________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाद
अभिव्यक्तिः (स्त्री०)[अभि+वि+अंज+क्तिन्] (कारण | अभिशोधनम् [अभि+शुच् + ल्युट्] अत्यंत शोक या
का कार्य रूप में) प्रकट होना, वैशिष्ट्य, दिखावा, पीडा, कष्ट । प्रदर्शन, सर्वांगसौष्ठवाभिव्यक्तये--मालवि. १, अभिश्रवणम् अभि+श्रु+ ल्युट श्राद्धके अवसर पर बैठे हुए
तीसंप्रेषणार्या भावाभिव्यक्तिरिष्यते--सा.द.६। ब्राह्मणों द्वारा वेदमंत्रों का पाठ । अभिव्यञ्जनम् [अभि+वि+अज-+ ल्युट] प्रकट करना, | अभिषङ्गः-सङ्गः [अभि+पंज्+घञ्] 1. पूरा संपर्क या प्रकाशन करना।
मेल, आसक्ति, संयोग 2. हार, वैराग्य, पराजय,-- अभिव्यापक, व्यापिन (वि.) [अभि+वि.+आप+
जाताभिषङ्गो नपति:-रघु० २।३०, 3. अचानक आया ण्वुल, णिनि वा] सम्मिलित करने वाला, समझने
हुआ आघात, शोक, दुःख, संकट या दुर्भाग्य-ततोऽ वाला, प्रसार करने वाला।
भिषङ्गानिलविप्रविद्धा-रघु० १४१५४, ७७, जडं अभिव्याप्तिः (स्त्री०)अभि+वि+आप+क्तिन् सम्मि
विजज्ञिवान् – रघु० ८१७५, 4. भूत प्रेतादिक से लित करना, संबोध, सर्वत्र फैलाव ।
आविष्ट होना,-अभिधाताभिषनाभ्यामभिचाराभिशाअभिव्याहरणम्,-व्याहारः [अभि+वि+आ+-+ पतः- माघ 5. शपथ 6. आलिंगन, संभोग 7. अभिल्युट्, घञ् वा] 1. बोलना, उच्चारण करना, कसना
शाफ, कोसना, दुर्वचन कहना 8. मिथ्या दोषारोपण, 2. प्रांजल तथा सार्थक शब्द, संज्ञा, नाम ।
बदनामी या लांछन 9. घृणा, अनादर । अभिशंसक, शंसिन (वि०)[अभि+शंस-+ण्वुल, णिनि वा] |
अभिषजनम -तु० अभिषंगः । दोषारोपक, कलंक लगाने वाला, अपमान करने वाला।
अभिषवः अभि++अप] 1. सोमरस निचोड़ना, 2. अभिशंसनम् [अभि-+शंस् + ल्युट] दोषारोपण, दोष लगाना
शराब खींचना 3. धार्मिक कृत्यों या संस्कारों से पूर्व
किया जाने वाला स्नान या, आचमन 4. स्नान या (चाहे सत्य हो या मिथ्या) मिथ्या--याज्ञ० २८९,
आचमन 5. यश,-वम् कांजी। गाली, अपमान, निरादर,-पंचाशद् ब्राह्मणो दण्ड्य: क्षत्रियस्याभिशंसने-मनु०८।२६८।
अभिषवणम् अभि++ ल्युट स्नान । अभिशङ्का [अभि-+-शक्+अ+टाप्] संदेह, आशंका,
अभिषिक्त (भू०००) [अभि-+-सिच् + क्त] 1. छिड़का भय, चिन्ता।
हुआ, आर्द्र किया हुआ, सङ्गे पुनर्वहुतराममृताभिषिअभिशपनम,---शापः [अभि+शप+ल्युट, घा वा] 1.
क्ताम् --चौर० २९, 2. जिसका अभिषेक हो चुका
हो, प्रतिष्ठापित, पदारूढ़। शाप, किसी का बुरा मनाना 2. गंभीर आरोप, दोषा
अभिषेकः [अभि-सिच- घन] 1. छिड़कना, पानी के रोपण-याज्ञ० २।९९, अभिशापः पातकाभियोग:-मि०
छींटे देना 2. राज्यतिलक करना, राजा या मूति 3. लांछन, मिथ्या आरोप। सम.---ज्वरः शाप के
आदि का जलसिंचन द्वारा प्रतिष्ठापन, 3. (विशेषतः) उच्चारण से उत्पन्न होने वाला बुखार ।
राजाओं का सिंहासनारोहण, प्रतिष्ठापन, पदारोहण, अभिशम्बित (वि.) [ अभि+शब्द+क्त ] उद्घोषित,
राज्यतिलक संस्कार, अथाभिषेक रघुवंशकेतोःप्रकाशित, कथित, नाम लिया हुआ ।
रघु० १४१७, 4. प्रतिष्ठापन के अवसर पर काम अभिशस्त (भू० क० कृ०)अभि-+शंस+क्त]1. कलंकित, आने वाला पवित्र जल,-- रघु० १७.१४, 5. स्नान,
अभिशप्त, अपमानित-मनु०८।११६, ३७३, याज्ञः आचमन, पवित्र या धर्मस्नान,-अभिषेकोत्तीर्णाय १११६१, 2. चोट पहुंचाया हुआ, क्षतिग्रस्त, आक्रान्त
काश्यपाय-श०४, अत्राभिषेकाय तपोधनानाम् - ('अभिशस्' से बना समझा गया), देवि ! केनाभिश
रघु०१३।५१ 6. उस देवता पर जल छिड़कना जिसकी स्तासि केन बासि विमानिता--रामा० 3. अभिशप्त
पूजा की जा रही है। सम० -- अहः राजतिलक का 4. दुष्ट, पापी।
दिवस, --- शाला राज्याभिषेक का मंडप । अभिशस्तक (वि०)[अभिशस्त+कन्] मिथ्या दोषारोपित,
अभिषेचनम् [अभि+सिच् + ल्युट 1. जल छिड़कना 2. बदनाम।
राजतिलक, राज्यप्रतिष्ठापन ।। अभिशस्तिः (स्त्री०) [अभि+शंस+क्तिन्] 1. अभि
अभिषेणनम् [सेनया सह शत्रोः अभिमुखं यानम्-इतिशाप, 2. दुर्भाग्य, अनिष्ट, संकट 3. निदा, लांछन,
अभि+सेना+णिच्+ल्युट्] शत्रु पर चढ़ाई करने बदनामी, अपमान 4. पूछना, मांगना ।
के लिए कूच करना, शत्रु का मुकाबला करना । अभिशापनम् [अभिशप+णि+ल्यूट] शाप देना, अभिषेणयति (ना० घा०) (सेना के साथ) कूच करना, कोसना।
आक्रमण करना, सेना द्वारा शत्रु का मुकाबला अभिशीत (वि.) [अभि+श्य+क्त शीतल, ठंडा जैसा करना,---क: सिंधुराजमभिषेणयितुं समर्थः---वेणी० कि वायु ।
२।२५, शि० ६.६४ ।
For Private and Personal Use Only