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( १३१ )
असुलभ (वि०) नि० त०] जो आसानी से उपलब्ध न हो सके, प्राप्त करने में कठिन -विक्रम० २ । ९ । असुसू: [ असून् प्राणान् सुवति सु + क्विप्] तीर; स सासः सासू सास येयायेयाययाययः -- कि० १५ । ५ ।
असुहृद् (पुं०) नि० त०] शत्रु - शि० २ । ११७ । असूक्षणम् [सूक्ष आदरे + ल्युट्, न० त०] अपमान,
अनादर ।
असूत असूतिक ( वि० ) [ न० त०, न० ब० कप्] जिसने कुछ पैदा नहीं किया है, बांझ ।
असूति: ( स्त्री० ) नि० त०] 1. पैदा न करना, बांझपना 2. अड़चन, स्थानान्तरण ।
असूयति ( ना० वा० पर० ) 1. डाह करना, ईर्ष्याल होना
--कथं चित्रगतो भर्ता मया सूयितः मारवि० २. मान घटाना, अप्रसन्न होना, घृणा करना, असन्तुष्ट होना, क्रुद्ध होना (संप्र० के साथ ) – असूयन्ति सचिदोपदेशाय का० १०८, असूयन्ति मह्यं प्रकृतयः विक्रम० ४. भग० ३ । ३१ ।
डाह
असूयक ( वि० ) [ असूय् + ण्वुल् ] 1. ईर्ष्यालु मान घटाने
वाला, निंदक 2. असन्तुष्ट, अप्रसन्न, कः अपमान कर्ता, ईर्ष्यालु व्यक्ति, मनु० २ । ११४, शा० ३।६,
याज्ञ० १ । २८ ।
असूयनम् [असूय् | ल्युट् ] 1. अपमान, निन्दा 2. ईर्ष्या,
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असूया [असूय् + अ + टापू] 1. ईर्ष्या, असहिष्णुता, डाह - क्रुधदुहेय सूयार्थानां यं प्रति कोपः पा० ११४ | ३६, सासूयम् ईर्ष्या के साथ, 2. निन्दा, अपमान
असूया परगुणेषु दोषाविष्करणम् - सिद्धा०, रघु० ४ । २३, ३. क्रोध, रोष वधूर सूयाकुटिलं ददर्श - रघु० ६ । ८२ ।
असूयुः [ असूय् + उ ] 1. ईर्ष्यालु, डाह करने वाला 2.
अप्रसन्न ।
असूर्य ( वि० ) [ न० ब०] सूर्यरहित ।
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सूर्य पश्य ( वि० ) [ सूर्यमपि न पश्यति दृश् + खश् मुम् च] सूर्य को भी न देखने वाला - ( अन्त: पुर की रानियों के विषय में कहा जाता है कि उन्हें सूर्य देखना भी दुर्लभ था ) असूर्यम्पश्या राजदाराः सिद्धा० 2. श्या सती पतिव्रता स्त्री । असृज् (नपु० ) ( न सृज्यते इतररागवत् संसृज्यते सहज त्वात् न + सृज् + क्विन्- तारा०] 1. रुधिर 2. मंगल ग्रह 3. केसर । सम० करः लसिका, धरा त्वचा, चमड़ी - धारा 1. रुधिर की धार 2. चमड़ी, प --पा: लोहू पीने वाला राक्षस पातः रुधिर का गिरना, वहा रक्त वाहिका, नाड़ी, विमोक्षणम् रुविर का बहना, श्रा (खा ) वः रुधिर का बहना ।
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असेचन, नक ( वि० ) [ न० त०] जिसे देखते २ जी न भरे, मनोहर, सुन्दर ।
असौष्ठव ( वि० ) [ न० ०]1. सौन्दर्यविहीन, लावण्यरहित, जो सजीला न हो शरीरमसौष्ठवम् मा० १ । १७, 2. कुरूप, विकलांग - वम् 1. निकम्मापन, गुणों की हीनता 2. विकलांगता, कुरूपता । अस्खलित (वि० ) [ न० त०] 1. अटल, दृढ़, स्थायी 2. अक्षत 3. अविचलित, सावधान - रघु० ५।२० । अस्त (भू० क० कृ० ) [ अस् + क्त ] 1. फेंका हुआ, क्षिप्त,
छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ---असमये यत्त्वयास्तोऽभिमानः - वेणी० ६, 2. समाप्त 3. भजा हुआ । सम ०-करुण (वि०) दयारहित - धी (वि०) मूर्ख. व्यस्त (वि०) इधर उधर बिखरा हुआ अव्यवस्थित, क्रमरहित, संख्य (वि०) अनगिनत ।
अतः [अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र - अस + आधारे क्त ] अस्ताचल या पश्चिमाचल ( जिसके पीछे सूर्य डूबता हुआ माना जाता है) अधिरोदुमस्तगिरमभ्यपतत् शि० ९ | १; विडम्बयत्यस्तनिमग्न सूर्यम् - रघु० १६ ११; श० ४। १ ; 2. सूर्य का डूबना 3. डूबना, ( आलं०) गिरना, पतन- दे० नीचे, अस्तं गम्, या, इ, प्राब् ( क ) डूबना, पश्चिमी क्षितिज में गिरना, गतोऽस्तमर्क:- सूर्य डूब गया ( ख ) रुकना, नष्ट होना, दूर हटना, अंतर्धान होना, समाप्त होना -- विषयिणः कस्यापदोऽस्तं गताः -- पंच० १।१४६ धृतिरस्तमिता रघु० ८/६६ ; (ग) मरना अथ चास्तमिता त्वमात्मना -- रघु० ८५११२/११ | सम० - अचलः, अद्रिः, गिरिः,
पर्वतः अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़ - अबलम्बनम् क्षितिज के पश्चिमी भाग पर आकाशस्थित सूर्य चन्द्रादिक का डूबते समय आराम करना उदयौ ( द्वि० ० ) डूबना और निकलना, उदय और पतन, -- अस्तोदयावदिशदप्रविभिन्नकालम् - मुद्रा० ३।१७, -- ग ( वि०) डूबने वाला, तारे की भांति अदृश्य हो जाने वाला, गमनम् 1. डूबना, छिपना 2. मृत्यु, जीवन के सूर्य-प्रदीप का बुझना, मा० ९ । अस्तमनम् [ अन् + अप् ( बा० ) अस्तम् = अदर्शनस्य अनम् = गतिः ] ( सूर्य का ) डूबना ।
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अस्तमयः [ अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम् + इ + अच् ] 1. ( सूर्य का ) डूबना – करोत्यकालास्तमयं विवस्वतः - कि० ५०३५, ( विप० उदयः) 2. नाश, अन्त, पतन, हानि 3. पात, अभिभव – उदयमस्तमयं च रघूहात् - रघु० ९९4 तिरोधान, अन्धकार ग्रस्त होना, प्रभाप्ररोहास्तमयं रजांसि - रघु० ६।३३, 5. ( किसी ग्रह का ) सूर्य से संयोग । अस्ति ( अव्य० ) [ अस् + तिप् ] 1. होना, सत्, विद्यमान, जैसा कि अस्तिक्षीरा में, काय, 2. प्रायः किसी घटना
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