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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेश,—आलुञ्चनम् अपने शिकार पर झपटना, और । भग० ८।१९, ९१८ 4. सरगम, (संगीत में) स्वरउसे फाड़ डालना पेनो ग्रहालञ्चने-मच्छ ० ३१२० ग्राम गा सुरक्रप। सम० ----अधिकृतः,-अध्यक्ष: -ईशः सूर्य, कल्लोल: राहु का विशेषण,-गतिः ग्रहों ----- ईशः,---ईश्वरः ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या की चाल चिन्तकः ज्योलिपी, - दशा जन्मराशि को प्रधान,- अन्तः गाँव की सीमा, गांव को समीपवर्ती दृष्टि से ग्रहों की स्थिति, वह समय जब कि उनका जगह-मनु०४।११६, ११७९,--अन्तरम् दूसरा गाँव, शुभाशुभ फल होता है,--देवता ग्रह विशेष का ....अन्तिकम् गाँव का पड़ोस,--आचारः गाँव के रस्मअधिष्ठातृ देवता,-- नायक: 1. सूर्य 2. शनि का रिवाज,---आधानम् शिकार,-उपाध्यायः गाँव का विशेषण,- नेमिः चन्द्रमा,-पतिः 1. सूर्य 2. चन्द्रमा, पुरोहित,---कण्टक: 1. गाँव के लिए कांटा' जो गांव --पीडनम---पीडा 1. ग्रहजनित पीडा, बाधा 2. ग्रहण को कष्ट देने वाला हो 2. त्रुगलखोर, ... कुक्कुटः पालतू लगना - शशिदिवाकरयोग्रहपीडनम् --- भर्त० २९१, मुर्गा, कुमार: 1. ग्राम का सुन्दर बालक 2. देहाती ----मण्डलम्,- लो ग्रहों का वृत्त,--युतिः (स्त्री०) लड़का, - कूट: 1. गाँव का श्रेष्ठ पुरुष 2. शूद्र,-गृह्म एक ही राशि पर ग्रहों का संयोग,—युद्धम् ग्रहों का । (वि.) गाँव के बाहर होने वाला,-गोबुहः गाँव का परस्पर विरोध या संघर्ष,--राजः 1. सूर्य 2. चन्द्रमा जाला, घातः गाँव को लटना,--घोषिन् (०) इन्द्र 3. बृहस्पति,-वर्षः ग्रहों की चाल के अनुसार माना का विशेषण, ..चर्या स्त्री संभोग,-चैत्यः गाँव का जाने वाला वर्ष,-त्रिः ज्योतिषी, ---शान्तिः (स्त्री) पनित्र 'गलर' का वृक्ष---मेघ० २३,--जालम् गांवों यज्ञ, जप, पुजनादि के द्वारा ग्रहदोष की नित्ति का का रामह, ग्राममंडल, - णीः 1. गाँव मा जाति का उपाय किया जाना, ग्रहों को प्रसन्न करना, संगमम् नेता या मुखिया 2. नेता, प्रधान 3. नाई 4. विषयाकई ग्रहों का इकट्ठा हो जाना । सक्त पुरुष (स्त्री०) 1. वारांगना, वेश्या 2. नील ग्रहणम् बह+ ल्युट्] 1. पकड़ना, फांसना, अभिग्रहण -श्वा का पौधा, तक्षः गाँव का बढ़ई,-देवता गाँव का मृगग्रहणेऽशुचिः-मनु० ५।१३० 2. प्राप्त करना, स्वीकार अभिरक्षक देवता, धर्मः स्त्री-संभोग, ओष्य: किसी करना, ले लेना आचारधूमग्रहणात्-रषु० ७।१७ गाँव या जाति का दूत या सेवक,--मद्गुरिका झगड़ा, 3. उल्लेख करना, उच्चारण करना--नामग्रणम् फसाद, हंगामा, हल्लागुरुला, -मुखः बाजार, मंडी, 4. पहनना, धारण करना--सोत्तरच्छदमध्यास्त नेप- -मुगः कुत्ता,--याजकः,-याजिन् (पुं०) 1. ग्रामथ्यग्रहणाय सः-रघु०१७।२१ 5. ग्रहण लगना-यान० पुरोहित, वह पुरोहित जो सभी जातियों के धार्मिक ११२१८ 6. अवबोधन, समझ, ज्ञान-न परेषां ग्रह- संस्कार कराता है, फलत: पतित ब्राह्मण समझा जाता णस्य गोचराम-नै० २०९५ 7. अधिगम, अवाप्ति, है 2. पुजारी,---लुण्ठनम् गाँव को लूटना.-वासः ('ग्रामे मन से समझ लेना, पारंगत होना-लिपेर्यथावग्रह- बासः' भी) गाँव में रहना,--पण्ड: नपुंसक क्लीव, णेन वाङमयं नदीमुखेनेव समुद्रमादिशत् रघु० ३।२८ -संपः प्राम-निगम,-सिंहः कुत्ता,-स्थ (वि०) 1. गाँव 8. शब्द पकड़ना, प्रतिव्यनि---आदिग्रहणगुरुभिजित- में रहने वाला, ग्रामीण 2. गाँव का सहवासो, एक हो नतंयेथाः-मेघ० ४४१. हाथ 10 इन्द्रिय । गाँव का रहनेवाला साथी,-हासक: बहनोई, जीजा। ग्रहणिः,-णी (स्त्री०) [ग्रह +अनि, ग्रहणि ---ङीष्] अति- ग्रामटिका [?] गाँवड़ी, अभागा गाँव, दरिद्र गाँव-कतिसार, पेचिश। पयग्रामटिकापर्यटनदुर्विदग्ध--प्रस०१। प्रहिल (वि.) [ग्रह+इलच्] 1. लेनेवाला, स्वीकार करने प्रामिक (वि.) (स्त्री-की) [ग्राम+37 1 देहाती, वाला 2. न दबने वाला, अटल, कठोर --न निशाखि- गंवार 2. अक्खड़,--कः गाँव का चौधरी या मुखिया लयापि वापिका प्रससाद ग्रहिलेव मानिनी--- नै० मनु० ७११६, ११८। २७७ । ग्रामीणः [ग्राम+खन] 1. ग्रामवासी, गाँव का रहने महोत (वि०) (स्त्री०--त्री) [ग्रह +तच, इटो दीर्घः] वाला-ग्रामीणवध्वस्तमलक्षिता जनश्चिरं वृतीनाम 1. प्राप्तकर्ता, जैसा कि 'गुणग्रहोतृ' में 2. प्रत्यक्षज्ञाता, परि व्यलोकयन् --शि० १२॥३७ अमरु ११ 2. कुत्ता निरीक्षक 3. कर्जदार। 3. कौवा 4. सूअर।। ग्रामः [ग्रस्---मन्, आदन्तादेशः] 1. गाँव, पुरवा--पत्तने | ग्रामेय (वि.) (स्त्रो०-यो) ग्राम--ढक गाँव में उत्पन्न, विद्यमानेऽपि ग्रामे रत्नपरीक्षा--मालवि० १, पजेदेकं | गंवार,---यो रंडी, वेश्या । कुलस्यार्थे ग्रामस्थार्थे कुलं त्यजेत्, ग्रामं जनपदस्यार्थे ग्राम्य (वि०) [ग्राम+यत्] 1. गाँव से संबंध रखने वाला, स्वात्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् - हि० १११४९, रघु० गाँव में रहने का अभ्यस्त --मनु० ६३, ७४१२० २४४, भेष० ३० 2. वंश, जाति 3. समुच्चय, संग्रह 2. गाँव में रहने वाला, देहाती, गंवार- अल्पव्ययेन (किन्हीं वस्तुओं का)--उदा० गुणग्राम, इन्द्रियग्राम । सुन्दरि, ग्राम्यजनो मिष्टमश्नाति-छं० ११३ 3. घरेल, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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