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( ५५४ )
नेष्टुः [ निश् + तुन् ] मिट्टी का लोंदा । नैः श्लेयस् ( वि० ) ( स्त्री० - सी), नैःश्रेयसिक (वि० ) ( स्त्री० - की ) [ निःश्रेयस + अण्, ठक् वा ] मोक्ष या आनन्द की ओर ले जाने वाला ।
नैः स्वम्, नैःस्व्यम् [ निःस्व + अण्, ष्यञ् वा ] धनहीनता, गरीबी, दरिद्रता ।
नैक (वि०) [न + एक ] जो अकेला न हो ( प्रायः समास मैं प्रयुक्त) 'आत्मन् (पुं०) रूप: श्रृंगः परमपुरुष परमात्मा के विशेषण ।
नैकटिक ( त्रि०) ( स्त्री० - की ) [ निकट + ठक् ] पार्श्ववर्ती, निकट का, सटा हुआ, कः संन्यासी या भिक्षु - भट्टि० १४।१२ । कटपम् [ निकट + ष्यञ् ] सामीप्य, पड़ोस । नैकषयः [निकजा + ढक् राक्षस ( निकपा की
सन्तान 1
नैकृतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ निकृत्या परापकारेण जीवति - निकृति + ठक् ] 1. बेईमान, झूठा, क्रूर - मनु० ४।१९६ 2. नीच, दुष्ट, दुरात्मा 3. दुःशील, रूखे मिजाज का | नैगम ( वि० ) ( स्त्री० - मी ) [ निगम - अण् ] वेद से संबद्ध, वेद में पाया जाने वाला, दे० कांडम्, -मः 1. वेद का व्याख्याता - इति नंगमा: 2. उपनिषद 3. उपाय, तरकीब 4. विवेकपूर्ण आचरण 5. नागरिक, 6. व्यापारी, सौदागर - धाराहारोपनयनपरा नैगमाः सानुमंतः - विक्रम ० ४।४ । दुम् [ निघंटु + ठक् ] वैदिक शब्दों का संग्रहग्रंथ (पाँच अध्यायों में) जिसकी व्याख्या यास्कने अपने निरुक्त में की है ।
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नेपातिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ निपात + ठक् ] अकस्मात् या दैवयोग से होने वाला उल्लेख । नैपुण्यम् [ निपुण + अण्, ष्यञ वा ] 1. दक्षता, कौशल, चतुराई, प्रवीणता - नैपुणोन्नेयमस्ति - उत्तर० ६ २६, शि० १६।३० 3. कोई कार्य जिसमें कौशल की आव श्यकता हो, सूक्ष्म बात 4. समग्रता, पूर्णता - मनु० १०1८५ ।
नैभृत्यम् [ निभृत + ष्यन्न ] 1. लज्जाशीलता, विनम्रता 2. गोपनीयता - भृत्यमवलंबितम् - मालवि० ५ । नंमन्त्रणकम् [ निमंत्रण + अण् + कन् ] भोज, दावत | नैयमः [ निमय + अण् ] व्यापारी, सौदागर । नैमित्तिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ निमित्त + ठक् ] 1. किसी विशेष कारण के फलस्वरूप उत्पन्न, संबद्ध या निर्भर 2. असाधारण, कभी कभी होने वाला, सांयोगिक, किसी विशेष निमित्त से किया गया (विप०- नित्य), --कः ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, कम् 1. कार्य ( विप० - कारण) निमित्तनैमित्तिकयोरयं क्रमः - श० ७।३० 2. किसी विशेष अवसर पर होने वाला संस्कार, आवर्ती पर्व |
नैमिष (वि० ) ( स्त्री० - षी ) [ निमिष + अण् ] निमिषमात्र या क्षणभर रहने वाला, क्षणिक, अस्थायी-म् पवित्र वनस्थली जहाँ कुछ ऋषि मुनि रहते थे जिनको कि सौति ने महाभारत सुनाया था-- रघु० १९/७. ( नाम करण इस प्रकार हुआ यतस्तु निमिषेणेदं निहतं दानवं बलम्, अरण्येऽस्मिन् ततस्तेन नैमिषारण्यसंज्ञितम् ) ।
नैमेयः [ नि + मि + यत् + अण् ] बिनिमय, अदलाबदली । नयग्रोधम् [ न्यग्रोध + अण् ] वड़ या वरगद का फल, बरगद का 1
किम् [ नीचा + ठक् ] बैल का सिर ।
[चिः + गोकर्णशिरोदेशः, ततः स्वार्थे कन् -नि- नयत्यम् [ नियत + ष्यञ, ] नियंत्रण, आत्मसंयम । चिकः + अ + डीप् ] बढ़िया गाय । नैयमिक (वि०) (स्त्री० की ) [ नियम + ठक् ] नियम तलम् [ नितल + अण् ] पाताल, नरक । सम० सन् या विधि के अनुरूप, नियमित, कम् नियमितता । (पुं०) यम, - महावी० ५।१८ । नैयायिक [ न्याय + टक् ] तार्किक, न्यायदर्शन के सिद्धान्तों नेत्यम् [ नित्य + अण् ] नित्यता, शाश्वतता । नैres ( वि०) (स्त्री० की), नंत्यिक (वि०) (स्त्री० - की)
[ नंत्य + कन्, नित्य + ठक् ] 1. नियमित रूप से घटने वाला, बार २ दोहराया गया 2. नियमित रूप से अनुष्ठेय (विशेष अवसरों पर नहीं) 3. अपरिहार्य, अनवरत, अवश्यकरणीय ।
नंदाघः [ निदाघ + अण् ] ग्रीष्म ऋतु । नैदानः [ निदान + अण् ] शब्दव्युत्पत्तिशास्त्र का वेत्ता । नैदानिक: [ निदान + ठक् ] निदानशास्त्र का ज्ञाता, व्याधिकोविद । नैवेशिकः [ निदेश + ठक् ] आदेशों और निदेशों का पालन करने वाला, सेवक ।
का अनुयायी ।
नैरंतर्य [ निरंतर + ष्यञ् ] 1. निर्बाधता, निरंतर होने का भाव, अविच्छिन्नता 2. सान्निध्य, संसक्ति । नैरपेक्ष्यम् [ निरपेक्ष + ष्यञ् ] अवहेलना, निरपेक्षता, उदासीनता ।
नैरयिकः [ निरय - + ठक् ] नरकवासी, नरक भोगने
वाला ।
नैरर्थ्यम् [ निरर्थ + व्यञ] निरर्थकता, बेहूदगी, बकवास । नैराश्यम् [ निराश + ष्यज्ञ ] 1. आशा का अभाव, नाउ
म्मीदी, निराशा ---तटस्थं नैराश्यात् उत्तर० ३।१३ 2. कामना या प्रत्याशा का अभाव - येनाशा: पृष्ठतः कृत्वा नैराश्यमवलंबितम् - हि० १, १४४, भामि० ४ ।
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