________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RASHTRA बलिर (वि) [वल् + किरच्] भंगी आँख वाला, ऐंचा- | वल्गु (वि.) [वल संवरणे उ गुक् च] 1. प्रिय, सुन्दर, ताना, कनखी से देखने वाला। मनोहर, आकर्षक - रघु० 5 / 68, शि० 529, कि० पलिशम्,-शी [वलि+शो+क, वलिश+कीष्] मछली 18.11 2. मधुर-भामि० 2 / 136 3. मूल्यवान्, पकड़ने का कांटा। -गुः बकरा / सम०-पत्रः एक प्रकार की जंगली पलीकम् [वल+कीकन्] छप्पर की छत का किनारा, दाल। ओलती--शि० 3153 / क्रगुकवल्गु+कन्] मनोहर, प्रिय, सुन्दर-कम् 1. चन्दन बलूकः [वल्+ऊकः] एक पक्षाविशेष,-कम् कमल की | 2. मूल्य 3. लकड़ी। जड़, बिस / | वल्गुलः [वल्ग्+उल] गीदड़ / वसूल (वि.) [वल+लच्, अङ] बलवान्, हृष्टपुष्ट, बल्गुलिका [वल्गुल+कन्+टाप्, इत्वम्] 1. तैलचोर शक्तिशाली। 2. पेटी, डब्बा। पल्क् (चुरा० उभ० वल्कयति-ते) बोलना। | वल्भ (भ्वा० आ०) खाना, निगलना। बल्का,-कम् विल+क, कस्य नेत्वम्] 1. वृक्ष की बल्मिक,-बल्मिकि (पुं०, नपुं०) दे० 'वल्मीक। छाल--स वल्कवासांसि तवाधुना हरन करोति मन्यं न वल्मी विल+अच, मुम, नि० कीष] चिऊँटी। सम० कयं धनंजयः-कि० 1135, रघु० 8 / 11, भट्टि -कूटम् बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का 101 2. मछली की खाल की परत या पपड़ी टीला। 3. भाग, खण्ड / सम-तरुः वृक्षवीशेष,--लोध्रः | वल्मीकः,-कम विल+ईक, मट च बामी, दीमकों से लोध्र वृक्ष का एक भेद। बनाया गया मिट्टी का टीला,-धर्म शनैः संचिनुयावल्कला, लम् [वल+कलच्, कस्य नेत्वम्] 1. वृक्ष की द्वल्मीकमिव पुत्तिका:--- सुभा०, मेघ० 15, 20 छाल 2. बक्कल से बनाई गई पोशाक, छाल से बने ७११,-क: 1. शरीर के कुछ भागों का सूज जाना, वस्त्र-इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी श० हाथी पाँव 2. वाल्मीकि कवि। समशीर्ष एक 1 / 20, 19, रघु० 1218, कु० 5 / 8, हेमवल्कलाः प्रकार का सुरमा (जो अंजन की भांति प्रयुक्त किया -6 / 6, 'सुनहरी छालवस्त्र धारी' (तु. चीरपरि-1 जाता है)। ग्रहाः - कु० 6 / 92) / सम० --- संवीत (वि०) वल्यु (ल्यू) ल (चुरा० पर० वल्युलयति) 1. काट छालवस्त्रधारी। डालना 2. निर्मल करना। वल्कवन् (वि०) [वल्क+मतुप्] मछली (जिसके शरीर | वल्ल (म्वा० आ० वल्लसे) 1. ढकना 2. ढका जाना पर पपड़ी हो)। 3. जाना, हिलना-जुलना। वल्किलः [बल्क- इलच काँटा / वल्ल: विल्ल+अच: चादर 2. ती गंजाओं के बराबर बल्कुटम् (नपुं०) छाल, बक्कल / भार (वजन) 3. दूसरा बाट जो डेढ़ या दो गुंजा वल्ग् (म्वा० उभ० वल्गति -ते, वल्पित) हिलना-जुलना, के बराबर होता है (आयु० में) 4. प्रतिषेध / जाना, इधर उधर बुनाना, शि० 12 / 20 2. कूदना, वरलकी [वल्ल-4-वन-डीप] वीणा --अजस्रमास्फालिउछलना, चौकड़ी भरना, छलांग मार कर चलना, तवल्लकीगुणक्षतोज्ज्वलांगुष्ठनखांवभिन्नया-शि० 119, सरपट दौड़ना (आलं० से भी)-पंच० 262, 4 // 57, ऋतु० 118, रघु० 8 / 41, 19 / 13 / 3. नाचना--भत० 3 / 125 शि० 18153 4. प्रसन्न वल्लभ (वि.) [वल्ल+अभच्] 1. प्यारा, अभिलषित, होना-भट्टि० 13128 5. खाना, शि० 14129 प्रिय 2. सर्वोपरि-भः 1. प्रेमी, पति-~मा० 318, 6. अकड़ कर चलना, डौंग मारना-भामि० 1172 / / शि० 1133 2. कृपापात्र, - पंच० 1153 3. अधीबल्गनम् [वल्ग् + ल्युट्] उछलना, कूदना, सरपट दौड़ना। क्षक, अध्यवेक्षक 4. मुख्य गोप 5. उत्तम घोड़ा (शुभ रघु० 9851 / लक्षणों से युक्त)। सम०-आचार्यः वैष्णव संप्रदाय वल्मा वल्ग+अ+टाप लगाम, रास—आलाने गृह्यते के प्रसिद्ध प्रवर्तक का नाम, -- पालः साईस / हस्ती वाजी बल्गास गह्यते ....मच्छ० 1250 / बल्लभायितम् [वल्लभ+क्या+क्त सुरतानन्द का बल्गित (भू. क. कृ०) [बला+क्त] 1. कूदा हुआ, आसन विशेष, रतिबंध, तु. 'पुरुषायित'। छलांग लगाई हुई, उछला हुआ 2. गतिशील किया | वल्लरम् [वल्ल--अरन्] 1. अगर की लकड़ी 2. निकज गया, नचाया गया-काव्या० २।७३,--तम् 1.सरपट | झुरमुट। दौड़, घोड़ की एक प्रकार की दौड़ 2. अकड़ कर बल्लरी,-री (स्त्री०) [वल्ल-1 अरि वा डीप] 1.बेल, चलना, शेखी बघारना, डींग मारना- निमित्ताद- लता-अनपायिनि संश्रयद्रुमे गजभग्ने पतनाय वल्लरीपरादेषोर्षानुष्कस्येव वल्गितम्-शि० 2 / 27 / / कु० 4 / 31, तमोवल्लरी---मा० 5 / 6 2. मंजरी। MAHA For Private and Personal Use Only