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अपासनम् [अप-+अस्+ल्युट् ] 1. फेंक देना, रद्दी कर । उत्तर० ६.१२, 8. (संख्या वाचक शब्दों के पश्चात् देना 2. छोड़ देना 3. वध करना।
प्रयुक्त होने पर 'कात्यं' और 'समस्तता' का अर्थ होता अपासरणम् [अप-+-आ-सु-+-ल्युट] बिदाई, लौटना,
है) चतुर्णामपि वर्णानाम्--चारों वर्गों का, 9. (यह दूर हटना-दे० 'अपसरण'।
शब्द कभी २ 'संवेह 'अनिश्चितता' और 'शंका' भी अपासु (वि.) [ब० स०] निर्जीव, मृत ।
प्रकट करता है)--अपि चौरो भवेत् --गण. शायद वहाँ
चोर है 10. (विधिलिड के साथ संभावना' अर्थ होता अपि (अव्य०) [ कई बार भागुरि के मतानुसार 'अ' का लोप-वष्टि भागरिरल्लोपमवाप्योरुपसर्गयोः पिधा,
है)-अपि स्तुयाद्विष्णुम्, 11. घृणा, निन्दा-अपि
जायां त्यजसि जातु गणिकामाधत्से गहितमेतत् -- पिधानम् आदि ] 1. (संज्ञा और धातुओं के साथ
सिद्धा०, लज्जा की बात है, धिक्कार है-धिग्जाल्म देवप्रयुक्त होकर) निकट या ऊपर रखना, की ओर ले
दत्तमपि सिंचेत्पलांडुम, 12. लोट् लकार के साथ जाना, तक पहुँचाना, सामीप्य सन्निकटता आदि 2.
प्रयुक्त होकर 'वक्ता की उदासीनता' प्रकट करता है (पृथक् क्रि० वि० या संयो० अव्य के रूप में) और,
और दूसरे को यथारुचि कार्य करने देता है-अपि भी, एवम्, पुनश्च, इसके अलावा, इसके अतिरिक्त
स्तुहि-सिद्धा. (आप चाहें तो) स्तुति करें,-अपि अस्ति मे सोदरस्नेहोप्येतेषु-श० १, अपनी ओर से
स्तुह्यपि सेधास्गांस्तथ्यमुक्तं नराशन-भट्टि० ८1८२ तो, अपनी बारी आने पर-विष्णुशर्मणापि राज
13. कभी विस्मयादि द्योतक अव्यय के रूप में भी पुत्राः पाठिता:-पंच० १; अपि अपि, आप च, भी,
प्रयुक्त होता है 14. 'इसलिए' 'फलतः' (अत एव) के और भी,-अपि स्तुहि, अपि सिंच-सिद्धा० न नापि
अर्थ में कभी ही प्रयुक्त होता है 15. संबं के साथ न चैव, न वापि, नापि वा, न चापि न-न, 3. 'भी' 'अति' 'बहुत' शब्दों के अर्थ पर बल देने के लिए भी
प्रयुक्त होकर 'अध्याहार' के भाव को प्रकट करता है
उदा० .. सपिषोऽपि स्यात्,-यहाँ (बिन्दूरपि-जग बहधा इसका प्रयोग होता है, अद्यापि ....-आज भी,
सा, एक बंद) जैसा कोई शब्द अध्याहृत किया जाता इदानीमपि-अब भी, यद्यपि-अगचें, चाहे, तथापि - तो भी, कई बार केवल 'तथापि' शब्द के प्रयोग से ही
है, संभवतः 'एक बूंद घी' अभिप्रेत है। 'यद्यपि' का अध्याहार कर लिया जाता है-उदा० ।
अपिगोणं (वि.) [ अपि+-+क्त ] 1. स्तुति किया गया, कि० ११२८, 4. अगर्चे (भी, चाहे)-सरसिजमनविद्ध
यशस्वी 2. कथित, वणित । शैवलेनापि रम्यम् -शश२०, चाहे ऊपर से ढका | अपिच्छिल (वि.) [न० त०] 1. जो गदला न हो, स्वच्छ हुआ; इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी --श० चाहे |
अपंकिल 2. गहरा।। वल्कल वस्त्र में 5. (वाक्य के आरम्भ में प्रयुक्त होकर
अपितृक (वि०) नि० ब०] 1. जिसका पिता जीवित न हो, 'प्रश्न सूचक') अपि सन्निहितोऽत्र कुलपतिः-श०१,
2. अपैतृक। अपि क्रियार्थसुलभं समित्कुशम्......अपि स्वशक्त्या
अपित्र्य (वि.) [न० त०] अपैतृक । तपसि प्रवर्तसे-कु० ५।३३, ३४, ३५, 6. आशा,
अपिधानम्, पिधानम् [अपि+धा -- ल्युट, भागुरि के मत प्रत्याशा (प्रायः विधिलिङ के साथ) कृतं रामसदशं
में विकल्प से 'अलोप] 1. ढकना, छिपाना 2. चादर, कर्म, अपिजीवेत्स ब्राह्मणशिशुः-उत्तर० २ मुझे आशा |
___ ढक्कन, आच्छादन (आलं. भी)। है कि ब्राह्मण बालक जी उठेगा। विशे० इस अर्थ | अपिधिः (स्त्री०( [अपि + धा+कि] छिपाव । में 'अपि' बहुधा 'नाम' के साथ जुड़ कर निम्नांकित | अपिवत (वि.) [ब० स०-अपि संसृष्टं व्रतं भोजनं नियमो भाव प्रकट करता है (क) संभावना 'शक्यता' (ख)। __ वा यस्य धार्मिक कृत्य का सहभागी, रक्त द्वारा संबद्ध। शायद, संभवतः (ग) 'क्या ही अच्छा हो यदि', 'मेरी | अपिहित, पिहित [अपि+घा+क्त-भागुरिमतेन अकार आंतरिक इच्छा या आशा है कि-अपि नाम कुलपते- लोप:] 1. बंद, बंद किया हुआ, ढका हुआ, छिपाया रियमसवर्णक्षेत्र-संभवा स्यात्, श०१, श०७, तदपि हुआ (आलं. भी) बाण्यापिहित--आँसुओं से ढका नाम मनागवतीर्णोसि रतिरमणवाणगोचरम् - मा० १, हुआ 2. जो छिपा न हो, सरल, स्पष्ट, अर्थो गिरामशायद, सम्भवत:-अपि नामाहं पुरूरवा भवेयम् । पिहितः पिहितश्च किचित् सत्यं चकास्ति मरहट्टवघूस्तविक्रम०-क्या ही अच्छा होता यदि मैं पुरूरवा होता नाभः -सुभा०। 7. (प्रश्नवाचक शब्दों के साथ जुड़ कर 'अनिश्चितता' | अपीतिः (स्त्री.) [अपि+इ+क्तिन्] 1. प्रवेश, उपागम के अर्थ को बतलाता है) कोई, कुछ, कोपि-कोई, 2. विघटन, नाश, हानि 3. प्रलय--अपीती तद्वत् किमपि-कुछ, कुत्रापि-कहीं; इस शब्द को 'अज्ञात' प्रसंगादसमञ्जसम् ब्रह्म।। 'अवर्णनीय 'अनभिधेय' अर्थ में भी प्रयुक्त किया | अपीनसः [अपीनाय, अपीनत्वाय सीयते कल्पते कर्मकर्तरि जाता है-व्यतिषजति पदार्थानान्तर: कोपि हेतु:-। क-तारा०] नाक की शुष्कता, जुकाम ।
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