________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 709 ) (स्त्री०) 1. शिविर, पड़ाव 2. राजकीय छावनी, | धार्मिक) नीबारबलि विलोकयतः-श० 4120, -हन (पुं०) इन्द्र का विशेषण,-हीन (वि.) 1149 2. दैनिक आहार (चावल, अनाज तथा पी वलहीन, दुर्बल, अशक्त / आदि) में से कुछ अंश का सब जीवों को उपहार, बलक्ष (वि.) [ बलं क्षायत्यस्मात्-क्षे+क ] श्वेत--द्विर (इसे 'भूतयज्ञ' भी कहते हैं) दैनिक पंच महायज्ञों में ददन्तबलक्षमलक्ष्यत स्फुरितभङ्गमगच्छवि केतकम् से एक, बलिवैश्वदेव यज्ञ (दे० मनु० 33691) -शि० 6 / 34 / सम० - गुः (गो 'किरण' का इसका अनुष्ठान घर के द्वार के निकट, भोजन करने रूपान्तर) चन्द्रमा-यथानत्यर्जुनाब्जन्मसदक्षाको बल- से पूर्व दैनिक आहार का कुछ अंश बाहर आकाश में क्षगुः -- काव्या० 1146, (गौडीयों के प्रसाद गुण का फेंक कर किया जाता है यासां बलि: सपदि मदंगएक उदाहरण)। हदेहलीनां हंसश्च सारसगणश्च विलुप्तपूर्वः-मच्छ. बललः [ बल+ला+क] इन्द्र का विशेषण। 119 3. पूजा, आराधना-कु. 160, मेघ० 55, श. बलवत् (वि०) [बल+मतुप ] 1. मजबूत, शक्तिशाली, 4 4. उच्छिष्ट 5. देवमूर्ति पर चढ़ाया नैवेद्य 6. शुल्क, ताकतवर-विधिरहो बलवानिति मे मतिः-भर्तृ० कर, चुंगी-प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलि२।९१ 2. बलिष्ठ, हट्टा-कट्टा 3. सघन, घिनका (अंध मग्रहीत् --रघु० 1118, मनु० 780, 81007, कार आदि) 4. अधिभावी, सर्वप्रमुख, प्रभविष्णु 7. चंवर का डंडा 8. एक प्रसिद्ध राक्षस का माम (यह बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति-मनु० 2 / 215 प्रह्लाद के पुत्र विरोचन का पूत्र था, बहत शक्तिशाली 5. अति महत्त्वपूर्ण, अत्यावश्यक-रघु० 14 / 40 था, देवताओं को अत्यंत पीडित करता था। फलस्व(अव्य०) 1. मजबूती से, शक्ति के साथ-पुनर्व- रूप देवताओं ने विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। शित्वादलवद्विगृह्य-कु० 3169 2. अत्यधिक, अत्यंत, विष्णु ने कश्यप और अदिति का पुत्र बन कर वामन अतिशय मात्रा मे-बलवदपि शिक्षितामात्मन्यप्रत्ययं का अवतार धारण किया। उसने साधु का वेश धारण चेतः--श०१२, शीताति बलबदुपेयषेव नीरः - शि० किया। और बलि के पास जाकर उससे तीन पग 8 / 62, श० 5 / 31 / पृथ्वी मांगी। स्वभाव से उदार बलि न निस्संकोच बला [बल+अच-+टाप्] शक्तिसंपन्न ज्ञान या मन्त्रयोग प्रकट रूप से इस सामान्य प्रार्थना को स्वीकार कर (यह योग विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को बतलाया लिया। परन्तु शीघ्र ही वामन ने अपना विराट रूप था)-तौ बलातिबलयोः प्रभावतः - रघु०११।९। दिखलाया और तीन पग मापना शुरु किया। पहले बलाकः,-का [ बल+अक्+अच, स्त्रियां टाप् च ] बगला, पग से उसने सारी पृथ्वी को आच्छादित कर लिया, -~-सेविष्यते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः मेघ० दूसरे से समस्त अन्तरिक्ष को और तीसरे पग के लिए 9, मृच्छ० 5 / 18, 19,- का प्रिया, कान्ता / स्थान न पाकर उसे बलि के सिर पर रख दिया, बलाकिका [ बलाका+कन्+टाप्, इत्वम् | छोटी जाति और राजा बलि को उसकी असंख्य सेना समेत पाताल बगला। लोक भेज कर वहाँ का शासक बना दिया। इस बलाकिन् (वि.) [बलाका-इनि 1 बगलों या सारसों प्रकार विश्व एक बार फिर इन्द्र के शासन में बा से भरा हुआ-कालिकेव निबिड़ा बलाकिनी-रघु० गया) छलयसि विक्रमणे बलिमभृत-वामन-गीत. 11 / 15, कु०७।३९ / 1, रघु० 7 / 35, मेघ० 57, - लि: (स्त्री०) तह, बलात्कारः [ बल+अत्+विवप्= बलात्-+ कृ०+अण् ] झरौं (प्रायः 'बलि' लिखा जाता है)। सम० --कर्मन् 1. हिंसा का प्रयोग करना, बल लगाना 2. सतीत्व (नपुं०) 1. सब जीवजन्तुओं को भोजन देना 2. कर नाशन, विनयभंग, बल, अत्याचार, छीनाझपटी-रघु० अदायगी, वानम् 1. देवता को नैवेद्य अर्पण करना 10 / 47, बलात्कारेण निर्वर्त्य आदि 3. अन्याय 2. सब जीव जंतुओं को भोजन देना,-ध्वंसिन् (पुं०) 4. (विधि में) उत्तमर्ण द्वारा अघमर्ण को रोकना विष्णु का अवतार,-नन्दनः - पुत्रः, सुतः बलि के तथा ऋण की वापसी के लिए बल का प्रयोग करना / पुत्र बाण का विशेषण,- पुष्टः,-भोजनः कौवा,-प्रियः बलातत (वि.) [बलात्++क्त] जिसके साथ जबर- लोध्र वृक्ष, बन्धनः विष्णु का विशेषण,-भज(पुं०) दस्ती की गई हो या जो परास्त कर दिया गया हो / 1. कौवा 2. चिड़िया 3. बगला या सारस,-मन्दिरम्, बलाहक: [बल+आ+हा+कून ] 1. बादल- बलाह- ---- वेश्मन् -- सद्मन् (नपुं०) पाताल लोक, बलि का कच्छेदविभक्तरागामकालसन्ध्यामिव धातुनत्ताम्- कु. आवासस्थान,-व्याकुल (वि०) पूजा में अथवा सब 114 2. एक प्रकार का बगला या सारस 3. पहाड़ जीव जन्तुओं की भोजन देने वाला - मेघ०८५-हन् 4. प्रलयकालीन सात बादलों में से एक / (पुं०)विष्णु का विशेषण,-हरणम् सब जीव जन्तुओं बलिः [बल+इन् ] 1. आहुति, भेंट, चढ़ावा (प्रायः / / को भोजन देना। For Private and Personal Use Only