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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 782 ) दा उठना-वन्यः सरित्तो गज उस मस् ! ऋ+अण्, मसारका परिमाणम् ऋच्छति | मसरा [मस्+अरच्+टाप्] एक प्रकार की दाल, मसूर।। होना, उठना-वन्यः सरित्तो गज उन्ममज्ज-रघु० मसारः, मसारकः [मस्+क्विप्, मसं परिमाणम् ऋच्छति 5 / 43, 1679, कि० 9 / 23, शि० 9 / 30, नि डूबना, नीचे बैठना, ढल जाना (आल से भी) मसिः (पुं० स्त्री) [मस्+इन्] 1. स्याही 2. दीवे की यथा प्लवेनौपलेन निमज्जत्युदके तरन्, तथा निमज्ज स्याही, काजल 3. आंखों में लगाने की काली काजल / तोऽधस्तादज्ञो दातृ प्रतीच्छकौ-मनु० 4 / 194, 5 / 73, सम आधारः,--कूपी, --धानम्,---धानी, -मणिः शोके महुश्चाविरतं न्यमांक्षीत्-भट्टि० 3 / 30, 15 / स्याही रखने की बोतल, दवात, -जलम् रोशनाई, 31, शि० 9/74 गीत०१ 2. घुल जाना, डूब जाना. -~-पण्यः लेखक, लिपिकार,--पथः कलम, लेखनी, ओझल होना, नजर से बच निकलना,---एको हि दोषो -..प्रसूः (स्त्री०) 1. लेखनी 2. स्याही की बोतल, गुणसन्निपाते निमज्जतींदोः किरणेष्विवांक:-कु० - वर्धनम् लोबान / मसिकः [मसि+कन् साँग का बिल।। मस्तम् [ मस्+क्त ] सिर माथा। सम०- दारं (नपुं०) मसी [मसि + डीप्] दे० ऊपर 'मसि' / सम-जलम् देवदारु का पेड़,-मूलकम् गर्दन / / स्याही,-धानी दवात,-पटलम् काजल लगाना मस्तकः, कम् [ मस्मति परिमात्यनेन मस करणेत स्वार्थे क -शिरसि मसीपटलम् दधाति दीपः - भामि० तारा०] 1. सिर, माथा, खोपड़ी--अतिलोभा (पाठा० 1174 / तृष्णा) भिभूतस्य चक्र भ्रमति मस्तके-पंच० 5 / 22 मसु (सू) रः [मस् |-उरन्, ऊरन् वा] 1. एक प्रकार की 2. किसी चीज की चोटी या सिर न च पर्वतमस्तके दाल, मसूर 2. तकिया,-रा 1. मसूर की दाल 2. --मनु० 4 / 47, वृक्ष चुल्ली आदि / सम० -आख्यः वेश्या, रंडी। वृक्ष की चोटी, ज्वरः,-- शूलम् तीब्र सिरवर्द, मसूरिका [मसूर+कन्+टाप, इत्वस्] 1. एक प्रकार का —पिंडकः,--कम् मदोन्मत्त हाथी के गंडस्थल पर शीतला रोग, खसरा 2. मसहरी 3. कुट्टिनी, दूती। का गोल उभार, - मूलकम् गर्दन,--स्नेहः मस्तिष्क / मसूरी [मसूर + ङीष् ] छोटी चेचक / मस्तिकम् [= मस्तकम्, पृषो० इत्वम् ] सिर / मसण (वि०) [ऋण (दीप्ति)+क,पृषो० साधुः] 1. | मस्तिष्कम् [ मस्त मस्तकम् इष्यति स्वाधारत्वेन प्राप्नोति स्निग्ध, चिकना--मसणचंदनचितांगी-चौर० 7, मस्त। इष+क, वृषो०] दिमाग / सम० त्वच या, सरस मसृणमपि मलयजपंकम-गीत० 42. | (स्त्री०) मस्तिष्क पर चारों ओर लिपटी हुई मदू, कोमल, सरल-उत्तर० 1138 3. सौम्य, मद, झिल्ली। मधुमसणवाणि -- गीत० 10 4. प्रिय, मनोहर | मस्तु (नपुं०) [ मस्+तुन् ] 1. खट्टी मलाई 2. छाछ / . विनयमसणो वाचि नियमः - उत्तर० 2 / 2, 4 / 21 सम०-लुंगः, -- गम्, - लुंगकः, कम् मस्तिष्क, 5. चमकीला, उज्ज्व ल--मा० 1129, ४।२,--णा दिमाग। अलसी। मह / (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-महति, महयति-ते, मस्क (भ्या० पर० मस्कृति) जाना, हिलना-जलना। महित) सम्मान करना, आदर करना, बड़ा मानना, मस्करः [मस्क+अरच्] 1. बाँस 2. खोखला बाँस 3. गति, पूजा करना, श्रद्धा रखना, महत्त्वपूर्ण समझना-गोप्तार चाल 4. ज्ञान / न निधीनां महयंति महेश्वरम् विबुधाः - सुभा०, जयश्री मस्करिन (पु.) [ मस्कर+इनि ] 1. सन्यासी या साधु, विन्यस्तैर्महित इव मंदारकुसुमैः-गीत० 11, कु० सन्यास आश्रम में वर्तमान ब्राह्मण-धारयन् मस्क 5 / 25, 5 / 12, कि० 5 / 7,24, भट्टि० 102, रघु० रिव्रतम् - भाट्टे० 5 / 63 2. चन्द्रमा।' 11249 / मस्ज् (तुदा० पर० मज्जति, मग्न-प्रेर० मज्जयति-इच्छा० ii (भ्वा० आ० महते) विकसित होना, वढ़ना / भिमक्षति) 1. स्नान करना, डुबकी लगाना, पानी में | महः [ मह, घार्थे क ] 1. उत्सव, त्योहार बंधुताहृदयगोता लगाना - रघु० 15 / 101, भामि० 2 / 95 कौमुदीमहः .. मा० 9 / 21, स खलु दूरगतोप्यतिवर्तते 2. डूबना, ढलना, डूबजाना, नीचे बैठना, गोता लगाना / महमसाविति बंधुतयोदितः / शि०६।१९, मदनमहम्, (अधि० या कर्म० के साथ) सीदवंधे तमसि विधुरो - रत्न०१2. उपहार, यज्ञ 3. भैसा 4. प्रकाश, कांति मज्जतीवान्तरात्मा--उत्तर० 3 / 38, मा० 9 / 30 तु० 'महस' से भी। -सोऽसंवृतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति-मनु० 4181, महकः [ मह+कन् ] 1. प्रमुख पुरुष 2. कछुवा 3. विष्णु रघु० 16152 3. डुवना, पानी में नष्ट होना 4. दुर्भार का नामान्तर। ग्यग्रस्त होना 5. हतोत्साह होना, निराश या उत्साह- महत् (वि.) (म० अ० महीयस्, उ० अ० महिष्ठ, कर्त० हीन होना, उद् - पानी से बाहर आना, दृष्टिगोचर (पुं०) महान् महान्तौ महातः, कर्म० (ब० व०) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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