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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( आकलनम् [ आ + कल् + ल्युट् ] 1. हाथ रखना, पकड़ना -मेखलाकलन- का० १८३, बन्दीगृह में रहना 2. गिनना, हिसाब लगाना, 3. चाह इच्छा 4. पूछ ताछ 5. समझ बुझ । आकल्पः [ आ + कृप् + णिच् + घञ ] 1. आभूषण, अलंकार- आकल्पसारो रूपाजीवाजन:- दश० ६३, रघु० १७/२२, १८५२, 2. वेशभूषा 3. रोग, बीमारी । आकल्पकः [ आ + कृप् + णिच् + ण्वुल ] 1. दुःखपूर्ण स्मृति, स्मृति को लोप 2. मूर्छा 3. हर्ष या प्रसन्नता 4. अंधकार गांठ या जोड़ । १३६ आकषः [ आ + कष् + अच् ] कसौटी । आकर्षक (fao ) [ आकर्षण चरति इति आकष + ष्टल् ] परखने वाला, कसौटी पर कसने वाला । आकस्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की) [ अकस्मात् + ष्ठक् टिलोपः ] 1. अचानक होने वाला, अचितित, अप्रत्याशित, सहसा 2. निष्कारण, निराधार - नन्वदृष्टानिष्टी जगद्वैचित्र्यमाकस्मिकं स्यात् शारी० । आकाक्षा [ आ + काङक्ष् + अ +टाप् ] 1. इच्छा, चाहभक्त - सुश्रु०, अमरु ४१, 2. ( व्या० में ) अर्थ को पूरा करने के लिए आवश्यक शब्द की उपस्थिति, किसी विचार या वाक्य के भाव को पूरा करने के लिए तीन आवश्यक तत्वों में से एक ( दूसरे दो हैं- योग्यता और आसति ) आकाङक्षा प्रतीतिपर्यवसानविरहः - सा० द० २. अर्थ की पूर्ति का अभाव 3. किसी की ओर देखना 4. प्रयोजन, इरादा 5. पूछ-ताछ 6. शब्द की यथार्थता । अकाय: [ आ + चि + कर्मणि घश चितौ कृत्वम् ] 1. चिता पर रक्खी हुई अग्नि 2. चिता । आकार: [ आ + कृ + घञ | 1. रूप, शक्ल, आकृति - द्विधा 3 - दो रूपों की या दो प्रकार की 2. पहलू सूरत, मुखा कृति, चेहरा आकारसदृशप्रज्ञः रघु० १।१५, १६ ७, 3. (विशेषतः ) चेहरे का रंग ढंग जिससे मनुष्य के आन्तरिक विचार तथा मनोवृत्ति का पता लग सके तस्य संवृतमन्त्रस्य गूढाकारेङ्गितस्य च रघु० ११२०, भवानपि संवृताकारमास्ता - विक्रम० २, 4 इशारा, संकेत, निशानी । सम० गुप्तिः (स्त्री० ) - गोपनम्, गूहनम् छिपाव, मन के भावों को छिपाना । आका (क) रण, णा [ आ + कृ + णिच् + ल्युट् युच् वा ] 1. आमंत्रण, बलावा-भवदाकारणाय दश० १७५, 2. आह्वान | आकालः [ आ + कु + अल् + अच् कोः कादेशः ] ठीक समय । आकालिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अकाल -- ठञ ] 1. क्षणिक, अल्पकालिक - मन० ४।१०३, 2. बेमौसम, अकालपक्त्र, असामयिक - आकालिकीं वोक्ष्य मधुप्रवृतिम् - कु० ३।३४, मृच्छ० ५।१, की बिजली । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir } 1. आसमान आकाश:- शम् [ आ + काश् + घञ् ] -- आकाशभवा सरस्वती कु० ४१३९, ग, 'चारिन् आदि 2. अन्तरिक्ष ( पाँचवाँ तत्त्व ) 3. सूक्ष्म और वायविक द्रव्य जो समस्त विश्व में व्याप्त है, वैशेषिक द्वारा माने हुए ९ द्रव्यों में से एक, यह 'शब्द' गुण का आधार है शब्दगुणकमाकाशम् - तु० - श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् श० ११ १ अथात्मनः शब्दगुणं गुणज्ञः पदम् (नामत: - आकाश ) विमानेन विगाहमान: रघु० १३० १, 4. मुक्त स्थान 5. स्थान- सपर्वतबनाकाशां पृथिवीम् - महा०, भवनाकाशमजायताम्बुराशि:- भामि० २।१६५, 6. ब्रह्म ( अन्तरिक्ष स्वरूप ) आकाशस्तल्लिंगात् - ब्रह्म० यावानयमाकाशस्तावानयमन्तर्हृ दयाकाश:- - छा० 7. प्रकाश, स्वच्छता, 'वायु में' अर्थ को प्रकट करने वाला आकाशे' शब्द नाटकों में प्रयुक्त होता है जब कि रंगमंच पर स्थित पात्र प्रश्न किसी ऐसे व्यक्ति से पूछता है जो वहाँ उपस्थित न हो, और ऐसे काल्पनिक उत्तर को सुनता है जो 'कि ब्रवीषि' 'कि कथयसि ' आदि शब्दों से आरम्भ होता है दूरस्थाभाषणं यत्स्यादशरीरनिवेदनम्, परोक्षान्तरितं वाक्यं तदाकाशे निगद्यते ॥ भरत तु० निम्नांकित आकाशभाषित की - (आकाशे) प्रियंवदे कस्येदमुशीरानुलेपनं, मृणालवन्ति च नलिनीपत्राणि नीयन्ते । (श्रुतिमभिनीय) किं ब्रवीषि - आदि० श० ३। सम० - ईशः 1. इन्द्र 2. ( विधि में ) असहाय व्यक्ति (जैसे कि बच्चा, स्त्री, दरिद्र ) जिसके पास वायु के अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है - कक्षा क्षितिज, कल्पः बह्म - गः पक्षी - गा ) आकाशस्थित गंगा, गङ्गा दिव्य गंगा --नत्याकाशगङ्गायाः स्रोतस्युद्दानदिग्गजे- रघु० १। ७८, चमसः चन्द्रमा जननिन् (पुं) झरोखा, प्राचीर में वना तोप का झरोखा, बन्दूक या तोप आदि चलाने के लिए भिति में बना छिद्र 1. दीपः - प्रदीपः 1. कार्तिक मास में दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी या विष्णु का स्वागत करने के लिए हठड़ी पर रक्खा हुआ दीपक, 2. बाँस के सिरे पर बाँध कर जलाया जाने वाला दीया या लालटेन, प्रकाशस्तम्भ पर रक्खा हुआ दीया या लैम्प, भाषितम् - 1. रंगमंच पर अनुपस्थित व्यक्ति से भाषण करना, एक काल्पनिक भाषण जिसका उत्तर इस प्रकार दिया जायमानो यह बात वस्तुतः कही और सुनी गई है - किं ब्रवोपीति यन्ताये बिना पात्रं प्रयुज्यते श्रुत्वेवानुक्तमप्यर्थं तत्स्यादाकाशभाषितम्- सा० द० ४२५, 2. आकाश में कही बात या शब्द, मंडलम् खगोल, -- यानम् 1. हवाई जहाज, गुब्बारा 2. आकाश में घूमने वाला, रक्षिन् (पुं०) किले की बाहरी दिवारों For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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