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अर्थात् यज्ञ करना, वेद का अध्ययन करना, तथा दान । देना (-पुं०) जो इन तीन कर्मों को सम्पन्न करने । में व्यस्त हो, ब्राह्मण,-कायः बुद्ध का नाम,-कालम् तीन काल अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्यत् या तीन समय - प्रातः, मध्याह्न तथा सायम् 2. क्रिया के तीन काल (भूत, वर्तमान और भविष्यत्) झ, दशिन (वि०) सर्वज्ञ,-कटः सीलोन का एक पहाड़ जिस पर रावण की राजधानी लंका स्थित थी-शि० २१५, --कर्चकम् तीन फलों का चाकू,-कोण (वि.) त्रिभुजाकार, त्रिकोण बनाने वाला (–णः) 1. तीन कोन वाली आकृति 2. योनि,-खट्वम्,-खट्वी तीन खाटों का समूह, -गणः सांसारिक जीवन के तीन पदार्थों की समष्टि अर्थात् धर्म, अर्थ और काम,-न बाघतेऽस्य त्रिगणः परस्परम-कि० ११११, दे० नी. 'त्रिवर्ग',-गत (वि.) 1. तिगना 2. तीन दिन में सम्पन्न,-गर्ताः (ब०व०) 1. भारत के उत्तरपश्चिम में एक देश, इसका नाम 'जलंधर' भी है 2. इस देश के निवासी या शासक, गर्ता कामासक्त स्त्री, स्वैरिणी, --गुण (वि.) 1. तीन डोरों से युक्त तगड़ी-व्रताय मौंजी त्रिगुणां बभार यां-कु० ५।१० 2. तीन बार आवृत्ति किया हुआ, तीन बार विविध, तेहरा, तिगुना ----सप्त व्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य (दिनानि)-रघु० २।२५ 3. सत्त्व, रजस् तथा तमस् नाम के तीन गुणों से युक्त, (- णम्) (सां० द० में) प्रधान (णा) (वेदा० द०1 में) 1. माया 2. दुर्गा का विशेषण ----चक्षुस् (०) शिव का एक विशेषण,-चतुर (वि.) (ब०व०) तीन या चार गत्वा जवात् विचतुराणि पदानि सीता - बालरा० ६३४,-चत्वारिंश (वि०) तेतालीसवाँ,-चत्वारिंशत् (स्त्री०) तेतालीस,--जगत् (नपुं०) ---जगती तीन लोक 1. स्वर्गलोक, अन्तरिक्षलोक तथा भूलोक या (२) स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक, जटः शिव का एक विशेषण,
-जटा एक राक्षसी, जिसको रावण ने अशोकवाटिका में सीता की देखरेख के लिए नियत किया था, जब सीता वहाँ बन्दी के रूप में रक्खी गई। उस समय त्रिजटा ने स्वयं सीता के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया, तथा अपनी दूसरी सहचरियों को भी प्रेरित किया कि वह भी ऐसा ही करें,--जीवा,-ज्या तीन चिह्नों की त्रिज्या, या ९० कोटि, अर्धव्यास,--णता, धनुष,णव,--णवन् (वि० ब० व०)३४९, नौ का तिगुना अर्थात सत्ताइस, तक्षम,-तक्षी तीन बढ़इयों का समूह,-दण्डम् 1. (संसार से विरक्त) सन्यासी के तीन डंडों को बांधकर एक किया हुआ 2. तिगुना संयम -~~-अर्थात मन, पाणी और कर्म का, (...डः) एक धर्मनिष्ठ संन्यासी की अवस्था-दण्डिन् (पुं०) धर्म
निष्ठ साधु या संन्यासी जिसने सांसारिक विषय वासनाओं का त्याग कर दिया है, और जो अपने दहिने हाथ में तीन-दंड (एक जगह मिला कर बंधे हुए) रखता है 2 जिसने अपने मन, वाणी और शरीर को वश में कर लिया है-तु० वाग्दण्डोऽथ मनोदण्ड: कायदण्डस्तथैव च,यस्यैते निहिता बद्धौ त्रिदण्डीति स उच्यतेमनु० १२११०,दशाः (ब०व०) 1. तीस 2. तेंतीस देवता, (---शः) देवता, अमर-कु० ३३१, अंकुशः
आयुधम् इन्द्र का बज -रषु० ९:५४, °अधिपः, °ईश्वरः पतिः इन्द्र के विशेषण, °अध्यक्षः विष्णु का एक विशेषण, अरिः राक्षस, °आचार्यः बृहस्पति का विशेषण, आलयः, आवासः 1. स्वर्ग 2. मेरु पर्वत, °आहारः देवताओं का भोजन, गुरुः बृहस्पति का विशेषण, गोपः एक प्रकार का कीड़ा, वीरबहटी (इन्द्रगोप)--श्रद्दधे त्रिदशगोपमात्रके दाहशक्तिमिव कृष्णमनि -- रघु० १११४२, मंजरी तुलसी का पौधा, °वध, वनिता अप्सरा या स्वर्ग की देवी--कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथिः स्याः --मेघ० ५८, वर्मन् आकाश, --दिनम तीन दिनों की समष्टि,-दिवम् 1. स्वर्ग, त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः- कु०१।२८, श०७३ 2. आकाश, पर्यावरण 3. प्रसन्नता, अधीशः
ईशः 1. इन्द्र का विशेषण 2. देवता, उद्भया गंगा, °ओकस् (पुं०) देवता-दृश (पुं०) शिव का एक विशेषण-दोषम् शरीर में होने वाले तीनों दोष अर्थात् वात, पित्त और कफ,---धारा गंगा,- णयनः (नयनः)-नेत्रः-- लोचनः शिव के विशेषण -- रघु. ३.६६, कु० ३१६६, ५।७२,--नवत (वि०) तिरानवेवां, -- नवतिः (स्त्री०) तिरानवे,-पञ्च (वि०) तीनगुना पाँच अर्थात् पन्द्रह,-- पञ्चाश (वि०) तरेपनवाँ,
पञ्चाशत् (स्त्री०) तरेपन, -- पटुः काच,-- पताकः 1. हाथ जिसकी तीन अंगुलियाँ फैली हुई हों 2. त्रिपुंड तिलक लगा हुआ मस्तक,---पत्रकम् ढाक,-पवम् तिराहा, अर्थात् धुलोक, अन्तरिक्ष तथा भूलोक, या आकाश, भूलोक तथा पाताल 2. वह स्थान जहाँ तीन सड़कें मिलती हों, गा गंगा का विशेषण-धृतसत्पथस्त्रिपथगामभित स तमारुरोह पुरुहूतसुत:--कि० ६।१, अमरु ९९, --पदम्, पदिका तीन पैर वाला,-पदी 1. हाथी का तंग---नासत्करिणां ग्रेवं त्रिपदीच्छेदिनामपि--रघु० ४।४८ 2. गायत्री छन्द 3. तिपाई 4. गोधापधी नाम का पौधा,-पर्णः ढाक का पेड़ -पाद (वि.) 1. तीन पैरों वाला 2. तीन खण्डों से युक्त, तीन चौथाई,-रघु० १५०९६ 3. त्रिनाम (पुं०) वामनावतार भगवान् विष्णु का विशेषण,---पुट (वि०) त्रिभुजाकार (-टः) 1. बाण 2. हथेली 3. एक हाथ परिमाण 4. तट या किनारा,-पुटकः त्रिकोण, त्रिभुज,
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