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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 710 ) बलिन् (वि.) [बल+इनि ] मजबूत, शक्तिशाली, बस्तः [बस्तु +घा बकरा। सम-कर्णः साल वृक्ष / ताकतवर, रघु० 16 / 37, मनु० ७।१७४--(पुं०) | बहल (वि.) [बहु, +अलच्] 1. अत्यधिक, यथेष्ट, प्रचुर, 1. भैसा 2. सूअर 3. ऊँट 4. साँड़ 5. सैनिक 6. एक पुष्कल, बहुबिध, महान्, मजबूत --उत्तर० 1138, प्रकार की चमेली 7. कफात्मक वृत्ति 8. बलराम का 3 / 23, शि०९।८, भामि० 4 / 27 2. घिनका, सघन विशेषण। 3. लोमश (पूंछ की भांति)-मा० 3 4. कठोर, दृढ़, बलिन, बलिभ [वलि+न, भवा, बवयोरभेदः ] दे० सटा हुआ,-लः एक प्रकार का इक्षुरस, ईख, गन्ना, 'वलिन - भ'। -ला बड़ी इलायची। सम०-गन्धः एक प्रकार मलिन्दमः [बलि+दम् +खच्, मुम्] विष्णु का विशेषण। का चंदन। बलिमत (वि.) [ बलि+मतुप् ] 1. पूजा या आहुति की | बहिस (अव्य) [वह इसन ] 1. में से. बाहर (अपा० सामग्री तैयार रखने वाला - रघु० 14 / 15 2. कर के साथ)-निवसन्नावसथे पुराबहिः ---रघु० 8 / 15, उगाहने वाला। 11129 2. बाहर की ओर, दरवाजे के बाहर (विप० बलिमन् (पुं०) [ बल+इमनिच् ] सामर्थ्य, ताकत, अन्तः) बहिर्गच्छ 3. बाह्यतः, बाहर की ओर से-अन्तशक्ति / बहिः पुरत एव विवर्तमानाम्-मा० 140, १४-हि. बलिवर्द दे० बलीवर्द। 1194 (बहिष्कृ 1. बाहर की ओर रखना, से निकाबलिष्ठ (वि०) [ बलवत् (बलिन्) +इष्ठन् ] अत्यन्त लना, हांक कर बाहर कर देना-मनु० 81380, बलशाली, अत्यन्त मजबूत, अतिशय शक्तिशाली, याज्ञ० 1193 2. जाति से बाहर करना, बहिर्गम्, -ठः ऊँट। -या,- इ बाहर जाना, चले जाना) / सम०-अङ्ग बलिष्णु (वि०) [ बल+ इष्णुच् ] अपमानित, अनादृत, (वि०) बाहर का, बाहर की ओर का (गम) 1. बाहरी तिरस्कृत। भाग 2. बाहरी अंग,---उपाधिः (बहिरुपाधिः) बाहरी बलीक: [ बल+ईकन् 1 छप्पर की मंडेर। दशा या परिस्थिति--मा० ११२४,चर (वि०) बाहर बलीयस् (वि.) (स्त्री०-सी) [ बलवत् (बलिन् / का, बाहर की ओर का, बाहर की तरफ का-बहिश्चराः ईयसुन् ] 1. अपेक्षाकृत मजबूत, अधिक शक्तिशाली प्राणा:-.-दश०,-द्वारम् बाहर का दरवाजा, दहलीज। 2. अधिक प्रभावी 3. अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण। (वि०) (स्त्री०-हु,-ह्वी) [बह +कु नलोपः-म. बली (री) वर्दः [वृ+क्विप्-वर,ई वश्च = ईवरो, तौ अ०-भूयस्, उ० अ०-भूयिष्ठ] 1. अधिक, पुष्कल, ददाति-दा+क, ईवर्द, बली चासौ ईवर्दश्च कर्म० प्रचुर, बहुत--तस्मिन् बहु एतदपि-श० 4, 'यह स० ] सांड़, बैल ---गोरपत्यं पुमान् बलीवर्दः / भी उसके लिए अधिक था' (इतना अधिक जितने बल्य (वि०) [बल+ यत् ] 1. मजबूत, शक्तिशाली की उससे अपेक्षा न की जा सके )-बहु प्रष्टव्यमत्र 2. शक्तिप्रद, ल्यः बौद्ध भिक्षु, ल्यम् वीर्य शुक्र / -----मुद्रा० 3, अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्-रधु० बल्लवः [ बल्ल-अच तं वाति वा+कः] 1. ग्वाला 2 / 47 2. अनेक, असंख्य ---यथा 'बह्वक्षर' और -कुजेष्वाक्रांत वीरुन्निचयपरिचया बल्लवाः संचरन्तु 'बहु प्रकार' में 3. बार-बार किया गया, दोहराया --वेणी० 6 / 2, शि० 1138 2. रसोइया 3. विराट गया 4. बड़ा, विशाल 5. भरापूरा, समद्ध (समास के के यहाँ भीम का नाम जब वह रसोइये का कार्य प्रथम पद के रूप में)-बहुकण्टको देश:-आदि-(अन्य०) करता था,-वी ग्वालिन-कि० 417 / सम० अति, बहुतायत से, अत्यधिक, अत्यंत, अतिशयपूर्वक, -युवतिः, ती (स्त्री०) जवान ग्वालिन (गोपी) बड़े परिमाण में 2. कुछ, लगभग, प्राय: जैसा कि हरिविरहाकुलबल्लवयुवतिसखीवचनं पठनीयम् 'बहुतण' में (कि बहुना अधिक, कहने से क्या लाभ ? --गीत० 4 / 'संक्षेप में' बहुमन् बहुत सोचना, बहुत मानना, ऊँचा बल्वजः-जा [?] एक प्रकार का मोटा घास-मनु० 2043 / मूल्य लगाना, बहुमूल्य मानना, कद्र करना-- त्वत्सबल्हिकाः, बल्हीकाः (ब० व०) एक (बलख) देश का भावितमात्मानं बहु मन्यामहे वयम् - कु० 6 / 20, तथा उसके अधिवासियों का नाम / ययातेरिव शर्मिष्ठा भर्तुर्बहुमता भव--श० 4 / 6, 7 / 1, बष्कय (वि०) [बष्क+अयन् | बहड़ा (एक वर्ष का रघु० 12189 भग० 2 / 35, भट्टि० 3 / 53, 5 / 84, बछड़ा)। 8 / 12) / सम०--अक्षर (वि०) अनेक अक्षरों बष्कय (यि) णी (नी) (स्त्री०) [बष्कय+इनि+ङीप्] वाला, (शब्द) बहुत से अक्षरों से बना हुआ,-अच, 1. वह गाय जिसका बछड़ा पूरा बढ़ गया हो...नै० ----अच्क (वि०) अनेक स्वरों से युक्त, बहुत स्वरों 16.92 2. बहुप्रसवी गाय (जिसके बहुत बछड़े पैदा बाला,-अप,-अपं (वि०) जलयुक्त,--अपत्य (वि०) अनेक संतानों से युक्त (त्यः) 1. सूअर 2. मूसा, बर For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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