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( १८९ ) ऊपर उठाए हुए, जहाँ झंडे फहरा रहे हों-पुरंदरश्री: पाता मनुष्याणाम्--हि०१, अने० पा० 3. अनहोनी, पुरमुत्पताकम् -- रघु० २।७४ ।
संकटसूचक अशुभ या आकस्मिक घटना,---उत्पातेन उत्पतिष्णु (वि.) [उद्+पत् + इष्णुच्] उड़ता हुआ, ज्ञापिते च-वाति०, वेणी० ११२२, सापि सुकुमारऊपर जाता हुआ।
सुभगेत्युत्पातपरंपरा केयम्---काव्य० १० 4. कोई उत्पत्तिः (स्त्री०) [उद्---पद्+क्तिन] 1. जन्म विपदु- सार्वजनिक संकट (ग्रहण, भूचाल आदि), केतु
त्पत्तिमतामुपस्थिता-रघु० ८५८३, 2. उत्पादन,-कुसुमे -~-का० ५, धूमलेखाकेतु-मा० ९।४८। सम० कुसुमोत्पत्तिः श्रूयते न तु दृश्यते-शृंगार० १७, 3.. -पवनः,-वातः,-वातालि: अनिष्टसूचक या प्रचण्ड स्रोत, मूल-उत्पत्ति: साघुतायाः-का० ४५, 4.1 वायु, बवंडर या आंधी-रघु० १५।२३। उठना, ऊपर जाना, दिखाई देना 5. लाभ, उपजाऊपन, | उत्पाद (वि.) [ब० स०] जिसके पैर ऊपर उठे हों,-दः पैदावार। सम० ---- व्यंजकः जन्म का एक प्रकार जन्म, उत्पत्ति, प्रादुर्भाव-दुःखे च शोणितोत्पादे (उपनयन संस्कार करके या यज्ञोपवीत पहना कर शाखाङ्गछेदने तथा-याज्ञ०२।२२५, भङगुरम् ...पंच० छात्र को दीक्षित करना), द्विजत्व का चिह्न-मनु० २।१७७ । सम-शयः, यनः 1. बच्चा 2. एक रा६८।
प्रकार का तीतर। उत्पथः [उत्क्रान्तः पन्थानम-प्रा० स०] कुमार्ग (आलं० उत्पादक (वि.) (स्त्री०-दिका) [उद्+पद्-+णिच
भी)--गरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः, उत्पथ- +ण्वल, स्त्रियां टाप् इत्वं च उपजाऊ, फलोत्पादक, प्रतिपन्नस्य न्याय्यं भवति शासनम् । महा०, (परि- पैदा करने वाला, - कः पैदा करने वाला, जनक पिता, त्यागे विधीयते--पंच० १३०६,) शि० १२२४, --कम् उद्गम, कारण ।
--थम् (अव्य.) कुमार्ग पर, पथभ्रष्ट (भला-भटका)। उत्पादनम् [उद्+पद्+णिच् + ल्युट] जन्म देना, पैदा उत्पन्न (भू० क० कृ०) [उद्+पद्+क्त] 1. जात, पैदा करना, जनन-उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम्
हुआ, उदित 2. उठा हुआ, ऊपर गया हुआ 3. अवाप्त । मनु० ९।२७ । उत्पल (वि०) [उत्क्रान्तः पलं मासम्-उद्-पल+अच्] उत्पादिका [ उद्+पद+णिच् -- वुल-टाप, इत्वम् ]
मांसहीन, क्षीण, दुबला-पतला, --लम् 1. नील कमल, 1. एक प्रकार का कीड़ा, दीमक 2. माता। कमल, कुमुद-नवावतारं कमलादिवोत्पलम्-रघु० | उत्पादिन् (वि०) [उद्+पद्-+-णिच् ---णिनि] पैदा हुआ, ३॥३६, १२२८६, मेघ० २६, नीलोत्पलपत्रधारया-श० जात-सर्वमुत्पादि भङगुरम्-हि० २०८। १४१८, इसी प्रकार-रक्त 2. सामान्यत: पौधा। उत्पाली [उद्+पल। घा+डीप्] स्वास्थ्य। सम० --अक्षः,-चक्षुस् (वि०) कमल जैसी आँखों उत्पिजर-ल (वि.) [अबा० स०] 1. मक्त, जो पिंजड़े वाला,-पत्रम 1. कमल का पत्ता 2. किसी स्त्री के में बन्द न हो 2. क्रमहीन, अव्यवहित । नाखन से की गई खरोंच, नखक्षत ।
उत्पीडः [उद्+पं.ड्-घा] 1. दबाव 2. (क) धाराउत्पलिन (वि.) [उत्पल इनि कमलों से भरपूर,--नी। प्रवाह, धाराप्रवाही बहाव-बाप्पोत्पीड:-का० २९६
1. कमलों का समूह, 2. कमल का पौधा जिसमें कमल ---उत्पीड इव धूमस्य मोहः प्रागावृणोति माम-उत्तर० लगे हों।
३१९, नयनसलिलोत्पीडरुद्ध वकाशाम-मेघ० ९१ (ख) उत्पवनम् [उद्+-पू+ल्युट्] मार्जन करना, शोधन करना। उत्प्रवाह, आधिक्य, –पूरोत्पीडे तडागस्य परीवाहः -मनु० ५।११५ ।
प्रतिक्रिया-उत्तर० ३।२९. 3. झाग, फेन । उत्पाटः [ उद्+पट्-+-णिच् + घा ] 1. मूलोच्छेदन, उत्पीडनम् [उद्+पीड्+णिच् + ल्युट्] 1. दबाना, निचोउन्मूलन 2. बाह्य कान में शोथ ।
इना 2. पेलना, आघात करना-- का० ८२ । उत्पाटनम् [उद् पट् + गि+ ल्युट्] उखाड़ना, मूलो- उत्पुच्छ (वि.) [ब० स० जिसकी पंछ ऊपर उठी हो। च्छेदन, उन्मुलन ।
उत्पुलक (वि०) [ब० स०] 1. रोमांचित, जिसके रोंगटे उत्पाटिका [ उद्+पट - णिच् + ण्वुल-+टाप्, इत्वम् ] / खड़े हो गये हों 2. हॉन्फुल्ल, प्रसन्न। वक्ष की छाल।
उत्प्रभ (वि.) [व० स०] प्रकाश बस्नेरने माला,-प्रभाउत्पार्टिन (वि.) [उद् --पट +-णिच् +णिनि) (बहुधा पूर्ण,-भः दहकती हुई आग।
समास के अन्त में प्रयुक्त) मूलोच्छेदन करने वाला, उत्प्रसवः [उद्+प्र+मू-अत्र गर्भपात ।
फाड़ने वाला-कोलोत्पाटीव वानरः-पंच० १२१ । | उत्प्रास:-सनम् [उद्+प्र-अम् -घा. ल्युट् या] 1. उत्पातः [उद्+ पत्+घञ] 1. उड़ान, छलांग, कूदना | फेंकना, पटकना 2. मजाक, मखील 3. अट्टहास 4.
--एकोत्पातेन--एक छलांग में 2. उलट कर आना, खिल्ली उड़ाना, उपहास करना, व्यंग्योक्ति । ऊपर उठना (आलं भी)-करनिहतकन्दुकसमाः पानो- उत्प्रेक्षणम् [उद्+प्र+ईश् । ल्युट] 1. दृष्टिपात करना,
उत्पादिन् सर्वमुत्पादि
+51. मुक्त,
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