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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1219 ) अहं पणम् भागपुरुषयोक्ति वर्तित, सौंपा गया-चित्रापितारम्भ इवावतस्थे-कु० / अलोमक, अलोमिक (वि.)/न. ब01 जिसके बाल न 3 / 42 4. प्रति पूर्वक वापिस सौंपा गया प्रत्यर्पित- | | उगते हों, बिना बालों का। त्यास इव ..श०। अलोलः (पु) चौदह मात्राओं का एक छन्द / / अर्भः,-ममक+मन]1. आँख का एक रोग 2. क़ब्रिस्तान / अल्प (वि.) [अल-4] थोड़ा, मामूली, नगण्य (विप० अर्भाः (व० व०) खंडहर, कड़ाकर्कट / महत्, गुरु)। सम०-अचतरम् वह शब्द जिसमें अर्ववाहः (पु.) [ऋ+वनिप् --अर्वन् / वह+घा, अपेक्षाकृत दूसरे शब्द से कम वर्ण या मात्राएँ हों.-.पा. न० ब०] घुड़सवार आगच्छन् गुरुतरगर्वमर्ववाह २।।३४,---गोधूमः एक प्रकार का गेहूँ जो जरा --शिव० 24164 / छोटा होता है,-नासिक: एक छोटी दहलीज़ या अक्तिन (वि.) (अर्वाच्+तन) न पहुंचने वाला, पश्च- दालान, मान० 34 / 106,- पुण्य (वि.) जिसमें वर्ती, प्रकृतिपुरुपयोरक्तिनाभिर्नामरूपाभी रूप -- धार्मिक मल्य नगण्य हो,-सत्त्व ( वि०) दुर्बल, निरूपणम्-भाग० 5 / 3 / 4 / बलहीन, सार ( वि० ) जिसका फल नहीं के अहं (वि.) [अहं +अच्] योग्य समर्थ न खां कुर्मि बरावर हो। दशग्रीव भस्म भस्माईतेजसा-रा० 5 / 22 / 20 / / अल्लकम् (नपुं०) धनिये का बीज / अर्हा [अर्ह,+घञ --टाप्] सोना निधः / अल्लका (स्त्री०) धनिये का पौधा / अलक्तकाङ्क (वि.) [अलक्त+अङ्क] अलक्ता से चिह्नित / अवतरम् (अ.) और आगे, आगे दूर -- ऋ० 1112916 / है अङ्ग जिसके-- अलक्तकाद्वानि पदानि पादयोः / अवकोलकः [अव+कील-कन्] अच्चर, खूटी जो अन्दर ----कु०५। ठोकी गई है-क्षुत्पिपासावकीलकम्-महा० 14045 / 3 / अलक्षण (वि०) न० व.] जो समझ में न आवे---सेयं अवकृत (वि.) [अब+-+क्त नीचे की ओर बढ़ा हुआ, विष्णोर्महामायाऽवाधयाऽलक्षणा यया भाग० 12 // 6 // नीचे की ओर झुका हुआ। अवकीर्ण (वि०) [अवकृत] अव्यवस्थित, व्यवस्थासापेक्ष अलक्ष्मन् (वि.) अशुभ लक्षणों से युक्त-अपसव्यं ग्रहाश्च- -दृष्ट्वा तथावकीणं तु राष्ट्रम् महा० 9 / 41 / 16 / कुरलक्ष्माणं दिवाकरम्---महा०६।१०२२१। अवगल (भ्वा० पर०) नीचे गिर जाना, फिसल जाना अलङ्कारमण्डपः [त० स०] शृंगार कक्ष, वह स्थान जहाँ सौवर्णवलयमवागलत्करामात् -शि० 8 / 34 / / मन्दिर की मूर्तियों का शृंगार किया जाता है। अवप्रहधी (पुं०) [न० ब०] दुराग्रही, हठी---कर्मण्यवाधियो अलमकः (पुं०) मेंढक, दे० 'अनिमक'। भगवन्विदामः----भाग० 4 / 7 / 27 / अलवण (वि०) [न० ब०] लवणरहित, बिना नमक की- | अवघाटकम् (नपुं०) एक प्रकार की माला जो आकार में महा० 13 / 114 / 14 / छोटी होती चली जाय-कौ०, अ० 2 / 11 / अलसगामिनी (स्त्री०) मनोज्ञ गति से चलने वाली अवघात (वि.) दे० 'अवहन' के नीचे। महिला। अवघुष्ट (वि.) [अत्र+घुप्+क्त] घोपणा किया गया, अलसिका (स्त्री०) अधिक बार मल त्यागने के कारण अवमानना पूर्वक मुनादी की गई। उत्पन्न आलस्य या थकान / अवघ्रात (वि.) [अवघ्राक्तसंघा हुआ, चूमा गया अलाञ्छन (a) [न० व०] निष्कलंक / -अवघातश्च मूर्धनि-- रा० 2 / 20 / 1 / अलातशान्तिः (स्त्री०) माण्डूक्योपरि पद पर गौडपाद की | अवघ्रापणम् [अव+ना+णि+ ल्युट ] मुंघवाना / टीका का चतुर्थ पाद / अवचरः [अव+चर+अच्] साईश--तुरगावचरं स बोधअलाबुवीणा (स्त्री०) तुम्बी के आकार की बनी वीणा। यित्वा--बु० च० 5 / 68 / / अलीकम् [अल + बीकन्] चिन्ता, शोक-~-अलीक मानसं अवचि (स्वा० पर०) परम्बना, चुनना, छाँटना / त्वेक रा०२।१९।६।। अवचिचीषा [अब-चि+सन्-+टाप्] संग्रह करने की अलुप्तमहिमन् (वि०) [न० ब०] जिसकी अक्षुण्ण कीर्ति इच्छा प्रमदया कुगमावचिचीपया- शि० 610 / बनी हुई है। अवचरिः, अवचूरिका वृत्ति, टीका, भाप्य, टिप्पणी। अलुप्तयशस् (वि०) [न० ब०] जिसकी ख्याति लुप्त नहीं अवच्छटा विनोदपरक चाल, लीलायुक्त गति-अवच्छटा हुई है, यशस्वी। कापि कटाक्षस्य नै० 16164 / अलोकवतम् न० त०] आध्यात्मिक मुक्ति के लिए अभि- अवच्छेद्य (वि.) [अव+छिद्-+-णिन् / ण्यत्] अलग प्रेत व्रत जैसे ब्रह्मचर्य पालन, (इस बात की भावना | किये जाने के योग्य, पृथक किये जाने के लायक / भौतिक सुखों के विरुद्ध है) चरन्त्यलोकवतमवणं वने | अवतानः [अव / तनु+घञ ] तन्तु, मूत-लतावतानतः भाग०८।३।७। महा० 2 / 24 / 26 / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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