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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि ( 1218 ) अर्जुनबदरः अर्जुन नामक पौधे का रेशा, तन्तु। निर्धारित हो (विप० शब्दलक्षण), विद्या सांसारिक अर्जुनसखिः [ब० स०] कृष्ण। पदार्थों का ज्ञान,---विपत्तिः उद्देश्य की विफलता अर्णम् (नपुं०) [ऋ+असुन्, नुट] 1. पानी, जल 2. रंग ...- समीक्ष्यतामर्थविपत्तिमार्गताम- रा० 2 / 19 / 40, -श्रीलीविभूत्यात्मवदद्भुतार्णस्-भाग० 2 / 6 / 44 / --विप्रकर्षः अभिप्रेत अर्थ को समझने में कठिनाई, समजः (अर्णोजः) कमल-न्यर्णोदोजनाभः, -विभावक (बि०) धन का देने वाला--विप्रेभ्योऽर्थ-हम् कमल, पावरगिरमुपकायमोरहाक्षी विभावक:-महा० ३१३३१८४,-शालिन् (वि.) -उत्त० 7 / 92 / धनी पुरुष, धनवान्,- संग्रहः लौगाक्षिभास्कर कृत अर्थः [ऋ+थन] विषय, पदार्थ, उद्देश्य, इच्छा, अभिप्राय / मीमांसा के एक प्रकरण का नाम,-सतत्त्वम् सचाई, सम-अतिदेशः (शब्दों के मुकाबले में) पदार्थों के ---कि पुनरत्रार्थसतत्त्वम्-पा० 7 / 3 / 72 पर म० भा०, विषय में लिङ्ग, वचन आदि का विस्तार अर्थात् एक धन का उपार्जन करना 2. उद्देश्य में सफलता, हानि: विषय को ऐसा समझना मानों वे संख्या में बहत हों, (स्त्री०) धन का नाश,- हारिन् (वि०) धन के स्त्री को ऐसा समझना मानों वह पुरुष हो-त० वा०, चुराने वाला, जो धन चुराता है। ---अनुपपत्तिः (स्त्री०) किसी विशेष अर्थ को निका- अर्थात् (अ०) [अर्थ का अपादान में ए० व० सच तो यह लने यो समझाने में कठिनाई,-अनुबन्धि भौतिक है कि, तथ्यतः / सम-अधिगतम् (अर्थादधिगतम्) कुशलक्षेम से युक्त --तत्रिकालहितवाक्यं धर्म्यमर्था- संकेत द्वारा समझा हुआ,- कृतम् सचमुच किया हुआ नुबन्धि च-रा० ५।५११२१,-अभिधानम् अभीष्ट -न चार्थात्कृतं चोदकः प्रापयति मी० सू० 5 / 2 / 8 अर्थ का प्रकट करना -- त० वा० ३।१२।५,-अभि पर शा० भा०। धानम् (वि०) जिसका नाम प्रयुक्त अर्थ से संबद्ध हो अर्थ्य (वि.) [अर्थ+ण्यत्] 1. सच्चा, वास्तविक- अर्थ्य -अर्थाभिधानं प्रयोजनसम्बद्धमभिधानं यस्य, यथा / विज्ञापयत्नेव रा० 6 / 127 / 25 2. धन प्राप्त करने पुरोडाशकपालमिति-मै० सं० 4 / 1 / 26 पर शा० में चतुर-तमर्थमर्थशास्त्रज्ञाः प्राहुराः सुलक्ष्मण भा०,---आतुरः जो लोभी होने के कारण सदैव -रा०३।४३३३३ / धन एकत्र करने के लिए दुःखी रहता हो—अर्थातु- | अर्ध (वि०) [ऋध् +णि+अच् आधा / राणां न गुरुर्न बन्धुः, काशिन् (वि.) जो उपादेय | अर्धः [ऋध्+घञ] 1. वृद्धि 2. भाग, अंश, पक्ष / सम. दिखाई दे (परन्तु वस्तुतः वैसा न हो),-काश्यम् --असिः एक धार की तलवार, छोटी तलवार धनसंबंधी कठिनाई -- निर्बन्धसंजातरुषार्थकार्यमचिन्त- - अर्घासिभिस्तथा खङ्गः-महा०७।१३७।१५, - कर्णः यित्वा-रघु० ५।२१,-किल्बिषिन् (वि.) रुपये अर्धव्यास, आधी चौड़ाई, चित्र (वि०) अर्धपारदर्शी, पैसे के विषय में बेईमान व्यक्ति,-कोविद (वि०) एक प्रकार का अंशतः पारदर्शी पत्थर, जीविका, जो राजनीति के विषय में विशेषज्ञ हो, अनुभवी ---ज्या, चाप को एक सिरे से दूसरे सिरे तक मिलाने -उवाच रामो धर्मात्मा पुनरप्यर्थकोविदः-रा०६:४१८, वाली लम्बरेखा,-पञ्चा (वि०) साढ़े चार, -क्रिया 1. सार्थक कार्य, अर्थात् जो कार्य सचमुच -प्राणम् दो भागों का ऐसा संधान करना जैसा कि हृदय किया ही जाना है (विप० शब्दोक्त क्रिया)- असति के दो टुकड़ों का-मूलाग्रे कीलकं यक्तगर्धप्राणमिति शब्दोक्ते अर्थक्रिया भवति-मै० सं० 1112 पर स्मतम् ----मान०१७।९९, मागधी प्राचीन जैन ग्रन्थों शा० भा० 2. साभिप्राय क्रिया अर्थात् मुख्य कार्य, में प्रयुक्त प्राकृत बोली,---बायुः आंशिक पक्षाघात, --गतिः अर्थ या प्रयोजन को समझ लेना, अर्थावगम, एकांगी लकवा,-वृद्धिः किसी राशि पर देय ब्याज -गुणाः किसी उक्ति के अभिप्राय की खुदियाँ, का आधा भाग, शतम् 1. पचास 2. डेढ़ सौ मै० --गहम् कोश, खजाना-हरि०, चित्रम अर्थों पर सं० 8 / 267, समस्या इलोक जिसका पूर्वार्ध एक आधारित एक अर्थालंकार,-दर्शकः अधिनिर्णायक, व्यक्ति बोले, तथा उत्तरार्थ दूसरे व्यक्ति द्वारा पूरा --- दश (स्त्री०) सत्यता तथा तथ्यों का ध्यान रखना किया जाय-- नै०४।१०१, सहः उल्ल / --क्षेमं त्रिलोकगरुरर्थदशं च यच्छन् --भाग० 10 // 86 // अर्घ (वि०) [अर्ध-य] अबुरा, जो अभी पूरा किया २१,-द्वयविधानम, ऐसी विधि जिसके दो अर्थ निक- जाना है-अधा ते विष्णो विदुपा चिदऱ्या:--ऋ० लते हों ...विधाने चार्थद्वय विधानं दोषः–मै० सं० 2156 / 1 / 10870 पर शा० भा०,--पदम् पाणिनि पर एक अपित (वि.) [E+णिच् | क्त] 1. लगाया गया, जड़ा वार्तिक ससूत्रवृत्यर्थपदं महार्थम-रा० 7 / 36 / 45, गया -द्रमाणां विविधः पुष्पैः परिस्तोममिवार्पितम -भावनम् किसी विषय पर विचारविमर्श, - लक्षण -रा०४।२८, रघु० 8188 2. उंडेली गई हस्ता(वि.) जैसा कि आवश्यकता या प्रयोजन के अनुसार / पितैनवनवारिभिरेव (शशाप)-रघु० 9 / 78 3. परि नएकत्र कलबन्धु, कालिसा न हो) मचिन्त For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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