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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 649 ) 12 / 9 (प्रत्येक सज्जन पुरुष के मन में प्रवेश किया)। 12 / 3, 7 / 34, कु० 2 / 31, -- कंचुक: शत्रु,-कंठम् (अव्य०) 1. अलग अलग, एक एक करके 2. गले के निकट,---,कश: (वि०) उदंड, जो हण्टर से भी वश में न आवे,- काय: 1. पुतला, प्रतिमा, चित्र, समानता 2. शत्र-की० 13128 3. लक्ष्य, चाँदमारी, निशान, ---कितव: जुए में प्रतिद्वन्द्वी,-कुंजरः प्रतिरोधी हाथी, ..-कूप: परिबार, खाई,---कल (वि०) अननुकूल विरोधी, प्रतिपक्षी, विरुद्ध प्रतिकूलतामुपगते हि विधी विफलत्वमेति बहसाधनता-शि० 916, कु० 3 / 24 2. कठोर, बेमेल, अप्रिय, अरुचिकर-अप्यन्नपुष्टा प्रतिकूलशब्दा-कु. 1145 3. अशुभ 4. विरोधी 5. उलटा, व्युत्क्रान्त 6. विपरीत, आड़ा, कर्कश, कठोर, °आचरितम् कुत्सित या आक्रमणात्मक कार्य अथवा आचरण --रघु०८1८१, °उक्तम्, क्तिः (स्त्री०) विरोध, कारिन् (वि.)विरोध करने वाला, वर्शन (वि.) अशुभ अथवा अभद्र दर्शनों वाला, प्रवतिन् -वतिन् (अव्य०) विपरीत कार्य करने वाला, उलटा मार्ग ग्रहण करने वाला, भाषित (वि.) विरोध करने वाला, असंगत बोलने वाला, 'वचनम् अरुचिकर या अप्रिय भाषण,--- कलम् (अव्य०) 1. विरोधी ढंग से, विपरीतता के साथ 2. उलटी तरह से, विपर्यस्त क्रम से, ...-क्षणम् (अव्य०) प्रत्येक क्षण, हर समय,-कु० 3156, - गजः आक्रमणकारी हाथी, -गात्रम् (अव्य०) प्रत्येक अंग में,---गिरिः 1. सामने | का पहाड़ 2. छोटा पहाड़,—ग्रहम्, ---गेहम् (अव्य०) / हर घर में, - ग्रामम् (अव्य०) हर गांव में,-चंद्र: झूठमूठ का चाँद, चरणम् (अव्य०) 1. प्रत्येक (वैदिक) सिद्धान्त या शाखा में 2. हर पग पर, —छाया 1, प्रतिबिम्ब, परछाईं, खाया 2. प्रतिमा, चित्र,-जंघा टाँग का अगला भाग -जिह्वा,—जिहिका गले की भीतर की घंटी, मांसतालु, कोमल तालु, तंत्रम् (अध०) प्रत्येक तंत्र या सम्मति के अनुसार, तंत्रसिद्धान्तः एक ऐसा सिद्धांत जिसको एक ही पक्ष ने माना हो (वादिप्रतिवाद्येकतरमात्राभ्युपगतः), व्यहम् (अव्य०) लगातार तीन दिन तक, दिनम् (अव्य०) हर रोज़, दिशम् (अव्य०) हर दिशा में, चारों ओर, सर्वत्र मेघ० 58, -देशम् (अव्य०) प्रत्येक देश में, देहम् (अव्य०) हरेक शरीर में,-दैवतम् (अव्य०) प्रत्येक देवता के निमित्त, द्वन्द्वः 1. प्रतिस्पर्धी, विरोधी, शत्रु, प्रतिद्वंद्वी 2. शत्रु० (--द्वम्) विरोध, शत्रुता,-वंद्विन् / (वि०) / विरोधी, शत्रुतापूर्ण 2. प्रतिकूल-कि० 16 / 29 3. लागडांट रखने वाला, प्रतिस्पर्धाशील | -श० 4 / 4, (-पुं०) विरोधी, प्रतिपक्षी, प्रतिस्पर्धी / -रघु०७१३७, १५।२५,-द्वारम् (अव्य०) प्रत्येक दरवाजे पर,–धुरः दूसरे घोड़े के साथ जुड़ा हुआ घोड़ा,--नप्त (पुं०) प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र,-नव (वि०) 1. नूतन, युवा, ताजा 2. हाल का खिला हुआ, या जिसमें अभी कलियाँ आई हों- मेघ० 36, --नाडी प्रशिरा, उपनाडी,-नायकः किसी काव्य का खलनायक जैसे रामायण में रावण, तथा माघकाव्य में शिशुपाल,--पक्षः 1. विरोधी पक्ष, दल या गुटबन्दी, शत्रुता 22. प्रतिकूल, शत्रु, दुश्मन, प्रतिद्वंद्वी, प्रतिपक्षकामिनी प्रतिद्वंद्वी पत्नी भामि० 064, विक्रमांक० 170, 73, प्रतिपक्षमशक्तेन प्रतिकर्तुम् - काव्य०१०, समास में प्रायः 'सम' या 'समान' अर्थ में प्रयुक्त 3. प्रतिवादी, महआल, पक्षित (वि.) 1. विरोध से युक्त, 2. विरोधात्मक प्रतिज्ञा से विफल किया हुआ, (जैसे न्याय में हेतु) (वह हेत) जो सत्प्रतिपक्ष नामक दोष से युक्त हो),--पक्षिन् (वि०) विरोधी, शत्रु, पथम् (अव्य०) मार्ग के साथ२, रास्ते की रास्ते की ओर,-प्रतिपथगतिरासीद्वेगदी/कृतांग:-कु० 3176, पदम् (अव्य०) 1. प्रत्येक पग पर 2. प्रत्येक स्थान पर, सर्वत्र 3. प्रत्येक शब्द में,- पावम् (अव्य०) प्रत्येक चरण में,- पात्रम् (अव्य०) प्रत्येक भाग के विषय में, प्रत्येक पात्र के विषय में प्रतिपात्रमाधीयतां यत्नः - श०१ (प्रत्येक पात्र की देख रेख की जानी चाहिए,-पादपम् (अव्य०) प्रत्येक वृक्ष में,-पाप (वि०) पाप के बदले पाप करने वाला, बुराई के बदले बुराई करने वाला, --पु (पू) रुषः 1. समान या सदश पुरुष 2. स्थानापन्न, प्रतिनिधि 3. साथी 4. पुतला ....आदमी का पुतला जिसे चोर किसी घर में स्वयं घसने से पहले यह जानने के लिए फेंका करते थे कि कोई जाग तो नहीं रहा है 5. पुतला, पूर्वालम् (अव्य०) प्रत्येक मध्याह्नपूर्व, हर दोपहर से पहले, प्रभातम् (अव्य०) प्रत्येक सुबह, -प्राकारः बाहरी परकोटा या फसील,-प्रियम् बदले में की गई कृपा या सेवा रघु० 5 / 56,- बंधुः जो पद व स्थिति में समान हो, -बल (वि०) बल में समान, अपने जोड़े का, समान शक्तिशाली ( लम्) शत्रु की सेना -अस्त्रज्वालावलीढप्रतिबलजलघेरंतरोर्वायमाणे-वेणी० 315, बाहुः भुजा को अगला भाग, कोहनी से नीचे का भाग बि (वि) बः, बम् 1. परछाईं, प्रतिमूर्ति कु० 6 / 42, शि० 9118 2. प्रतिमा, चित्र, भट (वि०) प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी-घटप्रतिभटस्तनि ने० 13.5, (टः) 1. प्रतिद्वंद्वी, प्रतिपक्षी 2. शत्रुपक्ष का योद्धा समालोक्याजौ त्वां विद्गवति विकल्पान् प्रतिभटाः काव्य० 10, भय (वि.) 1. भयावह भीषण, भयंकर, भयानक 2. खतरनाक ..-पंच० 82 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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