्ञान, धातुशोधन विद्या / बंशः[वम् +21. संगीत का एक विशेष स्वर 2. बाँस ... आख्यम् टीन, जस्त,-इतर (वि०) सीधा, 3. अहंकार, अभिमान 4. कुल। सम०--कर्मन् बाँस कोल: अङकुश,-गुल्फः ऊँट,-तालम् एक विशेष की दस्तकारी,--- कृत्यम् बंसरी बजाना, घरः वातोपकरण, रेखा टेढ़ी लाइन / किसी कुल में उत्पन्न,-पत्रपतितम् सत्रह मात्राओं बङ्गेरिका, चंगेरी, बाँस आदि की बनी टोकरी। का एक छन्द,-पात्रम् बांस की बनी टोकरी, --बाह्यः कुल से निष्कासित,-ब्राह्मणम् सामवेद वचनम् [वच् + ल्युट ] 1. बोलने की क्रिया 2. वक्तता ब्राह्मण का मूल पाठ, लून (वि.) संसार में अकेला 3. पाठ करना 4. उपदेश, धार्मिक पुस्तक का अंश - वनम् बाँसों का जंगल, वर्षनः पुत्र,-विस्तरः 5. आज्ञा, आदेश 6. परामरी, अनुदेश। सम. वंशावलो-स्थविलम् एक छन्द का नाम / अवक्षेपः अपशब्दों से युक्त बात, उपन्यास: सुझाबंश्यः बन्धुः, संबंधी, अपने कुल का। वात्मक वक्तृता, क्रिया आज्ञाकारिता, गोचर वक्तुकाम (वि.) बोलने की इच्छा वाला, (वि०) बात चीत का विषय बनाने वाला, गौरवम् वक्तुमनस् (वि.) बोलने का इच्छुक / शब्दों का आदर करना-पितुर्वचनगौरवात्-रा. वस्तुप्रयोक्त (वि.) सिद्धान्तिक और प्रायोगिक (राज- १,-व्यक्तिः किसी उक्ति की यथार्थ सार्थकता / नीतिश)। / बचोहरः दूत, रालची। वक (वि.) [वक+रन् पृषो० नलोपः] 1. टेढा, मुड़ा ववस्विन् (वि०) वाक्पटु, बोलने में चतुर-इतीरिते हुमा 2. गोलमोल, अप्रत्यक्ष 3. धुंधराले 4. बेईमान, वचसि वचस्विनामुना-शि० 171 / / कपटी, जालसाज,*:-1. मंगलग्रह 2. शनिग्रह, जम् उक्तवर्बम् (10) सिवाय उसके जो कह दिया है। 1. (ग्रह की) टेढ़ी बाल 2. नदी का मोड़। सम० ' उक्तिः [वच्+क्तिन् ] 1. न्याय, कहावत 2. वाक्य For Private and Personal Use Only