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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 650 ) 2 / 166, (यम्) भय, खतरा,--मंडलम् केन्द्रनष्ट | प्रत्येक अवसर पर,—वेशः 1. पड़ोस का घर, आसपास परिवेश, मंदिरम् (अव्य०) प्रत्येक घर में, --मल्ल: 2. पड़ोसी,-वेशित् (अ०) पड़ोसी, वेश्मन् (नपुं०) प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी-२० 1 / 63, पातालप्रतिमल्लगल्ल पड़ौसी का घर,--वेश्यः पड़ोसी,-बैरम वैर प्रतिशोध, आदि-मा० 5 / 22, * मायाः जबाबी जादू, मासम् बदला, प्रतिहिंसा,-शब्दः 1. प्रतिध्वनि, गंज,-वसुधा(अव्य०) प्रतिमास, मासिक, मित्रम् शत्रु, विरोधी, धरकन्दराभिसी प्रतिशब्दोऽपि हरेभिनत्ति नागान् ... ---मुख (वि०) 1. मुंह के सामने खड़ा हुआ, सामने विक्रम० 1216, कु० 6.64, रघु० 2 / 28 2. गरज, स्थित -प्रतिमुखागत - मनु० 8 / 291 2. निकटवर्ती, दहाड़,-शशिन् (पुं०) झूठमूठ का चाँद,-संवत्सरम् उपस्थित (खम्) नाटक की एक घटना या गौणकथा- (अब्य०) प्रतिवर्ष, हर साल,--सम (वि.) तुल्य, वस्तु जो नाटक के महान परिवर्तन या उलट फेर को जोड़ का,--सव्य (वि.) विपर्यस्त क्रम में, सायम् या ता जल्दी लादे या और भी अधिक देर कर दे (अव्य०) प्रतिसंध्या, हर साँझ,--सूर्यः, सूर्यक -दे० सा.द. 334 और 351 -३६४,-मुद्रा 1. झूठमूठ का सूरज 2. छिपकली, गिरगिट-उत्तर० मुकाबले की मोहर,--मुहर्तम् (अव्य०) प्रतिक्षण, | २।१६,-सेना, शत्रु की सेना,-स्थानम् (अव्य०) ----मूर्तिः (स्त्री०) प्रतिमा, समानता, यूथपः हर स्थान में, हर स्थान पर,-स्रोतम् (नपु०) धारा आक्रमणकारी हाथियों के झुंड का अगुआ या नेता, के विपरीत--हस्तः, हस्तकः प्रतिनिधि, अभिकर्ता, --रथः प्रतिपक्षी योद्धा (शा० --युद्ध रथ में बैठ कर स्थानापन्न, प्रतिपुरुष--आश्रितानां भतौ स्वामिसेवायां लड़ने वाला)-दौष्यंतिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य-श. धर्मसेवने, पुत्रस्योत्पादने चैव न संति प्रतिहस्तका, 4 / 19, राजः विरोधी राजा, - रात्रम् (अव्य०) --हि० 2 / 33 / हर रात, -रूप (वि०) 1. तदनुरूप, समान, मुकाबले / प्रतिक (वि.) [कार्षापण-टिठन, कार्षापणस्य प्रत्याका भाग रखने वाला,-चेष्टाप्रतिरूपिका मनोवृत्तिः / देशः ] कार्षापण के मूल्य का या कार्षापण से खरीदा .-श०१ 2. उपयुक्त, समुचित (पम्) चित्र, प्रतिमा, हआ। समानता, रूपकम् चित्र, प्रतिमा, - लक्षणम् निशान, प्रतिकरः [ प्रति+कृ+अप् ] प्रतिशोध, क्षतिपूर्ति / चिह्न, प्रतीक, --लिपिः (स्त्री०) लेख की नकल, | प्रतिकत (वि०) (स्त्री०-/) [प्रति+कृ+तृच् ] लिखी हुई प्रति, --लोम (वि.) 1. नैसगिक क्रम के प्रतिशोध लेने वाला, क्षतिपूर्ति करने वाला-(पुं०) बिरुद्ध, व्यत्क्रान्त, उलटा 2. जाति विरुद्ध (अपने पति | विरोधी, विपक्षी। से उच्च वर्ण की स्त्री की सन्तान) 3. विरोधी प्रतिकर्मन (नपं०) [ प्रति+ +मनिन् ] 1. प्रतिशोध, 4. नीच, दुष्ट, अधम 5. वाम (अव्य. मम्) प्रतिहिंसा 2. हर्जाना, उपचार, प्रतिकार 3. शारीरिक श्रृंगार, रूपसज्जा, प्रसाधन, शरीर-सज्जा (अबला:) रूप से, ज (वि.) जाति के विपरीत क्रम में प्रतिकर्म कर्तमपचक्रमिरे समये हि सर्वमपकारि कृतम् उत्पन्न अर्थात् अपने पति से उच्चवर्ण की स्त्री की -शि० 9:43, 5 / 27, कु०७३. विरोध, शत्रुता। सन्तान,--लोमकम् उलटा क्रम, विपरीत क्रम,-वत्स- प्रतिकर्षः [ प्रति कृष्---घा ] 1. एकत्रीकरण, संयोजन रम् (अव्य०) प्रतिवर्ष, हर साल,--बनम् हर जंगल 2. (किसी आगे आने वाले शब्द का) पूर्व विचार / में,-वर्षम् (अव्य०) हरसाल,-वस्तु (नपुं०) प्रतिकषः [ प्रति+क+अच ] 1. नेता 2. सहायक 1. समान, प्रतिमूर्ति, प्रतिरूप 2. प्रतिदान 3. समानता, संदेशटा / तुल्यता उपमा एक अलंकार जिसकी परिभाषा मम्मट प्रति (तो) कारः[ प्रति-कृ--घञ, पक्षे उपसर्गस्य ने यह दी है-प्रतिवस्तूपमा तु सा, सामान्यस्य द्विरे- दीर्घः ] 1. प्रतिशोध, पुरस्कार, प्रतिदान 2. बदला, कस्य यत्र वाक्यद्वये स्थितिः --काव्य. 10, उदा० प्रतिहिंसा, प्रतिफल 3. प्रतिविधान, निवारण, रोकतापेन भ्राजते सूर्यः शूरश्चापेन राजते-चन्द्रा० 5 / थाम, उपचार, इलाज या चिकित्सा-विकारं खल ४८,-वातः उलटी हवा (अब्य०-तम्) हवा के परमार्थतोऽजात्वाऽनारंभः प्रतीकारस्य श० 3, प्रतीविरुद्ध चीनांशकमिव केतोः प्रतिवातं नीयमानस्य कारो व्याधेः सूखमिति विपर्यस्यति जनः-भर्त० 3 / -श० १२३४,-वासरम् (अव्य०) प्रतिदिन 92 4. विरोध / सम-कर्मन् (नपुं०) जीणोद्धार .-विपटम् (अव्य०) 1. प्रत्येक शाखा पर 2. एक करना, सुधार करना,--विधानम् इलाज करना, एक शाखा पर, वेदम् (अव्य०) प्रत्येक वेद में या चिकित्सा करना---प्रतिकारविधानमायपः सति शेष हरेक वेद के लिए,-विषम् विपप्रतीकारक औषधि, हि फलाय कल्पते रघु० 8 / 4 / / -विष्णुक: मुचकुन्द वृक्ष,--वीरः विपक्षी, शत्रु,-वृषः प्रति (ती) काशः [ प्रति--कश् + घन, पक्षे उपसर्गस्य आक्रमणकारी बैल, वेलम् (अव्य०) हर समय, दीर्घः ] 1. परछाईं 2. दृष्टि, दर्शन, सादृश्य-(प्राय: For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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