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देवी।
( २५० ) पान्---मनु० १२१७६, (यहाँ इस शब्द की अनेक ] करीषषा [करीष+क+खच्, मम् ] प्रबल वायु या व्याख्याएँ की गई हैं, परन्तु मेधातिथि इसका अर्थ | आँधी। 'कीचड़ ही मानते हैं)।
करीषिणी [ करीष + इनि+ङीप् ] संपत्ति की अधिष्ठात्री करहाटः [कर+हट+णिच+अण् ] 1. एक देश का नाम
(संभवतः सतारा जिले का वर्तमान कर्हाद), करहाट- करण (वि०) [ करोति मन: आनुकूल्याय, कृ+ उनन् पतेः पुत्री त्रिजगन्नेत्रकामणम—विक्रमांक ८२ 2. -तारा० ] कोमल, मार्मिक, दयनीय, करुणाजनक, कमल का डंठल या रेशेदार जड़ ।
शोचनीय--करुणध्वनिः---उत्तर० १, शि० ९।६७, कराल (वि.) [कर+आ+ला+क] 1. भयानक, विफलकरुणरायचरितः-उत्तर० १२८,-णः 1. दया,
भीषण, डरावना, भयंकर-उत्तर० ५।५, ६१, मा० ३, अनुकम्पा, दयालुता 2. करुण रस, शोक, रंज (आठ भग० १११२३, २५, २७, रघु० १२।९८, महावी. या नौ रसों में से एक)---पुटपाकप्रतीकाशो रामस्य ३१४८ 2. जंभाई लेता हुआ, पूर्णतया खोलता हुआ करुणो रसः-उत्तर० ३।१, १३, विलपन्....." -उत्तर० ५।६ 3. बड़ा, विस्तृत, ऊँचा, उत्तुंग करुणार्थग्रथितं प्रियां प्रति-रघु० ८७०, । सम० 4. असम, जिसमें झटका या हचकोला लगे, नोकदार ..-मल्ली मल्लिका का पौधा,-विप्रलम्भः (अलं० शा. --वेणी० ११६, मा० ११३८,-ला दुर्गा का प्रचण्ड में) वियुक्तावस्था में प्रेम-भावना । रूप, °आयतनम् ; न करालोपहाराच्च फलमन्यद्विभा- करुणा [ करुण+टाप् ] अनुकंपा, दया, दयालुता–प्रायः व्यते--मा० ४।३३, । सम-दंष्ट्र डरावने दाँतों
सर्वो भवति करुणावृत्तिरार्द्रान्तरात्मा - मेघ० ९३, वाला,-बदना दुर्गा की उपाधि ।
इसीप्रकार 'सकरुण-सदय' तथा 'अकरुण-निर्दय"। करालिकः [ कराणां करसदशशाखानाम् आलि: श्रेणी। सम-आय (वि०) कोमल-हृदय, दया से पसीजा यत्र-ब० स० कप ] 1. वृक्ष 2. तलवार ।
हआ,संवेदनशील,—निधिः दया का भण्डार,-पर, करिका [ कर+अच्+डी-+कन, टाप् ह्रस्वः ] खरोंच, –मय (वि०) अत्यन्त कृपालु,-विमुख (वि.) नखाघात से हुआ घाव ।
निर्दय, क्रूर-करुणाविमुखेन मृत्युना-रघु० ८।६७ । कारणी (स्त्री०) [ कर+इनि+डीप ] हथिनी-कथ- | करेटः [ करे-+अट --अच, अलक स०] अंगुली का
मेत्य मतिविपर्ययं करिणी पमिवावसीदति--कि० नाखून । २१६, भामि० श२।
करेणुः [ +एणु-अथवा के मस्तके रेणुरस्य तारा०] करिन् (पुं०) [ कर+इनि] 1. हाथी 2. (गण०) आठ 1. हाथी,-करेणुरारोहयते निषादिनम्-शि० १२१५,
की संख्या। सम-इन्द्रः, ईश्वरः,-वरः बड़ा ५।४८ 2. कणिकार वृक्ष,—णुः (स्त्री०) 1. हथिनी हाथी, विशालकाय हाथी-सदादानः परिक्षीणः शस्त –ददी रसात्पंकजरेणुगन्धि गजाय गण्डूषजलं करेणुः एव करीश्वरः-पंच० २१७०, दूरीकृता: करिवरेण कु० ३।३७, रघु०१६।१६ 2. पालकाप्य की माता। मदान्धबुद्ध्या---नीति० २,-कुंभः हाथी के मस्तक सम०-भः,-सुतः हस्तिविज्ञान का प्रवर्तक पालकाप्य । का अग्रभाग--भामि० २।१७७,--- गजितम् हाथी की। करोटम, करोटिः (स्त्री०) [क---रुट् + अच, इन वा ] चिंघाड़, (बंहितं करिगजितम् -- अमर०),-दंतः हाथी J 1. खोपड़ी--महावी० ५.१९ 2. कटोरा या पात्र । दांत,-पः महावत,-पोतः,शावः, -शावकः हाथी कर्क: +11. केंकडा 2. कर्क राशि, चतुर्थराशि का बच्चा,---बंधः स्तंभ जिससे हाथी बांधा जाय
| 3. आग 4. जलकुंभ 5. दर्पण 6. सफ़ेद घोड़ा। -माचलः सिंह,---मखः गणेश का विशेषण,--वरः= कर्कट:, -टक: [ कर्क+अटन, स्वार्थ कन् च] 1. केंकड़ा इन्द्रः, -वैजयन्ती (६०) झंडा जो हाथी के द्वारा ले 2. कर्कराशि, चतुर्थराशि, 3. वृत्त, घेरा।
जाया जा रहा हो,-स्कंधः हाधियों का समूह। कर्कटिः,-टी (स्त्री०) [कर+कट+इन्, शक० परकरीरः[ +ईरन ] 1. बांस का अंकूर 2. अंकूर आनि- | रूपम् ; डीप् ] एक प्रकार की ककड़ी।
यिरे वंशकरीरनीलै:--शि० ४।१४ 3. कांटेदार वृक्ष कर्कन्धः,-घः कर्क कण्टकं दधाति -धा+क 1. उन्नाव का जो मरुस्थल में पैदा होता है तथा जिसे ऊंट खाते हैं, पेड़-कर्कन्धफलपाकमिश्रपचनामोदः परिस्तीर्यते --पत्रं नैव यदा करीरविपटे दोषो वसन्तस्य किम --उत्तर०४।१, कर्कन्धूनामपरि हिनं रञ्जयत्यग्रसंध्या -भर्तृ० २१९३, तु०-किं पुष्पैः किं फलस्तस्य करी- ---श०४, अने. पा. 2. इस वृक्ष का फल-याज्ञ. रस्य दुरात्मनः, येन वृद्धि समासाद्य न कृतः पत्रसंग्रहः। श२५०। -सुभा०, 4. पानी का घड़ा।
कर्कर (वि०) [कर्क+रा+क] 1. कठोर, ठोस 2. दृढ़,-रः करीषः,--षम [ कईषन ] सूखा गोबर । सम-अग्निः | 1. हथौड़ा 2. दर्पण 3. हड्डी, (खोपड़ी का) भग्न सूखे गोबर या कंडों की आग ।
टुकड़ा, खंड,-मा० ५।१९ 4. फीता या चमड़े की
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