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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) जवान 2. जो कभी न मुझवे, अनश्वर;-पुराणभजरं ] अजानेय (वि.) [अजेऽपि आनेयः--यथास्थान प्रापणीयःविदुः-रघु० १०.१९-- देवता,-रं परमात्मा। | इति अज-अप-आ+नी+यत्] उत्तम कुल का, अजयं [नत्र ++ यत् न० त०] (अभिहित या अध्याहृत | निर्भय (जैसे घोड़ा)। 'संगतं' के साथ) मित्रता-मगैरजयं जरसोपदिष्टम्- | अजित (वि.) [नन+जि+क्त] 1. जो जीता न जा सके, रघु० १८७। अजेय, दुर्धर तं पुण्यं""""महः-उत्त० ५।२७ 2. न अजस्त्र (वि०) [ना+जस्+र न० त०] अविछिन्न, अन- जीता हुआ (देश आदि) अनियन्त्रित, अनिरुद्ध; वरत, लगातार रहने वाला;-दीक्षाप्रयतस्य--रघु० आत्मन, इन्द्रियम्-जिसने अपने मन या इन्द्रियों का ३।४४;-लं (अव्य.) सदा, अनवरत, लगातार- दमन नहीं किया है।-तः विष्णु, शिव, या बुद्ध । तच्च धूनोत्यजस्रम्-उत्त० ४।२६ । अजिनं [अज+इनच्] बाघ, सिंह या हाथी आदि, विशेषकर अजहत्स्वार्था [न जहत् स्वार्थोऽत्र-हा+-शत् न० ब०] काले हिरन की रोएँदार खाल जिसके आसन बनते है लक्षणा शक्ति का एक भेद जिसमें मुख्यार्थ पद-शन्यता या जो पहनने के काम आती है-अथाजिनाषाढघर:के कारण नष्ट नहीं होता; जैसे कुंताः प्रविशंति=कुंत कुमा०५।३०, ६७, कि० ११११५. 2. चमड़े का थैला धारिणः पुरुषाः, इसे उपादान लक्षणा भी कहते हैं। या धौंकनी। सम०-पत्रा,-पत्री,-पत्रिका चमगादड़, अजहल्लिगं [न जहत लिङ्गं यत्, हा+शत न० ब०] -योनिः हरिण, कृष्णसार मृग-वासिन् (वि.) मृगसंज्ञा शब्द जिसका लिंग नहीं बदलता चाहे वह चर्म पहनने वाला,-संधः मृगचर्म का व्यवसाय करने विशेषण की भांति ही क्यों न प्रयुक्त किया जाय वाला। उदा०-वेदः (अथवा) श्रुतिः प्रमाणम् (प्रमाणः अथवा अजिर (वि०) [अज्+किरन्] शीघ्रगामी, स्फूर्तिवान्; प्रमाणा नहीं)। -₹ 1. आंगन, अहाता, अखाड़ा; उटजाजिरप्रकीर्णअजा (स्त्री०) [ ना+जन्+ड+टाप् ] 1 (सांख्य | का० ३९; 2. शरीर 3. इन्द्रियगम्य पदार्थ 4. वाय, दर्शन के मतानुसार) प्रकृति या माया; 2 बकरी । हवा 5. मेंढक,-रा 1. एक नदी का नाम 2. दुर्गा का समालस्तनः बकरियों के गल में लटकने नाम । वाला थन; (आलं०) किसी वस्तु की निरर्थकता अजिह्म (वि.) [न० त०] 1. सीधा 2. सच्चा, खरा, सूचित करने में इसका उपयोग होता है। धर्मार्थ- ईमानदार;-गामिभिः-शि० ११६३, बेलाग और काममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते । स्तनस्येव तस्य खरा;-हम मेंढक । सम०-ग (वि०) सीधा चलने जन्म निरर्थकम् ।। -जीवः-पालक: गडरिया, दे० वाला,-व्रजेद्दिशमजिह्मग:-मनु० ६.३१-17ः तीर। अजजीव आदि। अजिह्वः न० ब०] मेंढक । अजाजि:--जी (स्त्री०) [अजेन आजः त्यागः यस्याम - | अजीकवं [अज्या शरक्षेपणेन कं ब्रह्माणं वाति प्रीणाति अज+आज+इन् ] सफेद या काला जीरा। वा---कशिव का धनुष । अजात (वि०) [न० त०] अनुत्पन्न--अजातमतमखेभ्यो अजीगतः [अज्यै गमनाय गतं यस्य-ब० स०] सांप। मृताजातौ सुतो वरम् --पंच० ९, जो अभी उत्पन्न अजीर्ण (वि.) [न० त०] न पचा हुआ, न सड़ा हुआ, न हुआ हो, पैदा न किया गया हो, अविकसित हो; | -णं अपच । ककुद्, पक्ष इत्यादि । सम० -अरि, ---शत्र अजीणिः (स्त्री०) नत्र +ज+क्तिन] 1 मन्दाग्नि(वि.) जिसका कोई शत्रु न हो, जो किसी का शत्र कैर-जीर्णभयाद् भ्रातर्भोजन परिहीयते-हि० २०५७ 2. न हो; (-रि:-9:) 'युधिष्ठिर' की उपाधियाँ-हंत __ बल, शक्ति, क्षय का अभाव । जातमजातारेः प्रथमेन त्वयारिणा --शिशु० २।१९२; | अजीव (वि.) [न.ब.] निर्जीव, जीव रहित;- [न. न द्वेक्षि यज्जनमतस्त्वमजातशत्रुः -वेणी. ३३१३, त०] सत्ता का अभाव, मृत्यु । शिव तथा दूसरे अनेक देवताओं की उपाधि | अजीवनिः (स्त्री०) [न+जी+अनि] मृत्यु, सत्ता का -ककुत् - (पुं०) थोड़ी उम्र का बैल जिसका कुब्ब अभाव (अभिशाप के रूप में प्रयुक्त)-अजीवनिस्ते अभी न निकला हो; -व्यंजन (वि०) जिसके दाढ़ी शठ भूयात्-सिद्धा०-अरे दुष्ट ! भगवान् तुम्हें मृत्यु दे, आदि अभिज्ञान चिह्न न हों; -व्यवहारः अवयस्क, भगवान् करे, तुम मर जाओ। नाबालिग जिसको अभी तक वयस्कता न मिली हो।। अज्मलं 1. ढाल 2. जलता हुआ कोयला। अजानिः (नास्ति जाया पस्य-जायाया निदेश:-न० ब०] / अझ (वि०) [न+जा+कन० त०] 1. न जानने वाला, जिसके स्त्रीन हो, पत्नीहीन, विषुर । ज्ञान रहित, अनुभवहीन-अझो भवति वै बाल:-मन अजानिकः [अजेन आनो जीवनं यस्य-ठन] गडरिया, बकरियों २।१५२ 2. अज्ञानी, अनसमझ, मूर्ख, मूढ, जड़ (मनुष्यों का व्यापारी। और पशुओं के विषय में भी कहा जाता है) अज्ञः For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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