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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९७ तेन हि अस्य गहीतार्था भवामि-विक्रम० २, (यदि ऐसी बात है तो मुझे इस विषय की जानकारी होनी चाहिए), 6. दौलत, धन, सम्पत्ति, रुपया त्यागाय संभृतार्थानाम्-रघु० ११७, धिगर्थाः कष्टसंश्रया:पंच० १११६३, 7. धन या सांसारिक ऐश्वर्य का | प्राप्त करना, जीवन के चार पुरुषार्थों में से एकअन्य तीन है :-धर्म, काम और मोक्ष; अर्थ, काम और धर्म मिलकर प्रसिद्ध त्रिक बनता है, तु० कु. ५।३८,-अप्यर्थकामौ तस्यास्तां धर्म एव मनीषिणःरघु० १।२५, 8. (क) उपयोग, हित, लाभ, भलाई; -तथा हि सर्वे तस्यासन परार्थंकफला गुणा:---रघु० १२२९, याबानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लतोदके-भग० २१४६, दे० व्यर्थ और निरर्थक भी (ख) उपयोग, आवश्यकता, जरूरत, प्रयोजन—करण के साथ, -कोऽर्थः पूत्रेण जातेन-पंच०१ (उस पुत्र के पैदा होने से क्या लाभ?) कश्च तेनार्थः---दश० ५९, कोऽर्थस्तिरश्चां गुणः-पंच० २१३३, क्रूर व्यक्ति गुणों की क्या परवाह करते हैं? भर्त०२।४८;-योग्येनार्थः कस्य न स्याज्जनेन--शि० १८१६६, नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन – भग० ३.१८, 9. मांगना, याचना, प्रार्थना, दावा, याचिका 10. कार्यवाही, अभियोग (विधि) 11 वस्तुस्थिति, याथार्थ्य, जैसा कि यथार्थ, और अर्थतः में-तत्त्वविद् 12. रीति, प्रकार, तरीका 13. रोक, दूर रखना--मशकार्थो धूमः, प्रतिषेध, उन्मूलन 14. विष्णु। सम० -अधिकारः रुपये-पैसे का कार्यभार, कोषाध्यक्ष का पद०, रे न नियोक्तव्यो-हि. २,--अधिकारिन (पुं०) कोषाध्यक्ष,---अन्तरम् 1. अन्य अभिप्राय या | भिन्न अर्थ 2. दूसरा कारण या प्रयोजन-अर्थोऽयमर्थान्तरभाव्य एव-कु० ३.१८ 3. एक नई बात या परिस्थिति, नया मामला 4. विरोधी या विपरीत अर्थ, अर्थ में भेद, न्यासः एक अलंकार जिसमें सामान्य से विशेष या विशेष से सामान्य का समर्थन होता है, यह एक प्रकार का विशेष से सामान्य अनुमान है अथवा इसके विपरीत-उक्तिरर्थान्तरन्यास: स्यात सामान्यविशेषयोः । (१) हनमानब्धिमतरद दुष्कर किं महात्मनाम् । (२) गुणवद्वस्तुसंसर्गाद्याति नीचोऽपि गौरवम्, पुष्पमालानुषङ्गेण सूत्रं शिरसि धार्यते ।। कुवल०, तु० काव्य० १० और सा० द० ७०९, -अन्वित (वि.) 1. धनवान, दौलतमंद 2. सार्थक, -अर्थिन् (वि०) जो अपना अभीष्ट सिद्ध करने के लिए या धन प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है, —अलंकारः साहित्यशास्त्र में वह अलंकार जो या तो अर्थ पर निर्भर हो, या जिसका निर्णय अर्थ से किया जाय, शब्द से नहीं (विप० शब्दालंकार),I ) --आगमः 1 धन की प्राप्ति, आय 2. किसी शब्द के अभिप्राय को बतलाना,-आपत्तिः (स्त्री०) 1. परिस्थितियों के आधार पर अनुमान लगाना, अनुमानित वस्तु, फलितार्थ, ज्ञान के पाँच साधनों में से एक अथवा (मीमांसकों के अनुसार) पाँच प्रमाणों में से एक, प्रतीयमान असंगति का समाधान करने के लिए यह एक प्रकार का अनुमान है, इसका प्रसिद्ध उदाहरण है :-पीनो देवदत्तः दिवा न भङक्ते, यहाँ देवदत्त के 'मोटेपन' और 'दिन में न खाने की असंगति का समाधान 'वह रात्रि को अवश्य खाता होगा' अनुमान से किया जाता है; 2. एक अलंकार (कुछ साहित्यशास्त्रियों के अनुसार) जिसमें एक संबद्ध उक्ति से ऐसे अनुमान का सुझाव मिलता है जो प्रस्तुत विषय से कोई संबंध नहीं रखता-या इसके ठीक विपरीत है; यह कैमुतिकन्याय या दण्डापूपन्याय से मिलता जुलता है; उदा०-हारोऽयं हरिणाक्षीणां लुठति स्तनमण्डले, मुक्तानामप्यवस्थेयं के वयं स्मरकिङ्कराः । अमरु० १००, अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिषु--रघु० ८।४३,-उत्पत्तिः (स्त्री०) धन प्राप्ति, इसी प्रकार उपार्जनम् ;-उपक्षेपकः (नाटकों में) एक परिचयात्मक दृश्य-अर्थोपक्षेपकाः पंच-सा० द. ३०८,-उपमा जो उपमा अर्थ पर निर्भर रहे, शब्द पर नहीं दे० 'उपमा' के नीचे-उष्मन् (पुं०) धन की चमक या गर्मी --अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव भर्त० २।४०,-ओघः-राशिः कोष, धन का भंडार,—कर (स्त्री०-री),-कृत (वि.) 1. धनी बनाने वाला 2. उपयोगी, लाभदायक,-काम (वि.) धन का इच्छुक, (-मौ-द्वि०व०) धन और चाह या सुख, रघु० ११२५,-कृच्छम् 1. कठिन बात 2. आर्थिक कठिनाई-न मुह्येदर्थकृच्छषु-नीति-कृत्यम् किसी कार्य का सम्पन्न करना-अभ्युपेतार्थकृत्याः =मेघ० ३८,-गौरवम् अर्थ की गहराई--भारवेरर्थगौरवम्-उद्भट०, कि० २।२७,—उन (वि.) (स्त्री० घ्नी) अतिव्ययी, अपव्ययी, फिजूलखर्च,-जात (वि.) अर्थ से परिपूर्ण (–तम्) 1. वस्तुओं का संग्रह 2. धन की बड़ी रकम, बड़ी सम्पत्ति, तत्त्वम् 1. वास्तविक सचाई, यथार्थता, 2. किसी वस्तु की वास्तविक प्रकृति या कारण,-द (वि.) 1. धन देने वाला, 2. लाभदायक, उपयोगी 3. उदार,दूषणम् 1. अतिव्यय, अपव्यय 2. अन्यायपूर्वक किसी की संपत्ति ले लेना, या किसी का उचित पावना न देना, -दोषः (अर्थ की दृष्टि से) साहित्यिक त्रुटि या दोष, साहित्य-रचना के चार दोषों में से एक-दूसरे तीन हैं:-पद दोष, पदांशदोष और वाक्य दोष, इनकी परिभाषाओं के लिए दे० काव्य०७,-निबंधन (वि.) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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